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विकास के मॉडल पर टिके रहे केजरीवाल, भाजपा के लिए खतरे की घंटी!

By हरीश गुप्ता | Updated: February 12, 2020 08:57 IST

भाजपा ने 2015 में पार्टी के कद्दावर डॉ. हर्षवर्धन की दावेदारी की उपेक्षा कर बाहरी पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को अपने मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया. उस विधानसभा चुनाव में न केवल किरण बेदी को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, बल्कि पार्टी को 70 में से तीन सीटों से संतोष करना पड़ा था.

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ठळक मुद्देआम आदमी पार्टी के फिर शानदार प्रदर्शन ने भाजपा नेतृत्व को जोरदार झटका दिया है. अरविंद केजरीवाल अपने विकास मॉडल पर अड़े रहे

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के फिर शानदार प्रदर्शन ने भाजपा नेतृत्व को जोरदार झटका दिया है. भाजपा ने जिसने मतदाताओं को बांटने के लिए शाहीन बाग को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था, उसे दिल्ली जीतने के लिए फिर से रणनीति बनानी होगी. 22 वर्षों से राजधानी की सत्ता से दूरी पार्टी को दर्द देता रहा है.

वहीं, अरविंद केजरीवाल अपने विकास मॉडल पर अड़े रहे और भाजपा के शाहीन बाग मुद्दे को ध्वस्त कर दिया. चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला. यहां तक कि उन्होंने प्रधानमंत्री के 'सबका साथ, सबका विकास' नारे को भी हथिया लिया.

इसके साथ ही राष्ट्रवादियों और हिंदुओं को यह संदेश देने के लिए कि वह उनके जैसे ही हैं, उन्होंने न केवल वंदे मातरम का नारा लगाया, बल्कि वह हनुमान मंदिर भी गए. उन्होंने टीवी चैनलों पर टाउन हॉल की कई बैठकों को संबोधित किया और राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की. वहीं, कांग्रेस की अशक्त मौजूदगी के कारण मुसलमानों ने केजरीवाल को अपना नया तारणहार के तौर पर देखा.

भाजपा ने 2015 में पार्टी के कद्दावर डॉ. हर्षवर्धन की दावेदारी की उपेक्षा कर बाहरी पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को अपने मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया. उस विधानसभा चुनाव में न केवल किरण बेदी को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, बल्कि पार्टी को 70 में से तीन सीटों से संतोष करना पड़ा था. भाजपा नेतृत्व ने 2020 में कद्दावर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ किसी स्थानीय नेता को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर नहीं उतारने का फैसला किया और अमित शाह ने खुद चुनाव प्रचार की कमान संभाली. शाहीन बाग में महिलाओं के अनिश्चितकालीन धरना के खिलाफ हिंदुओं की भावना को भड़काने का सोचसमझ कर निर्णय लिया गया.

20 से अधिक केंद्रीय मंत्रियों, 200 से अधिक पार्टी के सांसदों को 30 दिनों के लिए प्रचार में झोंक दिया. अमित शाह ऐसी रणनीति में माहिर माने जाते हैं. यही नहीं, उन्होंने कई कॉलोनियों में व्यक्तिगत रूप से पर्चे बांटकर चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आने की उम्मीद की.

कांग्रेस के पास नहीं थी रणनीति, विपक्ष को नया उत्साह :

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के पास कोई रणनीति नहीं थी और जब राहुल गांधी जब एक रैली में गए तो उन्होंने कहा, ''युवा उन्हें छह महीने में छड़ी से मारेंगे क्योंकि उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है.'' भाजपा ने कांग्रेस पर हमला कर आत्मघाती कदम उठाया और केजरीवाल की संभावनाओं को देखते हुए पार्टी के वोटर आप की ओर रुख कर गए.

केजरीवाल ने 'भारत माता की जय' का नारा लगाकर खुद को मंजा हुआ नेता साबित किया. इसी कारण भाजपा केजरीवाले को हिंदू विरोधी के रूप में निशाना नहीं बना सकी. भाजपा को नफरत की राजनीति के स्थान पर प्रधानमंत्री मोदी के विकास की राजनीति को वापस लानी होगी. उसे अब बिहार विधानसभा चुनाव को और गंभीरता से देखना होगा. वैसे, केजरीवाल की जीत ने पूरे विपक्ष को नया उत्साह दिया है और यह मोदी-शाह की जोड़ी को हरा सकता है.

टॅग्स :दिल्ली विधान सभा चुनाव 2020आम आदमी पार्टीभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसअरविन्द केजरीवालमनोज तिवारीलोकमत समाचार
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