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अगले CJI बनने वाले हैं गोगोई, पढ़िए भारत के चीफ जस्टिस पर सवाल उठाने वाले जजों का इतिहास

By खबरीलाल जनार्दन | Updated: January 13, 2018 21:07 IST

जस्टिस रंजन गोगोई भी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया पर सवाल उठाने वाले जजों में से एक हैं।

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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेई) और कोलेजियम की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाने वाले सुप्रीम कोर्ट के चारों जज मजबूत पृष्ठभूमि से हैं। जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ में से दो ऐसे जज हैं जो सीजेआई बनने की कतार में भी अग्रणी हैं। जस्ट‌िस रंजन गोगोई इस साल 2 अक्टूबर को सीजेआई दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद चीफ जस्टिस बनने की कतार में सबसे आगे हैं। जबकि सीजेआई दीपक मिश्रा के बाद जस्टिस चेलमेश्वर उच्चतम न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं। मिलिए, मीडिया में आकर सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में सबकुछ ठीक न चलने की बात उठाने वाले उच्चतम न्यायालय के चारों जजों से-

जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर: जस्टिस दीपक मिश्रा से पहले ही थे सीजेआई की कतार में

जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर ने ही सीजेआई और कोलेजियम पर सवाल उठाते वक्त चारों जजों की अगुवाई की। उन्होंने मीडिया को संबोधित किया। वह पहले भी खबरों में आते रहे हैं। उनके जजों की नियुक्ति के वक्त कोलेजियम की बैठकों में शामिल ना होने के बारे में खबरें आती रही हैं।

पिछले साल नवंबर में एक मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने का मामला उठा था। तब एक एनजीओ ने और वकील ने याचिका में कहा था कॉलेज के पक्ष में फैसला देने जज के नाम पर घूस लिया था। इसमें ओडिशा उच्च न्यायालय के रिटायर जस्टिस इशरत मसरूर कुदुसी भी आरोपी थे।

इसपर जस्टिस चेलमेश्वर ने सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान बेंच को रेफर करने के पूर्व आदेश को निरस्त कर दिया था। उन्होंने कहा था, इससे अराजकता का माहौल पैदा होता है। इसके ठीक बाद 10 नवंबर को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने तीन सदस्यीय बेंच का गठन किया था। ये तीनों ही जज उस पांच सदस्यीय बेंच के सदस्य थे जिसने जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा 9 नवंबर को पांच सदस्यीय बेंच गठित करने के आदेश को निरस्त किया था।

इससे पहले कुछ मिनट पहले शपथ लेने की वजह से जस्टिस दीपक मिश्रा उनसे वरिष्ठ हो गए थे। दोनों को एक ही दिन शपथ लेना था और जस्टिस दीपक मिश्रा ने पहले ही शपथ ले ली थी। अन्यथा चेलमेश्वर को जस्टिस टीएस ठाकुर के रिटायर होने के बाद ही सीजेआई बन जाते। इसके बारे में हमने इस खबर में विस्तार से लिखा है।

इसे भी पढ़ेंः नजरअंदाज किए गए थे जस्टिस चेलमेश्वर, 'कुछ मिनटों' के कारण नहीं बन पाए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया

जस्टिस जे चेलमेश्वर आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले से हैं। वह 23 जुलाई, 1953 को पैदा हुए। उन्होंने मद्रास लोयला कॉलेज से भौतिकी में स्नातक करने के बाद आंध्र विश्वविद्यालय से 1976 में लॉ की पढ़ाई की। पहली बार 13 अक्टूबर, 1995 को वह एडिशनल एडवोकेट जनरल बने। उन्होंने जस्टिस आरएफ नरीमन के साथ दो जजों वाली बेंच से साल 2012 में धारा 66ए को असंवैधानिक करार देते हुए देश में बोलने की आजादी पर बड़ा फैसला दिया था। इसके अलावा राइट टू प्राइवेसी को मौल‌िक अधिकार करार देने वाली संवैधा‌निक बेंच के सदस्य रहे हैं। आधार, जेएनयू के पटियाला हाउस कोर्ट में राष्ट्रद्रोह संबंधी मामलों के भी वे जज रह चुके हैं।

