कृत्रिम गर्भाशय सहायक प्रजनन के भविष्य को कैसे आकार देंगे?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 25, 2025 18:53 IST2025-09-25T18:53:46+5:302025-09-25T18:53:50+5:30
कृत्रिम गर्भाशय (एक ऐसा उपकरण जो मानव भ्रूण को शरीर के बाहर विकसित कर सकता है) अब काल्पनिक फंतासी से आगे बढ़कर चिकित्सा जगत की एक हकीकत बनने की कगार पर पहुंच चुका है।

कृत्रिम गर्भाशय सहायक प्रजनन के भविष्य को कैसे आकार देंगे?
कृत्रिम गर्भाशय (एक ऐसा उपकरण जो मानव भ्रूण को शरीर के बाहर विकसित कर सकता है) अब काल्पनिक फंतासी से आगे बढ़कर चिकित्सा जगत की एक हकीकत बनने की कगार पर पहुंच चुका है। हाल ही में एक चीनी कंपनी ने एक मानव-सदृश रोबोट बनाने की योजना की घोषणा करके सुर्खियां बटोरीं, जिसमें एक अंतर्निहित कृत्रिम गर्भाशय होगा। चीनी कंपनी ने वर्ष 2026 तक इसका एक प्रोटोटाइप तैयार करने का वादा किया है। इस प्रौद्योगिकी की अनुमानित लागत 14,000 अमेरिकी डॉलर बताई गई। हालांकि, बाद में उस कहानी को मनगढ़ंत बताया गया, लेकिन कृत्रिम गर्भाशय की अंतर्निहित तकनीक लगातार विकसित हो रही है। लोकप्रिय संस्कृति में लंबे समय से इस विकास की उम्मीद की जा रही थी। एल्डस हक्सले के डायस्टोपियन उपन्यास ब्रेव न्यू वर्ल्ड (1932) में कांच की बोतलों में भ्रूणों वाली हैचरी का चित्रण किया गया था। मैट्रिक्स फिल्मों में ‘पॉड्स’ (एक तरह के ट्यूब) में मनुष्यों के प्रजनन को दिखाया गया था।
कृत्रिम गर्भाशय तकनीक (एडब्ल्यूटी), जो कभी पूरी तरह से काल्पनिक थी, अब बायोमेडिसिन के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है, जिसका ‘सरोगेसी’, गर्भपात कानून और सामाजिक असमानता सहित सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी) के क्षेत्र पर प्रभाव पड़ रहा है। *प्रयोगशाला के प्रयोगों से बाजार में उथल-पुथल तक एडब्ल्यूटी का विज्ञान वास्तविक है, हालाँकि सीमित है। वर्तमान प्रयोग आंशिक ‘एक्टोजेनेसिस’ का प्रतिनिधित्व करते हैं: जहां एक भ्रूण गर्भाशय में विकसित होना शुरू होता है और फिर उसके विकास को जारी रखने के लिए उसे एक कृत्रिम गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। अमेरिका, नीदरलैंड और जापान के वैज्ञानिकों ने समय से पहले जन्मे पशु भ्रूणों को बाहरी ‘बायोबैग्स’ में रखा है। पूर्ण एक्टोजेनेसिस (ऐसा शिशु जो मानव गर्भ में कभी विकसित नहीं हुआ) की स्थिति को प्राप्त करने में अभी दशकों का समय लग सकता है, जो ‘प्लेसेंटल बायोइंजीनियरिंग’, संक्रमण नियंत्रण और गर्भाशय के बाहर भ्रूण के विकास को सुरक्षित रूप से शुरू करने में हुई प्रगति पर निर्भर करता है। लेकिन इतिहास बताता है कि हमें क्रमिक प्रगति को कम नहीं आंकना चाहिए। ‘इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन’ (आईवीएफ) को भी एक समय कल्पना मानकर खारिज कर दिया गया था, जब तक कि 1978 में पहली ‘टेस्ट-ट्यूब बेबी’ लुईस ब्राउन का जन्म नहीं हुआ। एक बार जब एडब्ल्यूटी पूर्ण रूप से विकसित हो जाएगा, तो इससे अरबों डॉलर के वैश्विक सरोगेसी बाजार में खलल पड़ने, प्रजनन की सीमाओं को फिर से परिभाषित किए जाने और मौजूदा कानूनी और नैतिक ढांचों के लिए चुनौती उत्पन्न होने का खतरा पैदा हो सकता है।
निम्न-आय वाले देशों में सरोगेसी व्यवस्थाओं - जहां धनी इच्छुक जोड़े (देश या विदेश के) गर्भधारण के लिए कामकाजी वर्ग की महिलाओं को अनुबंधित करते हैं - ने शारीरिक स्वायत्तता, वस्तुकरण और स्तरीकृत प्रजनन के बारे में गरमागरम बहसें पैदा की हैं। अमेरिका में एक बार सरोगेसी व्यवस्था के तहत प्रजनन की लागत 1,00,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकती है और इसके तहत ‘सरोगेट माताएं’ (किराए की कोख उपलब्ध कराने वाली महिलाएं) 25,000-40,000 अमेरिकी डॉलर कमाती हैं। सरोगेसी बाजार विशाल और असमान है। अनुमान है कि 2024 में यह 25 अरब अमेरिकी डॉलर का बाजार होगा, और 2034 तक इसके 201.8 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। बांझपन की दर बढ़कर वैश्विक आबादी के 17.5 प्रतिशत को प्रभावित कर रही