जच्चा और बच्चा, दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है पोस्ट पार्टम डिप्रेशन, मनोरोग विशेषज्ञ

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 1, 2025 14:42 IST2025-10-01T14:41:39+5:302025-10-01T14:42:04+5:30

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पिछले दिनों एक महिला द्वारा अपने नवजात शिशु को फ्रिज में बंद किए जाने की घटना ने लोगों को स्तब्ध कर दिया लेकिन वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि यह गर्भावस्था या प्रसूति के बाद महिलाओं में होने वाला पोस्ट पार्टम डिप्रेशन या साइकोसिस है जिसे भारतीय समाज में अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

Postpartum Depression Can be fatal for both mother and child, say psychiatrists | जच्चा और बच्चा, दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है पोस्ट पार्टम डिप्रेशन, मनोरोग विशेषज्ञ

जच्चा और बच्चा, दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है पोस्ट पार्टम डिप्रेशन, मनोरोग विशेषज्ञ

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पिछले दिनों एक महिला द्वारा अपने नवजात शिशु को फ्रिज में बंद किए जाने की घटना ने लोगों को स्तब्ध कर दिया लेकिन वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि यह गर्भावस्था या प्रसूति के बाद महिलाओं में होने वाला पोस्ट पार्टम डिप्रेशन या साइकोसिस है जिसे भारतीय समाज में अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। मनोरोग विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि समय रहते इसके लक्षणों को पहचान कर ऐसी प्रसूता महिलाओं का आसानी से इलाज किया जा सकता है लेकिन सही इलाज नहीं मिलने पर यह जच्चा और बच्चा दोनों के लिए घातक हो सकता है। मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. (प्रोफेसर) निमेष जी. देसाई ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘ प्रसव के बाद मां को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या होना आम बात है और यह किसी भी वर्ग और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जुड़ी महिलाओं को हो सकती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन समस्या यह है कि इस प्रकार की बीमारियों की अकसर अनदेखी की जाती है और ऐसे में इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।’’

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पिछले दिनों एक महिला ने नवजात शिशु को फ्रिज में बंद कर दिया और सोने चली गई। अमेरिका के कैरोलाइना में 14 मार्च को एक औरत ने जन्म देने के तुरंत बाद चाकू से वार कर नवजात शिशु की हत्या कर दी। एक सितंबर 2024 को पश्चिमी दिल्ली के ख्याला में एक महिला ने नवजात बच्ची को दूध पिलाते समय गला घोंट कर मार डाला। इन घटनाओं के पीछे पोस्ट पार्टम डिप्रेशन या साइकोसिस को कारण बताते हुए डॉ. देसाई ने कहा ‘‘अन्य मानसिक बीमारियों की तरह ही पोस्ट पार्टम डिस्आर्डर में डिप्रेशन या साइकोसिस होना बहुत सामान्य सी बात है और कुछ मरीजों में डिप्रेशन और साइकोसिस दोनों एक साथ हो सकते हैं। और ऐसे में लक्षणों को लेकर घालमेल होना संभव है।’’ मुरादाबाद की घटना के संबंध में डॉ. देसाई ने कहा कि नव प्रसूताओं में इन सभी मानसिक बीमारियों का बहुत ही आसानी से इलाज संभव है लेकिन अगर बिना इलाज के मरीज को छोड़ दिया जाए तो ऐसे मामलों के कई बार घातक परिणाम सामने आते हैं । ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के अनुसार प्रति एक हजार महिलाओं में से एक को प्रसव के बाद पोस्ट पार्टम डिप्रेशन या साइकोसिस होने की आशंका होती है। चिकित्सकों का कहना है कि प्रसव के बाद मां में थोड़ा बहुत मूड में बदलाव, चिड़चिड़ापन, उदासी आम बात है जो कुछ दिन में अपने आप ठीक हो जाती है लेकिन पोस्ट पार्टम साइकोसिस एक गंभीर मानसिक बीमारी है जिसके लिए तुरंत आपात चिकित्सा की जरूरत हो सकती है। इस बीमारी में मरीज की स्थिति बहुत तेजी से बिगड़ती है और यह जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल के मनोरोग विभाग के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. आर. पी. बेनीवाल ने बताया, ‘‘ इसके लक्षणों में जच्चा का अपने आसपास की वास्तविकता से संबंध खत्म हो जाता है और सित्जोफ्रेनिया के मरीज की तरह उसे ऐसी आवाजें सुनाई देने लगती हैं जो वहां नहीं हैं। उसे अपने आसपास लोगों की उपस्थिति का भान होता है, उसे अजीब तरह की महक आने लगती है या उसे वह सब महसूस हो सकता है जिसका असलियत से कोई वास्ता नहीं होता। ’’ उनका कहना था कि जच्चा का बिना बात रोना, उसे संदेह, डर की अनुभूति होना, बहुत अधिक सोचना, बहुत ज्यादा बोलना और थकान महसूस होना आदि पोस्ट पार्टम साइकोसिस के लक्षण हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान या प्रसूति के बाद 12 सप्ताह के दौरान कभी भी जच्चा पोस्ट पार्टम डिप्रेशन या साइकोसिस का शिकार हो सकती है। पिछले दिनों यूके मेडिकल रिसर्च कांउसिल के सहयोग से द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में महिलाओं में गर्भावस्था और पोस्ट पार्टम मनोविकार के मुद्दे पर विचार विमर्श किया गया।

इसमें विशेषज्ञों का कहना था कि भारत में हर साल दो करोड़ 50 लाख शिशु जन्म लेते हैं लेकिन गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं और प्रसूति के एक साल बाद तक उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता और इसी कारण उनका इलाज भी नहीं किया जाता, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में। जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के अनुसंधान निदेशक पल्लब मौलिक ने कहा, "भारत में प्रसवकालीन मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि बड़ी संख्या में महिलाएं बिना निदान और उपचार के प्रसवकालीन अवसाद और मनोविकृति से ग्रस्त हैं, जो न केवल मां को बल्कि बच्चे के स्वास्थ्य और परिवार के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।" सम्मेलन में विशेषज्ञों ने कहा कि चिंता का एक और कारण यह है कि भले ही भारत में मातृ मृत्यु दर 2000 के दशक की शुरुआत से 50 प्रतिशत से ज़्यादा घटकर प्रति 1,00,000 पर 97 हो गई है, फिर भी मातृ आत्महत्या, मातृ मृत्यु दर में एक बढ़ता हुआ अनुपात है। केरल की एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2020 में लगभग पाँच में से एक महिला की मौत, प्रसव के बाद आत्महत्या के कारण हुई।

Web Title: Postpartum Depression Can be fatal for both mother and child, say psychiatrists

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