जस्टिस रंजन गोगोई: अगले सीजेआई की कतार में हैं सबसे आगे

जस्टिस रंजन गोगाई सवाल उठाने वालों में दूसरे बड़े नाम हैं। वह इस साल 2 अक्टूबर को सीजेआई दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद सीजेआई बनने की कतार वाले जजों में सबसे आगे हैं। बतौर सीजेआई उनका कार्यकाल 17 नंबवर, 2019 तक चल सकता है।

गोगोई के सबसे अहम फैसलों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू के ब्लॉग का मामला रहा है। उन्होंने जस्टिस मार्कंडेय को सौम्या मर्डर केस पर ब्लॉग लिखने के संबंध में निजी तौर पर अदालत में पेश होने के लिए कहा था।

इसके अलावा जस्टिस पी सदाशिवम् के सा‌‌थ वाली बेंच चुनावी प्रचार के दौरान होने वाली घोषणाओं पर अहम टिप्पणी की थी। इस बेंच ने जन प्रतिनिधित्व (आरपी) अधिनियम की धारा 123 को पुर्नपरिष‌ित करते हुए चुनावी घोषणा पत्र में के वायदे को चुनाव प्रभावित करने वाला बताया था। बेंच ने कहा कि भले यह 'भ्रष्टाचार' का मामला ना हो। लेकिन मुफ्त उपहार बेशक लोगों को और निष्पक्ष चुनाव को गहरा नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा असम में नागरिकता से जुड़े एनआरसी मामले में भी सुनवाई में अहम भूमिका में थे। 

जस्टिस कुरियन जोसेफः ‌ट्रिपल तलाक मामले की बेंच में थे

जस्टिस जोसेफ 1400 साल पुराने ट्रिपक तलाक मामले पर एतिहासिक फैसला देने वाली पांच जजों वाली बेंच के सदस्य रहे। बेंच में जस्ट‌िस खेहर भी थे। जस्टिस जोसेफ, आरएफ नरीमन के वोटों से बेंच मामले पर फैसले की ओर बढ़ा था। जबकि तत्कालीन सीजेआई जस्टिस खेहर बेंच में अल्पमत में रहे।

इससे पहले गुड फ्राइडे ओर क्रिसमस के दिन काम न करने को लेकर जस्टिस एचएल दत्तू को चिट्ठी लिखने के बाद वह चर्चा में आ चुके हैं। तब उन्होंने कहा था ईद, दशहरा, दीवाली पर काम नहीं होता तो गुड फ्राइडे और क्रिसमस पर क्यों काम हो।

जस्टिस जोसेफ केरल के हैं। उन्होंने तिरुवनंतपुरम से लॉ की पढ़ाई की थी। उन्होंने साल 1979 में केरल हाईकोर्ट से अपनी वकालत करियर की शुरुआत की थी। साल 2000 वह केरल हाईकोर्ट में जज बने। सुप्रीम कोर्ट के जज वह मार्च, 2013 में बने। सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक वह 29 नवंबर, 2018 को रिटायर होंगे।

जस्टिस मदन भीमराव लोकुर: मणिपुर में हुए एंकाउंटर की जांच के दिए आदेश

जस्टिस लोकुर सामाजिक मामलों पर अपने फैसले लिए जाने जाते हैं। जस्टिस ललित के साथ वाली बेंच में मणिपुर में बीते दस सालों में हुए एंकाउंटर की जांच का आदेश हो, शहरी क्षेत्र में बेघर लोगों के लिए रैन बसेरे लगाने के बारे में टिप्पणी हो, बाल विवाह को लेकर उनका फैसला हो, जेलों का जिर्णोद्धार या फिर इंटरनेट पर सेक्सुअल एब्यूज वीडियो अपलोड करने के बारे में उनके फैसले हो, उनकी फैसले खूब चर्चा में रहे।

उनकी शुरुआती पढ़ाई दिल्‍ली से हुई है। वह डीयू के सेंट स्टीफन कॉलेज से हिस्ट्री के छात्र रहे हैं। साल 1977 में ही एलएलबी की। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट से ही वकालत की शुरुआत की। उनके बारे में कहा जाता है कि सिविल लॉ, क्रिमिनल लॉ, कॉन्स्टीट्यूशनल लॉ और रिवेन्यू एंड सर्विस लॉ में उन्हें महारत हासिल है। वह साल 1990 से 1996 तक केंद्र सरकार के वकील रहे। साल 1997 में वरिष्ठ वकील के तौर पर उनकी नियुक्ति की गई थी। साल 2012 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे।

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