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सवर्ण आरक्षणः लाभ का पता नहीं, लेकिन श्रेय लेने की सियासी होड़ मची।

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: January 18, 2019 20:39 IST

कमजोर सवर्णों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी बिल पर हस्ताक्षर करने के बाद इसे सबसे पहले गुजरात में लागू किया गया था। जिसके बाद झारखंड और उत्तर प्रदेश की सरकार में भी ऐलान किया है।

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी बिल पर हस्ताक्षर करने के बाद से ही विभिन्न सियासी दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ मची है। इसे सबसे पहले गुजरात की भाजपा सरकार ने अपने राज्य में लागू करने का ऐलान किया, तो उसके बाद एक के बाद एक भाजपा शासित प्रदेश इसे लागू कर रहे हैं। दरअसल, राजस्थान सहित पांच विस चुनाव के दौरान भाजपा को अहसास हुआ था कि उसका प्रमुख समर्थक- सामान्य वर्ग खासा नाराज है, इस पर कांग्रेस नेे किसान कर्ज माफी दांव सेे भाजपा शासित तीन प्रमुख राज्यों पर कब्जा जमा लिया। 

राजस्थान ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष प्रमुख कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री पं। भंवरलाल शर्मा लंबे समय से इस आरक्षण का देशव्यापी अभियान चला रहे थे, किन्तु इस बार भाजपा ने जल्दी दिखाई और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का एलान कर दिया।

इस आरक्षण को लेकर सीएम अशोक गहलोत का कहना था कि- केंद्र सरकार से 10 फीसदी की जगह 14 फीसदी आरक्षण देना था, अपने ट्विट में उन्होंने कहा कि पूरे देश के अंदर पहली सरकार हमारी थी 1998 में।।। हमारा ईबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव था। सरकार को 10 नहीं, 14 प्रतिशत की जो मांग थी, उसके आधार पर ही फैसला करना चाहिए था। यह हमारी राजस्थान कांग्रेस सरकार की 20 साल पुरानी मांग थी।

उधर, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सवर्ण गरीबों को आरक्षण देने के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि- राहुलजी जवाब दें कि सवर्ण गरीबों को जो आरक्षण दिया है उस पर कांग्रेस का दोगला रवैया क्यों है? कांग्रेस को जवाब देना चाहिए कि क्या वो इसके खिलाफ हैं?

तो इधर, राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया भी नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सवर्ण आरक्षण पर कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं और इसे जल्दी से जल्दी राजस्थान में लागू करने की कह रहे हैं। जहां लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस, किसान कर्जमाफी को बतौर ब्रह्मास्त्र देख रही है तो भाजपा सवर्ण आरक्षण के सियासी तीर से नाराज सामान्य वर्ग को साध कर आम चुनाव जीतना चाहती है, जबकि नौकरियों के अभाव में सवर्ण आरक्षण के लाभ पर अभी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है?

लंबे समय से आर्थिक आधार पर आरक्षण का अभियान चला रहे आॅल इंडिया ब्राह्मण फैडरेशन के नेता डाॅ प्रदीप ज्योति नेे केन्द्र और राज्य सरकारों से आर्थिक पिछड़ा आयोग की सभी अनुशंसाएं लागू करने की मांग की है। डाॅ ज्योति ने फैडरेशन के विभिन्न सदस्यों के साथ राजस्थान सहित लगभग 28 राज्यों का दौरा करके देश में आर्थिक आरक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए इसे लागू करवाने के लिए रिटायर्ड मेजर जनरल एसआर सिन्हू की अध्यक्षता में गठित आर्थिक पिछड़ा आयोग की समाज कल्याण मंत्रालय के ठंडे बस्ते में पड़ी रिपोर्ट को बाहर निकाला और इसकी सिफारिशों को लागू करने के लिये अभियान चलाया। बहरहाल, आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग में कटौती करते हुए केन्द्र सरकार ने इसे लागू तो कर दिया है, लेकिन इससे क्या सामान्य वर्ग की नाराजगी दूर होगी? और, भाजपा को कितना फायदा होगा? यह लोकसभा चुनाव के नतीजों में ही झलकेगा।

टॅग्स :सवर्ण आरक्षणभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)नरेंद्र मोदी
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