लंबी जद्दोजहद के बाद ट्रेन में बैठा मजदूर, बोला- ‘‘मैं अब कम से कम अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकता हूं’’
By भाषा | Published: May 21, 2020 01:05 PM2020-05-21T13:05:21+5:302020-05-21T13:06:02+5:30
अपने पिता की तबीयत खराब होने की खबर सुनते ही 28 साल के मोहम्मद शमशाद ने उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में अपने गाँव वापस लौटने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसे दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर रोक दिया गया। काफी संघर्ष के बाद जब उसे ट्रेन में जगह मिली तो बोला- ‘‘मैं अब कम से कम अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकता हूं।’’
नई दिल्ली। अपने पिता की तबीयत खराब होने की खबर सुनते ही 28 साल के मोहम्मद शमशाद ने उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में अपने गाँव वापस लौटने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसे दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर रोक दिया गया। बुधवार दोपहर को परेशान होकर दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर एक फ्लाईओवर के नीचे बैठे शमशाद को उसकी मां और भाभी का फोन आया और उसे पता चला कि उसके पिता नहीं रहे। हरियाणा में कपड़े की एक कंपनी में बुनकर का काम करने वाले शमशाद को दो दिन पहले उसकी मां ने फोन किया था, जिसमें उसकी मां ने उसे बताया कि उसके पिता की हालत गंभीर है। उसकी मां ने उसे जल्दी से घर वापस आने के लिए कहा।
उसके 65 वर्षीय पिता मोहम्मद सलाम अस्थमा के मरीज थे। शमशाद तुरंत अपनी पत्नी और चार साल के बेटे के साथ सुबह-सुबह दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के कापसहेड़ा इलाके में किराए की कार में अपने घर से निकल गया। जब वह आनंद विहार अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर पहुंचा, तो पुलिस ने उसे रोका और वापस जाने के लिए कहा। उसने कहा, ‘‘मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे मुझे जाने की अनुमति दें, लेकिन वे नहीं माने।’’ दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर प्रवासी श्रमिकों को जाने से पुलिस रोक रही है क्योंकि हजारों लोग अपने गाँवों और शहरों में वापस जाने के प्रयास कर रहे हैं।
परेशान शमशाद ने इस बार एक ऑटो चालक की मदद से फिर से उस पार जाने की कोशिश की, जिसने उससे सवारी के लिए प्रति व्यक्ति 50 रुपये का शुल्क लिया। लेकिन ऑटो वाला उसे और उसके परिवार को गाजियाबाद में न पहुंचाकर, उन्हें फ्लाईओवर के नीचे ही छोड़ गया। असहाय होकर वह भाग-भागकर लोगों से मदद की गुहार लगाता रहा ताकि वह कम से कम अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हो सके। तब तक उसकी दुर्दशा को मीडिया ने नोटिस कर लिया था। शमशाद और उसका परिवार बाद में गाजियाबाद बस स्टैंड पहुंचा, जहां से बसों में प्रवासी मजदूरों को गाजियाबाद रेलवे स्टेशन ले जाया जा रहा था। शाम तक, वह एक श्रमिक ट्रेन में सवार हो गया जो उन्हें हरदोई तक छोड़ सकती थी। ट्रेन में उसने कहा, ‘‘मैं अब कम से कम अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकता हूं।’’