कृषि कानून: याचिकाकर्ता 40 से ज्यादा किसान यूनियनों को लंबित मामले में पक्षकार बनाना चाहता है

By भाषा | Updated: December 23, 2020 19:47 IST2020-12-23T19:47:56+5:302020-12-23T19:47:56+5:30

Agriculture Law: Petitioner wants to make more than 40 farmer unions a party to the pending case | कृषि कानून: याचिकाकर्ता 40 से ज्यादा किसान यूनियनों को लंबित मामले में पक्षकार बनाना चाहता है

कृषि कानून: याचिकाकर्ता 40 से ज्यादा किसान यूनियनों को लंबित मामले में पक्षकार बनाना चाहता है

नयी दिल्ली, 23 दिसंबर तीन नये कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमा पर विरोध कर रहे किसानों को हटाने के लिये उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने वालों में से एक याचिकाकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रही 40 से ज्यादा किसान यूनियनों को पक्षकार बनाना चाहता है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने 17 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि किसानों को बगैर किसी बाधा के अपना आन्दोलन जारी रखने देना चाहिए और न्यायालय शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करने के मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करेगा। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को किसान यूनियनों को इसमें पक्षकार बनाने की छूट प्रदान की थी।

कानून के छात्र ऋषभ शर्मा ने अब शीर्ष अदालत में संशोधित मेमो दाखिल किया है, जिसमें उसने भारतीय किसान यूनियन सहित 40 से ज्यादा किसान यूनियनों को पक्षकार बनाया है।

इस मामले में जिन किसान यूनियनों को प्रतिवादी बनाने का अनुरोध किया गया है उनमें बीकेयू-सिधूपुर, बीकेयू-राजेवाल, बीकेयू-लखोवाल, बीकेयू-डकौंडा, बीकेयू-दोआबा, जम्बूरी किसान सभा और कुल हिन्द किसान फेडरेशन भी शामिल हैं।

शीर्ष अदालत ने 16 दिसंबर को इस मामले में आठ किसान यूनियनों को प्रतिवादी बनाने की अनुमति दी थी।

ऋषभ शर्मा ने अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार के माध्यम से दायर याचिका में राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाने का प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध करते हुये कहा है कि किसानों ने दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं अवरूद्ध कर रखी हैं, जिसकी वजह से आने जाने वालों को बहुत परेशानी हो रही है और इतने बड़े जमावड़े की वजह से कोविड-19 के मामलों में वृद्धि का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है।

न्यायालय ने 17 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि किसानों के प्रदर्शन को ‘‘बिना किसी अवरोध’’ के जारी रखने की अनुमति होनी चाहिए और वह इसमें ‘‘दखल’’ नहीं देगा क्योंकि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

हालांकि, न्यायालय ने किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन के हक को स्वीकारते हुए सुझाव दिया था कि केन्द्र फिलहाल इन तीन विवादास्पद कानूनों पर अमल स्थगित कर दे क्योंकि वह इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से कृषि विशेषज्ञों की एक ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र’ समिति गठित करने पर विचार कर रहा है।

न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की थी कि वह किसानों के विरोध प्रदर्शन के अधिकार को मानता है लेकिन इस अधिकार को निर्बाध रूप से आने जाने और आवश्यक वस्तुएं तथा अन्य चीजें प्राप्त करने के दूसरों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर को उसके समक्ष मौजूद भारतीय किसान यूनियन (भानु) से कहा था कि वे सरकार से वार्ता के बगैर चाहें तो अपना विरोध जारी रख सकते हैं।

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Web Title: Agriculture Law: Petitioner wants to make more than 40 farmer unions a party to the pending case

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