ये है भारत में बनने वाली वो खास साड़ी जिसकी नकल करने पर हो सकती है जेल, कीमत सुनकर उड़ जाएंगे आपके होश!
By मेघना वर्मा | Published: January 25, 2020 10:16 AM2020-01-25T10:16:13+5:302020-01-25T10:16:13+5:30
देश ही नहीं विदेशी महिलाओं को भी साड़ियां अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। वैसे तो देशभर में तरह-तरह की रंग-बिरंगी साड़ियां मिलती हैं मगर यहां की पटोला साड़ी बेहद खास मानी जाती है।
भारत देश कला और संस्कृति का देश हैं। यहां के लोगों में जितने संजीदा हैं उनके अंदर के गुण उतने ही बेहतरीन है। पूरे देश में अपनी हस्तकला के लिए जाना जाने वाला ये देश अपने अंदर बहुत सी संस्कृतियों को समेटे हुए है। भारत देश की पहचान यहां के रंग-बिरंगे परिधानों खासकर साड़ियों से भी है।
देश ही नहीं विदेशी महिलाओं को भी साड़ियां अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। वैसे तो देशभर में तरह-तरह की रंग-बिरंगी साड़ियां मिलती हैं मगर यहां की पटोला साड़ी बेहद खास मानी जाती है। इसकी बनावट से लेकर इसकी कीमत सभी खास है। इस साड़ी का बिजनेस बाकी किसी भी बिजनेस से बिल्कुल अलग है। रोर की एक रिपोर्ट के मुताबिक बताया ये भी जाता है कि इस साड़ी के डिजाइन्स का कोई नकल कर ले तो उसे जेल भी हो सकती है।
आइए आपको बताते हैं भारत की परंपरा से जुड़ी इसी साड़ी के बारे में। साथ ही जानिए साड़ी का कीमत, इसे बनाने का तरीका, इसका इतिहास और सब कुछ।
गुजरात के पाटन में बनकर होती है तैयार
पटोला साड़ियों का इतिहास 900 साल पुराना बताया जाता है। इस आर्ट की चर्चा देश ही नहीं विदेश में भी होती है। खास बात ये है कि इस साड़ी का कोई इंडस्ट्रियल बिजनेस नहीं है। ये सिर्फ ऑर्डर के बाद ही बनाई जाती हैं। पूरे देश में केवल 3 परिवार ही हैं जो इस बिजनेस से जुड़े हुए हैं। ये तीनों ही परिवार पाटन(गुजरात) के हैं।
4 से 6 महीनों में बनकर होती है तैयार
प्योर सिल्क से बनीं ये साड़ियां ऑर्डर देने के बाद करीब 4 से 6 महीने में बनकर तैयार होती हैं। ये भारत की सबसे कीमती साड़ियों में शुमार हैं। जिनमें गुजरात की हस्तकला का बेशुमानर नमूना मिलता है। बताया जाता है कि 11वीं सदी में राजा भीमदेव की मृत्यु के बाद रानी उदयमती ने उनकी याद में एक बावली की निर्माण करवाया था। जिसे रानी की वाव के नाम से जाना जाता है।
इस वाव में वास्तुकला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है। जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में भी शामिल किया गया है। इसकी दीवारें मारू-गर्जर शैली में उकेरी गई हैं। इसी पैटर्न को आप पटोला साड़ियों की डिजाइन में उकेरा हुआ देख सकते हैं। अलग-अलग रंगों और धागों में पिरोई यह साड़ी बेहद खूबसूरत होती हैं।
कीमत सुनकर उड़ा जाएंगे होश
पूरी तरह हैंडमेड साड़ी की मिनिमन डेढ लाख रुपए से शुरू होकर 4 लाख रुपए तक होती है। पटोला आर्ट इतनी ज्यादा अनमोल है कि 1934 में भी एक पटोला साड़ी की कीमत 100 रुपए थी। पटोला साड़ी को लेकर एक और इतिहास फेमस है। बताया जाता है कि 12वीं शताब्दी में सोलंकी वंश के राजा कुमरपाल ने महाराष्ट्र के जलना से बाहर बसे 700 पटोला वीवर्स को पाटन में बसने के लिए बुलाया और इस तरह पाटन पटोला की परंपरा शुरू हुई।
राजा अक्सर विशेष अवसरों पर पटोला सिल्क का पट्टा ही पहनते थे। पाटन में केवल तीन ऐसे परिवार हैं, जो ओरिजनल पाटन पटोला साड़ी के कारोबार को कर रहे हैं और इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इस विरासत को जीआई टैग भी मिला हुआ है।