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भारत-पाक सीमा और एलओसी पर लागू सीजफायर, बढ़ती गोलीबारी से किसान परेशान, बिगड़ते हालात ने सुख-चैन छीन लिया सीमावासियों का

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: November 17, 2020 20:01 IST

जम्मू बार्डर पर पाक रेंजरों द्वारा सीजफायर तोड़कर गोलाबारी करने से सीमा से सटे गांवों के लोगों में दहशत है। लोग आने वाले समय के बारे में सोचकर सहम जाते हैं।

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ठळक मुद्देसरवन सिंह, जरनैल सिंह व सौदागर सिंह के बकौल जब भी बार्डर पर पाक की तरफ से गोलीबारी होती है तो उसका असर गांव पर पड़ता है।जीरो लाइन पर स्थित जमीनों पर जब हम फसल लगाने जाते हैं तो पता नहीं होता कि घर लौटेंगे की नहीं।फसल पकने तक दोनों देशों का माहौल ठीक रहेगा या नहीं। पता नहीं फिर कब खेतों में माइन लगा दी जाएं और हम शरणार्थी बन जाएं।

जम्मूः इस महीने की 25 तारीख को भारत-पाक सीमा व एलओसी पर लागू सीजफायर यूं तो 17 साल पूरे करने जा रहा है पर हाल-ए-सीजफायर यह है कि सीमाओं पर पाक सेना द्वारा बार-बार सीजफायर का उल्लंघन किए जाने से हालात बिगड़ते जा रहे हैं।

नतीजतन सीमावासियों की रातों की नींद और दिन का चैन फिर से छीनने लगा है। बढ़ती गोलाबारी के कारण वे चिंता में हैं कि तारबंदी के पार के खेतों में वे फसल बोएं या नहीं। हालांकि अप्रत्यक्ष तौर पर बीएसएफ और सेना उन्हें करने से मना करने लगी हैं।

जम्मू बार्डर पर पाक रेंजरों द्वारा सीजफायर तोड़कर गोलाबारी करने से सीमा से सटे गांवों के लोगों में दहशत है। लोग आने वाले समय के बारे में सोचकर सहम जाते हैं। बिश्नाह के सीमावर्ती गांव पिंडी चाढ़कां, पिंडी कैंप व काकू दे कोठे गांव के सरवन सिंह, जरनैल सिंह व सौदागर सिंह के बकौल जब भी बार्डर पर पाक की तरफ से गोलीबारी होती है तो उसका असर गांव पर पड़ता है।

वे कहते हैं कि अभी वर्ष 1998-99 के जख्म भरे भी नहीं हैं। जीरो लाइन पर स्थित जमीनों पर जब हम फसल लगाने जाते हैं तो पता नहीं होता कि घर लौटेंगे की नहीं। फसल पकने तक दोनों देशों का माहौल ठीक रहेगा या नहीं। पता नहीं फिर कब खेतों में माइन लगा दी जाएं और हम शरणार्थी बन जाएं।

कभी परगवाल, अखनूर, कभी अब्दुल्लियां, कभी सांबा में गोलीबारी आम लोगों की नींद उड़ा रही है। आम लोग चाहे हिन्दुस्तान के पिंडी चाढ़कां, काकू दे कोठे, पिंडी कैंप के लोग हों या पाकिस्तान के वह गांव जो बार्डर के साथ लगते हैं। जैसे चारवा, बुधवाल, ठिकेरेयाला, तमाला व जरोवाल गांव के लोग कभी नहीं चाहते कि बार्डर पर फायरिंग हो। वहीं सीमावर्ती गांवों में तैनात विलेज डिफेंस कमेटी के सदस्य नरेश सिंह कहते थे कि जरा सी आहट होने पर गांववासियों की रक्षा के लिए सीना तानकर दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

आरएसपुरा, सांबा और अखनूर सेक्टर में भी आए दिन पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलीबारी करने से सीमांत किसान काफी डरे व सहमे हुए हैं। इतना ही नहीं यदि हालात बिगड़ते हैं तो आरएसपुरा सेक्टर के कुल 28 सीमांत गांव के किसानों की हजारों एकड़ कृषि भूमि प्रभावित हो सकती है। ऐसे में सीमावर्ती गांवों के किसान भगवान से यही दुआ कर रहे हैं कि हालात सामान्य बने रहे।

सीमांत गांव चंदू चक निवासी कृष्ण लाल का कहना था कि पिछले कुछ सालों से सीमा पर गोलीबारी न होने से सीमांत गांव के लोग राहत महसूस कर रहे थे। एक बार फिर से पड़ोसी देश द्वारा की जा रही फायरिंग से लोग परेशान हैं। सीमांत गांव सुचेतगढ़ निवासी सरवन चौधरी की ही तरह कई सीमावासी असमंजस में हैं कि गेहूं की फसल की रोपाई करें या नहीं।

यही नहीं हीरानगर में फायरिंग के बाद एक बार फिर सीमा के उस पार कुछ संदिग्ध तत्वों को देखा गया है। खुफिया एजेंसियों ने हीरानगर-सांबा सेक्टर के कई इलाकों में सीमा पार हो रही इन गतिविधियों के बारे में सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियों को आगाह कर दिया है। हीरानगर-सांबा सेक्टर के उस पार पाकिस्तानी सीमा में पांच-छह लोगों के दो ग्रुपों को देखा गया है। इससे पाकिस्तान की तरफ से इस क्षेत्र से घुसपैठ होने की आशंका है।

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