Panchakarma Ayurvedic Treatment: वामन, विरेचन, वस्ति, नस्य और रक्तमोक्षण क्रियाओं से बॉडी कैसे होती है डिटॉक्स, जानिए आयुर्वेद का अचूक गुणसूत्र
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 7, 2024 06:31 AM2024-03-07T06:31:34+5:302024-03-07T06:31:34+5:30
आयुर्वेद के अनुसार पंचकर्म उपचार शरीर को डिटॉक्स करने में बहुत प्रभावी भूमिका निभाता है।
Panchakarma Ayurvedic Treatment: आयुर्वेद न केवल बीमार शरीर को ठीक करता है बल्कि इसका पंचकर्मा सूत्र हमारे शरीर की व्यापक सफाई करके कायाकल्प भी करता है। आयुर्वेद का स्वास्थ्य विज्ञान सदैव इस बात को सुनिश्चित करता है कि मानव शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन सदैव बना रहे।
यदि इनमें से किसी एक में असंतुल हो जाए तो शरीर बीमार हो जाता है। उसके कारण शरीर में अवांछित अपशिष्ट या विषाक्त पदार्थों का निर्माण होता है। जिसे आयुर्वेद में पंचकर्म से दूर किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार पंचकर्म उपचार शरीर को डिटॉक्स करने में बहुत प्रभावी भूमिका निभाता है।
पंचकर्म क्या है?
कई लोग के मन में यह सवाल उठता है कि पंचकर्म क्या है या पंचकर्म में उपचार कैसे होता है। दरअसल पंचकर्म एक आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें पांच तरह की क्रियाएं शरीर के साथ की जाती हैं। इन क्रियाओं को वामन, विरेचन, वस्ति, नस्य और रक्तमोक्षण कहा जाता है और इसके जरिये शरीर में संचित विषाक्त पदार्थों को बाहर किया जाता है।
पंचकर्म चिकित्सा से शरीर के पाचन एंजाइमों को फिर से जागृत करने में मदद मिलती है। पंचकर्म से इष्टतम पाचन में सुधार होता है और शरीर में पैदा होने वाले दोष असंतुलित को प्राकृतिक तरीके से बहाल किया जाता है। आयुर्वेद का मानना है कि पंचकर्म शरीर और मन दोनों को शुद्ध करता है।
आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा उपचार प्रक्रिया की उत्पत्ति लगभग 5,000 साल पहले हुई थी। आयुर्वेद के पूर्वज माने जाने वाले भगवान धन्वंतरि ने जिन आयुर्वेदिक सिद्धांतों को विकसित किया। उसमें पंचकर्म का प्रमुख स्थान है। इसके अलावा 3,000 साल से भी पहले लिखी गई चरक संहिता में पंचकर्म की अवधारणा को विस्तार से बताया गया है।
पंचकर्म के लाभ
पंचकर्म उपचार न केवल शरीर में रोग कारक विषाक्त पदार्थ खत्म होते हैं बल्कि इससे कोशिकाएं और ऊतकों को भी फिर से जीवन मिलता है। पंचकर्म तनाव और चिंता के नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है। इसके अलावा यह खांसी, अस्थमा, जुकाम, कफज ज्वर, जी मिचलाना, भूख न लगना, अपच, टांसिल्स, एनीमिया, विष का प्रभाव, शरीर के निचले अंगों से रक्तस्राव, कुष्ठ एवं अन्य चर्मरोग, गांठे व गिल्टी, सूजन, नाक की हड्डी का बढ़ना, मूत्र रोग, अतिनिद्रा, मिर्गी, चर्बी बढ़ना व इससे उत्पन्न रोग और साइनस जैसी अनेक बीमारियों में भी बहुत लाभदायक होता है।
पंचकर्म वह आयुर्वेदिक उपचार है, जो शरीर और दिमाग से विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों को दूर करने में मदद करती है। यह प्रक्रिया वात, कफ और पित्त दोषों के संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। पंचकर्म से गैस्ट्रो-आंत्र पथ, तंत्रिका तंत्र, कार्डियो-संवहनी, श्वसन, प्रजनन, अंतःस्रावी, लसीका प्रणाली को मजबूती मिलती है। जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ्य होती है और शरीर रोग संक्रमणों से लड़ने में सक्षम बनाता है।
पंचकर्म के पांच चरण क्या हैं?
विरेचन: पित्त अधिक होने पर पाचन संबंधी समस्याएं पैदा करता है। निर्धारित रेचक पेट में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को शुद्ध करने में मदद करता है ताकि पित्त का संतुलन बहाल हो सके।
वस्ति: इस प्रक्रिया में वात को संतुलित करने में मदद के लिए एनो-रेक्टल मार्ग के माध्यम से निर्धारित तेलों और काढ़े के संयोजन से उपचार किया जाता है।
नस्य: नाक के छिद्र के माध्यम से की जाने वाली यह प्रक्रिया साइनस को कम करने और कपाल नसों की असामान्यताओं को ठीक करने में मदद करती है।
रक्तमोक्षण: यह पारंपरिक विधि शरीर से अशुद्ध रक्त को निकाला जाता है और इसके लिए जोंक या अन्य उपकरणों का उपयोग किया जाता है।