बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राजद पर मंडराने लगे हैं संकट के बादल! दल में टूट की संभावना
By एस पी सिन्हा | Updated: November 28, 2025 15:19 IST2025-11-28T15:19:26+5:302025-11-28T15:19:26+5:30
सूत्र बताते हैं कि इस हिसाब से राजद के अगर 19 विधायक दल छोड़ते हैं तभी सदस्यता बरकरार रह सकती है। ऐसे में छह अन्य विधायकों को अपने पाले में लाने का प्रयास जारी है।

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राजद पर मंडराने लगे हैं संकट के बादल! दल में टूट की संभावना
पटना:बिहार विधानसभा चुनाव में राजद को मिली करारी हार से लालू परिवार अभी पूरी तरह से उबर नहीं पाया है कि इस बीच दल में भी नाराजगी बढ़ती जा रही है। ऐसे में संभावना व्यक्त की जाने लगी है कि राजद में निकट भविष्य में एक बडी टूट हो सकता है। सूत्रों की मानें तो इस नाराजगी ला फायदा उठाने का कोई मौका जदयू भी नही छोडना चाहती है।
सूत्रों की मानें तो राजद के 12-13 नवनिर्वाचित विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहने का मन बना लिया है। लेकिन संकट यह है दल बदल कानून के अनुसार दो तिहाई निर्वाचित सदस्यों का होना जरूरी है अन्यथा दल बदल कानून के तहत कम सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जायेगी। सूत्र बताते हैं कि इस हिसाब से राजद के अगर 19 विधायक दल छोड़ते हैं तभी सदस्यता बरकरार रह सकती है। ऐसे में छह अन्य विधायकों को अपने पाले में लाने का प्रयास जारी है।
उल्लेखनीय है कि अभी तक भाजपा पर आरोप लगते रहे हैं कि वह ऑपरेशन लोटस के जरिए विपक्ष को खत्म करने की योजना पर काम करती है। लेकिन इस बार यह काम एनडीए के प्रमुख घटक दल जदयू की ओर से हो सकता है। जदयू "ऑपरेशन तीर" के सहारे न केवल लालटेन में छेद कर सकती है बल्कि वह हाथ(कांग्रेस) और पतंग (एआईएमआईएम) को भी बिंध सकती है।
इस बीच विपक्ष पर ‘तीर’ चलाने की आहट सुनाई पड़ने लगी है। सूत्रों के अनुसार जदयू के निशाने पर राजद के अलावे कांग्रेस और एआईएमआईएम के विधायक भी बताए जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो जदयू "ऑपरेशन तीर" के सहारे बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने की तैयारी में जुट गई है। इसका फायदा उसे राजद में बढ़ी नाराजगी और कांग्रेस के भविष्य पर मंडरा रहे संकट के बादल का भी मिल सकता है।
राजद नेताओं में तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर भी नाराजगी बढ़ती जा रही है। नेताओं की मानें तो तेजस्वी यादव के भरोसे अपनी सियासत को आगे बढा पाना मुश्किल होगा। ऐसे में राजद के दिग्गज नेता अपनी भविष्य को लेकर चिंतित हो उठे हैं। वहीं, इस बार बिहार में कांग्रेस के 6 विधायक चुने गए हैं।
उधर, संभावित टूट का आहट को देख असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी सक्रियता बढाते हुए एनडीए सरकार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। उनका केवल एक ही शर्त है कि सीमांच के विकास पर नीतीश सरकार विशेष ध्यान दे। बता दें कि एआईएमआईएम के 5 विधायक निर्वाचित हुए हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी एआईएमआईएम के 5 विधायक चुने गए थे, जिनमें अमौर क्षेत्र से निर्वाचित अख्तरुल ईमान को छोड़कर 4 को राजद ने अपने पाले में कर लिया था।
जिन विधायकों ने अपनी निष्ठा बदल कर राजद की सदस्यता ग्रहण की थी, उनमें बायसी से सैयद रुकनुद्दीन अहमद, जोकीहाट से शाहनवाज आलम, कोचाधामन से मोहम्मद इजहार असफी, बहादुरगंज से मोहम्मद अंजार नईमी शामिल थे। जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार के फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद एआईएमआईएम विधायकों के टूटने का खतरा अधिक है। इसलिए कि महागठबंधन की करारी हार के बाद ओवैसी के विधायकों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है।
वहीं, विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में जिस तरह सिर फुटौवल शुरू हो गया है, उससे उसके भी अधिकतर विधायकों पर पाला बदलने का खतरा मंडराने लगा है। सूत्रों के अनुसार विपक्षी दलों में टूट की आशंका इसलिए अधिक है कि जदयू ने अपने कोटे के मंत्रियों के 6 पद अभी खाली रखे हैं। बिहार में 36 मंत्री पद हैं। इनमें अभी तक मुख्यमंत्री समेत 27 मंत्रियों ने शपथ ली है।
