(सुदीप्तो चौधरी)
कोलकाता, आठ मई पश्चिम बंगाल में मुसलमानों ने अपने वोटिंग पैटर्न के बारे में अटकलों पर विराम लगाते हुए बड़े पैमाने पर तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और चुनाव परिणाम बताते हैं कि नवगठित आईएसएफ और एआईएमआईएम इस समुदाय के सदस्यों के बीच अपनी पैठ नहीं बना पायी।
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्दिकुल्लाह चौधरी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय जानता था कि बनर्जी ही एकमात्र ऐसी नेता हैं, जो बंगाल में भाजपा के रथ को रोक सकती हैं। उन्होंने कहा कि इस समुदाय के सदस्य वाममोर्चा, कांग्रेस और पीरजादा अब्बास सिद्दिकी के इंडियन सेकुलर फ्रंट के गठबंधन संयुक्त मोर्चे को लेकर आश्वस्त नहीं थे क्योंकि तीनों की विचाराधाराएं नहीं मिलती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ मुसलमानों में कम से कम 95 फीसद लोगों ने ममता बनर्जी के पक्ष में वोट डाला। समुदाय के मेरे भाई-बहन कभी भी सांप्रदायिक ताकत को वोट नहीं देंगे। उन्होंने स्पष्ट रूप से अहसास कर लिया था कि ममता दीदी ही एकमात्र ऐसी नेता हैं, जो पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिकता से लड़ सकती हैं। ’’
चौधरी ने कहा कि मुसलमान धार्मिक आधार पर विभाजन पैदा करने की भाजपा की साजिश देख चुके थे। उन्होंने कहा, ‘‘ अपने प्रचार के दौरान मैंने कहा था कि मुसलमान निश्चित ही अन्य की तुलना में भरोसेमंद साबित होंगे । वे ममता बनर्जी के प्रति निष्ठावान रहेंगे।’’
चौधरी मोंटेश्वर सीट से विजयी हुए।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने पीटीआई-भाषा कहा, ‘‘लोग हम पर इसलिए भरोसा नहीं कर पाये क्योंकि गठबंधन उम्मीद के अनुसार आकार नहीं ले पाया, और उसकी वजह थी कि हमारे कुछ नेता आईएसएफ को स्वीकार नहीं कर पाये। इस तरह, हमारा (गठबंधन का) पतन हो गया। ’’
एआईएमआईएम के असदुल्लाह शेख ने कहा कि भाजपा से धमकाये और डरे हुए मुसलमानों को तृणमूल कांग्रेस से बेहतर विकल्प देखने को नहीं मिला, इसलिए उन्होंने नये दलों पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे मुस्लिम भाई-बहन भाजपा के लोगों से त्रस्त थे। वे डरा हुआ महसूस करे थे क्योंकि भाजपा नेता संशोधित नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिक पंजी का मुद्दा उठाते रहते थे। अनिश्चित भविष्य से आशंकित उन्होंने संयुक्त मोर्चा या हमपर भरोसा नहीं किया।’’
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘ यह शत प्रतिशत सही है कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों ने सामूहिक रूप से तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया। नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी पर चुनावी विमर्श से वे डर गये थे।’’
हालांकि विधानसभा में 2016 की तुलना में इस बार मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घट गया है। पिछली बार 59 मुस्लिम विधायक थे जबकि इस बार 44 ऐसे विधायक हैं।
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