नई दिल्लीः स्त्री रोग विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय परिवारों और समाज में अक्सर मां बनने को लेकर उम्र से जुड़ी अपेक्षाएं होती हैं और जब कोई महिला 30 साल की उम्र पार कर लेती है, तो उसे चिंता होने लगती है, और यह फ्रिक अक्सर समाज और परिवार की सोच के कारण बढ़ जाती है। हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मातृत्व के बारे में निर्णय किसी महिला द्वारा मानसिक रूप से तैयार होने, समग्र स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल तक पहुंच के आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि किसी निश्चित समयसीमा के आधार पर।
भारत के शहरी क्षेत्रों में उल्लेखनीय बदलाव आया है, जहां महिलाएं परिवार नियोजन से पहले शिक्षा, करियर, आर्थिक स्वतंत्रता और भावनात्मक स्थिरता को प्राथमिकता देना पसंद कर रही हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इन बदलती वास्तविकताओं के बावजूद, महिलाओं को रिश्तेदारों और सामाजिक स्तर पर तीव्र दबाव का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर चिकित्सा तथ्यों के बजाय उम्र से संबंधित भय पर केंद्रित होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, उम्र बढ़ने के साथ प्रजनन क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है, लेकिन इस तथ्य को लेकर चिंता या जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेने चाहिए।
इसके बजाय, विशेषज्ञ परामर्श और नियमित स्वास्थ्य जांच के महत्व पर जोर देते हैं। सिल्वरस्ट्रीक मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वप्निल अग्रहरि ने कहा, ‘‘उम्र और प्रजनन क्षमता के बीच स्पष्ट चिकित्सीय संबंध है, लेकिन इसे तथ्य को जिम्मेदारी से बताया जाना चाहिए।
मातृत्व के वास्ते महिलाओं पर दबाव डालने के लिए उम्र का इस्तेमाल करना न तो उचित है और न ही मददगार। आज गर्भावस्था के परिणाम जीवनशैली, पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और समय पर चिकित्सा सहायता जैसे कई कारकों से प्रभावित होते हैं।’’