सभी बीमा कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून 2018 से लागू करने के लिए उत्तरदायी: अदालत

By भाषा | Updated: April 19, 2021 18:40 IST2021-04-19T18:40:30+5:302021-04-19T18:40:30+5:30

All insurance companies responsible for enforcing mental health care law 2018: court | सभी बीमा कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून 2018 से लागू करने के लिए उत्तरदायी: अदालत

सभी बीमा कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कानून 2018 से लागू करने के लिए उत्तरदायी: अदालत

नयी दिल्ली, 19 अप्रैल दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि सभी बीमा कंपनियों को 2018 से देश में लागू मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों को अपनी पॉलिसी में शामिल करना होगा और ऐसा करने में विलंब ‘‘कानून की भावना के विपरीत होगा।’’

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि बीमा नियामक आईआरडीएआई बीमा कंपनियों की देखरेख करने और यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि वे कानून का अनुपालन करें और वह इस कानून के गैर अनुपालन पर ‘‘आंखे नहीं मूंद सकता।’’

अदालत ने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब आईआरडीएआई के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

अदालत ने कहा कि उसे ‘‘स्पष्ट रूप से महसूस हो रहा है’’" कि नियामक बीमा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा है और केवल तभी कदम उठा रहा है जब न्यायिक आदेश पारित किए जाते हैं।

न्यायमूर्ति सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘यह बहुत अनुचित है।’’

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि बीमा नियामक भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को यह सुनिश्चित करना है कि बीमा कंपनियों द्वारा जारी किए गए सभी उत्पाद कानून के अनुसार हों।

अदालत का यह निर्देश एक महिला की याचिका पर आया जिसका सिजोफ्रेनिया के इलाज के लिए खर्च की प्रतिपूर्ति के दावे को नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (एनआईसीएल) ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि मनोरोग विकार मेडिकल कवर से बाहर रखे गए हैं।

जब महिला ने बीमा लोकपाल से यह कहते हुए संपर्क किया कि उसका दावा मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 के तहत प्रतिपूर्ति योग्य है, तो उनकी याचिका को फिर से इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उनके दावे को पॉलिसी की शर्तों के तहत निपटाया जाना है।

महिला ने अधिवक्ताओं शाहरुख एजाज और नीलोत्पल बंसल के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दलील दी कि ‘‘इस बीमारी को पालिसी के दायरे से बाहर रखना मनमाना है और स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 21 (4) के अंतर्गत इसे निष्प्रभावी करना ही होगा जिसमें प्रावधान है कि प्रत्येक इंश्योरर मानसिक बीमारी के इलाज के लिए चिकित्सा बीमा का प्रावधान उसी आधार पर करें जैसा कि शारीरिक बीमारी के इलाज के लिए उपलब्ध है।’’

अदालत ने महिला की दलील से सहमति व्यक्त करते हुये कहा कि 6.67 लाख रुपये का उसका दावा प्रतिपूर्ति योग्य है और वह उसकी हकदार है।

अदालत ने साथ ही बीमा कंपनी पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जिसका भुगतान महिला को किया जाएगा क्योंकि उसे प्रतिपूर्ति के दावे के लिए मुकदमे का सहारा लेने के लिए बाध्य किया गया।

अदालत ने साथ ही कहा कि बीमा लोकपाल द्वारा उसका दावे को खारित करने के लिए दिये गए कारण कानून की नजर में नहीं ठहरते।

एनआईसीएल ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि उसने मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत 3.95 लाख रुपये की पूरी बीमा राशि का भुगतान किया है और यह याचिकाकर्ता द्वारा दावा की गई राशि का भुगतान नहीं कर सकता है।

अदालत, हालांकि, कंपनी से यह कहते हुए सहमत नहीं हुई कि एनआईसीएल ने 2020 तक अधिनियम को प्रभावी नहीं किया और इसलिए, दो साल की देरी ‘‘कानून की भावना के विपरीत’’ है।

अदालत ने साथ ही कहा कि एक बाद कानून लागू होने के बाद आईआरडीएआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि इसे सभी बीमा कंपनियों द्वारा लागू किया जाए क्योंकि नियामक का कर्तव्य है कि वह पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करे और बीमा कंपनियों की निगरानी भी करे।

इन टिप्पणियों और निर्देशों के साथ अदालत ने मामले का निपटारा कर दिया।

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