शपथ लेने वाले मंत्रियों में 2 उपमुख्यंत्री समेत भाजपा कोटे के 14 मंत्री हैं। जदयू कोटे से सिर्फ 8 मंत्रियों ने शपथ ली है। अर्थात जदयू के कोटे से और 6 मंत्री बनाए जा सकते हैं। यह पद जदयू ने क्यों खाली छोड़े हैं? इसको लेकर सियासी गलियारे में अटकलों का बाजार गर्म है। जानकारों की मानें तो इसमें ही विपक्ष में टूट के सूत्र छिपे नजर आ रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीटों के मुकाबले इस बार जदयू के 85 विधायक चुने गए हैं। जबकि भाजपा 89 विधायकों के साथ अव्वल दर्जे की पार्टी बन गई है।
सियासत के जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कोशिश है कि किसी तरह अपने विधायकों की संख्या बढ़ाएं, ताकि जदयू को नंबर वन पार्टी बनाने का उनका सपना पूरा हो सके। नीतीश कुमार लंबे समय तक एनडीए में बड़े भाई रहे हैं। लेकिन 2020 में यह सिलसिला रुक गया। चिराग पासवान के अलग चुनाव लड़ने से जदयू को 2020 में तकरीबन 3 दर्जन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।
जानकारों की मानें तो कांग्रेस के विधायक अगर टूटते हैं तो यह पहली बार नहीं होगा। इससे पहले भी कांग्रेस टूटती रही है। नीतीश कुमार 2017 में जब महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में लौट आए थे, उसके साल भर बाद 2018 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी के साथ कांग्रेस के कई नेता जदयू में शामिल हो गए थे।
अशोक चौधरी ने 2018 को कांग्रेस छोड़कर जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। उनके साथ कांग्रेस के 3 अन्य विधान पार्षद भी जदयू में शामिल हुए थे। जदयू में आने के कुछ समय बाद ही अशोक चौधरी को नीतीश ने कैबिनेट मंत्री बना दिया था। अशोक चौधरी के साथ जदयू की सदस्यता ग्रहण करने वालों में 3 अन्य विधान पार्षद दिलीप कुमार चौधरी, तनवीर अख्तर और रामचंद्र भारती शामिल थे। अशोक चौधरी ने अन्य 3 विधान पार्षदों के अलावा कांग्रेस के 13 दूसरे नेताओं को भी जदयू से जोड़ा था। इस तरह झटके में कांग्रेस के 17 नेता जदयू का हिस्सा बन गए थे।
उधर, राजद की टूट की संभावना से विधानसभा में राजद के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा जा सकते हैं। जानकारों की मानें तो अगर राजद में एक बड़ी टूट होती है तो तेजस्वी यादव के लिए नेता प्रतिपक्ष पद पर रहना मुश्किल हो जायेगा। दरअसल, नियमानुसार सदन के दस प्रतिशत मिलने के बाद ही नेता प्रतिपक्ष का पद मिल सकता है।
ऐसे में बिहार विधानसभा के 243 सदस्यों में से दस प्रतिशत अर्थात 24 सीट होना जरूरी होगा। राजद से यदि 19 विधायक टूट जाते हैं तो 6 विधायक ही बचेंगे। ऐसी स्थिति में नेता प्रतिपक्ष के पद से तेजस्वी यादव को वंचित हो जाना पडेगा। अगर नेता प्रतिपक्ष नहीं मिलता तो उन्हें राज्य सरकार के निर्धारित नियमानुसार कैबिनेट मंत्री का दर्जा नही मिल पायेगा। जिससे उन्हें सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पडेगा।
वहीं, राजद के भीतर नाराजगी को लेकर पूछे जाने पर राजद के प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा कि हमारी पार्टी में कहीं कोई नाराजगी नहीं है। सभी नेता तेजस्वी यादव के प्रति आस्था व्यक्त कर रहे हैं। हम लोग हार के कारणों को लेकर समीक्षा बैठक कर सभी से स्थिति का पता लगा रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या नवनिर्वाचित विधायकों की टूट हो सकती है?
इसपर उन्होंने इसे कोरा बकवास बताते हुए कहा कि यह बिल्कुल कोरी बात है। ऐसी न तो अभी और न ही भविष्य में संभव होगा। जो भी लोग जीतकर आए हैं, उनकी निष्ठा राजद के प्रति पूरी तरह से है और वह हर परिस्थिति में साथ रहने वाली है।
जबकि जदयू के मुख्य प्रवक्ता एवं विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि अगर कोई लोग जो नीतीश सरकार के विकास कार्यों में साथ देने के लेइ आना चाहें तो उनके लिए दरवाजा खुला है। हालांकि जदयू को अभी इसकी कोई आवश्यकता नहीं है कि वह किसी दल को तोड़े। इसका कारण है कि एनडीए सरकार दो तिहाई बहुमत से सरकार में है। ऐसे में उसे किसी के सहारे की जरूरत नही है। हां, कोई अगर हमारे दल से दिल लगाना चाहे तो हम मना भी नहीं कर सकते।