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World Autism Awareness Day: बच्चों को होने वाली दिमागी बीमारी 'ऑटिज्म' के कारण, 8 लक्षण और इलाज

By उस्मान | Updated: April 2, 2021 09:03 IST

फिल्म 'माई नेम इस खान' में शाहरुख खान को यह बीमारी दिखाई गई थी

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ठळक मुद्देजेनेटिक भी है यह बीमारीलक्षणों को समझने कल इए शिशु की हरकतों पर रखें नजरलक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे

हर साल 2 अप्रैल को वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने के उद्देश्य बच्चों को होने वाली मानसिक या जेनेटिक बीमारी 'ऑटिज्म' के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। चलिए जानते हैं इस मानसिक बीमारी के क्या कारण हैं, इसके लक्षण क्या हैं और बच्चों को इससे बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं।

ऑटिज्म क्या है

अभिनेता शाहरुख खान फिल्म 'माई नेम इस खान' में बच्चों की तरह बर्ताव करते हैं। उन्हें कुछ याद नहीं रहता और ना ही वो किसी बात पर प्रतिक्रिया देते हैं। दरअसल इस फिल्म में उन्हें माइल्ड ऑटिज्म से पीड़ित दिखाया गया है। 

एक्सपर्ट्स के अनुसार, ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर है। यह रोग बचपन से ही रोगी की बातचीत और दूसरे लोगों से व्यवहार करने की क्षमता को सीमित कर देता है। यानी बच्चा परिवार, समाज व बाहरी माहौल से जुड़ने की क्षमताओं को गंवा देता है। इसे ऑटिस्टिक स्पैक्ट्रम डिस्ऑर्डर कहा जाता है।

लड़कों को ज्यादा होती है यह बीमारीइंटरनेशनल रिसर्च यह बताती हैं कि हर 68 बच्चों में से एक ऑटिज्म से पीड़ित होता है। इससे यह पता चलता है कि भारत में लगभग 18 मिलियन बच्चे इससे पीड़ित हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में इस बीमारी का खतरा चार गुना अधिक है।

ऑटिज्म के लक्षण

प्रत्येक बच्चे में इसके लक्षण अलग-अलग देखने को मिलते हैं। जन्म के समय बच्चे में ऑटिज्म  का पता लगा पाना मुश्किल होता है। एक साल की उम्र से पहले बच्चों में इसके लक्षणों को पहचान पाना काफी मुश्किल हो जाता है। जब तक बच्चा दो से तीन साल तक का नहीं हो जाता, तब तक माता-पिता बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं। 

-बच्चे दूसरों तक अपनी भावनाएं नहीं पहुंचा पाते या उनके हाव-भाव व संकेतों को समझ नहीं पाते। -कुछ बच्चे एक ही तरह का व्यवहार बार-बार करने के कारण थोड़े से बदलाव से ही हाइपर हो जाते हैं। -बच्चे छूने पर असामान्य बर्ताव करते हैं। जब उन्हें उठाया जाता है तो वे लिपटने के जगह लचीले पड़ जाते हैं या तन जाते हैं।-बच्चे किसी की आवाज पर मुस्कराते नहीं है और उन्हें इशारा नहीं समझते हैं। -वो आंख से आंख नही मिला पाते हैं और दूसरों में काफी कम रूचि लेते हैं। - उनकी सोच बहुत विकसित नहीं होती है। इसलिए वे रचनात्मकता से दूर ही नजर आते हैं।- बच्चे बोलने के बजाय अजीब-अजीब सी आवाजें निकालते हैं -बच्चे अपने आप में ही गुम रहते हैं वे किसी एक ही चीज को लेकर खोए रहते हैं।

ऑटिज्म के कारण

ऑटिज्म के वास्तविक कारण के बारे में फिलहाल जानकारी नहीं है। पर्यावरण या जेनेटिक प्रभाव, कोई भी इसका कारण हो सकता है। वैज्ञानिक इस संबंध में जन्म से पहले पर्यावरण में मौजूद रसायनों और किसी संक्रमण के प्रभाव में आने के प्रभावों का भी अध्ययन कर रहे हैं।

शोधों के अनुसार बच्चे के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली कोई भी चीज ऑटिज्म का कारण बन सकती है। कुछ शोध प्रेग्नेंसी के दौरान मां में थायरॉएड हॉरमोन की कमी को भी कारण मानते हैं। 

इसके अतिरिक्त समय से पहले डिलीवरी होना। डिलीवरी के दौरान बच्चे को पूरी तरह से आक्सीजन न मिल पाना। गर्भावस्था में किसी बीमारी व पोषक तत्वों की कमी प्रमुख कारण हो सकते हैं।

ऑटिज्म से बचने के उपाय

ऑटिज्म रोकने के लिए प्रेगनेंसी के दौरान महिला को मेडिकल चेकअप और दवाएं लेना बहुत जरूरी है। इससे मां और बच्चे के शरीर को जांचने में मदद मिलती है। 

बच्चे के जन्म के छह माह से एक वर्ष के भीतर ही इस बीमारी का पता लग जाता है कि बच्चा सामान्य व्यवहार कर रहा है या नहीं। शुरुआती दौर में अभिभावकों को बच्चे के कुछ लक्षणों पर गौर करना चाहिए। 

जैसे बच्चा छह महीने का हो जाने पर भी किलकारी भर रहा है या नहीं। एक वर्ष के बीच मुस्कुरा रहा है या नहीं या किसी बात पर विपरीत प्रतिक्रिया दे रहा है या नहीं। ऐसा कोई भी लक्षण नजर आने पर अभिभावक को तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

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