है, जिससे प्रजनन समाधानों की तत्काल मांग पैदा हो रही है। संभावित एडब्ल्यूटी की सफलताओं से इस फलते-फूलते क्षेत्र के लिए खतरा पैदा हो सकता है और आय के स्रोत के रूप में सरोगेसी पर निर्भर लोगों के भविष्य पर अनिश्चितता का संकट मंडरा सकता है। * नैतिक दुविधाएं शायद सबसे कठिन नैतिक चिंता कृत्रिम गर्भाशय के कारण गर्भपात पर पड़ने वाला प्रभाव है। कई न्यायालयों में गर्भपात कानून भ्रूण की व्यवहार्यता (वह अवस्था जिस पर भ्रूण मां के शरीर के बाहर जीवित रह सकता है यानी लगभग 24 सप्ताह) की अवधारणा से निकटता से जुड़े हुए हैं। पूर्ण एक्टोजेनेसिस सैद्धांतिक रूप से किसी भी अवस्था में, यहां तक कि गर्भधारण के तुरंत बाद भी, भ्रूण को संभावित रूप से ‘व्यवहार्य’ बना सकता है। उस स्थिति में अदालतें यह तर्क दे सकती हैं कि गर्भपात अब आवश्यक नहीं है, बल्कि भ्रूणों को मशीनों के जरिये ‘बचाया’ जा सकता है।
जैव-नैतिकतावादी चेतावनी देते हैं कि इससे महिलाओं की प्रजनन स्वायत्तता कमजोर हो सकती है। अगर महिलाओं को कृत्रिम गर्भाधान के जरिये भ्रूण को संरक्षित करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य किया जाता है, तो उन्हें बिना सहमति के आनुवंशिक रूप से माता-पिता बनने के लिए मजबूर किया जा सकता है। * जय, पराजय और नियामक रेखाएं लाभों और जोखिमों का वितरण संभवतः मौजूदा असमानताओं को प्रतिबिंबित करेगा। धनी इच्छुक माता-पिता चिकित्सा आवश्यकता या सुविधा के लिए कृत्रिम गर्भाशय का उपयोग करते हुए, सरोगेसी अनुबंधों की कानूनी उलझनों से बचते हुए, पहली पंक्ति में हो सकते हैं। जैव प्रौद्योगिकी कंपनियां और प्रजनन क्लीनिक भी प्रमुख विजेता के रूप में उभर सकते हैं क्योंकि वे एक नए उच्च-मूल्य वाले बाजार पर कब्जा कर रहे हैं। कुछ लोग अनुमान लगाते हैं कि कृत्रिम गर्भाशय समलैंगिक जोड़ों, एकल पुरुषों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए विकल्पों का विस्तार करेंगे, लेकिन वास्तविकता कहीं अधिक जटिल है। इसकी सुलभता लागत, विनियमन और सांस्कृतिक संदर्भ पर निर्भर करेगी, जिसका अर्थ है कि यह प्रौद्योगिकी संभवतः केवल एक छोटे और विशेषाधिकार प्राप्त उपसमूह की ही सेवा करेगी। एक सार्वभौमिक समानता से दूर ‘एक्टोजेनेसिस’ समानता प्रदान करने की तुलना में स्तरीकरण को मजबूत करने की अधिक संभावना रखता है।
संभावित नुकसान सरोगेट के विस्थापन से कहीं आगे तक विस्तृत है। जिन देशों ने खुद को प्रजनन पर्यटन के केंद्र के रूप में स्थापित किया था, अब उनके यहां होने वाला धन का प्रवाह सूख सकता है। सामाजिक स्तर पर, अगर गर्भधारण चिकित्सा पर आधारित हो जाता है और महिला शरीर से अलग तकनीकी प्रणालियों द्वारा इसे नियंत्रित किया जाता है, तो महिलाओं को प्रजनन पर अपने अधिकार का प्रतीकात्मक नुकसान उठाना पड़ सकता है। कृत्रिम गर्भाशयों से एक प्रकार का ‘गर्भकालीन स्तरीकरण’ उत्पन्न होने का खतरा है। यह एक कठोर द्वि-स्तरीय प्रणाली को दर्शाता है जहां मशीन के जरिये प्रजनन को आधुनिक और नियंत्रित माना जाएगा, जबकि प्राकृतिक गर्भावस्था को कमतर करके आंका जाएगा या उसे उन लोगों के लिए बताया जाएगा जिनकी तकनीक तक पहुंच नहीं है। साथ ही, कुछ नारीवादी एक्टोजेनेसिस को मुक्तिदायक मानते हैं, क्योंकि महिलाओं के शरीर को प्रजनन से मुक्त करने से उनकी सामाजिक और आर्थिक भागीदारी में आने वाली बाधाएं कम हो सकती हैं। *अगला मोर्चा कृत्रिम गर्भाशय अब केवल काल्पनिक नहीं रह गए हैं। ये नवजात शिशु देखभाल में क्रांति लाने, प्रजनन विकल्पों का विस्तार करने और असुरक्षित गर्भधारण वाली महिलाओं के लिए जोखिम कम करने का वादा करते हैं। लेकिन इसके साथ ही इसके कारण गर्भपात से जुड़ी लड़ाई के फिर से भड़कने, भ्रूण की व्यवहार्यता पर बहस को नए सिरे से परिभाषित किये जाने और प्रजनन पदानुक्रम को और सख्त किये जाने का भी खतरा पैदा हो गया है। अहम सवाल अब संभावना के बारे में नहीं है, बल्कि शासन के बारे में हैं, यानी कौन पहुंच को नियंत्रित करता है, किन शर्तों पर, और प्रजनन अधिकारों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।