Nirbhaya Case: दोषी पवन के पास क्यूरेटिव और मर्सी पिटिशन का विकल्प बाकी, जानें क्यों 11 फरवरी का दिन है महत्वपूर्ण
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 10, 2020 09:25 AM2020-02-10T09:25:01+5:302020-02-10T09:25:01+5:30
दोषियों को कब फांसी होगी यह सवाल लोगों के बीच बना हुआ है। हालांकि, इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते दोषियों से कहा था कि वह एक हफ्ते में अपने कानूनी प्रक्रिया पूरी कर लें।
निर्भया के गुनाहगारों की फांसी को लेकर देश पिछले महीने भर से इंतजार कर रहे हैं। दोषियों को कब फांसी होगी यह सवाल लोगों के बीच बना हुआ है। हालांकि, इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते दोषियों से कहा था कि वह एक हफ्ते में अपने कानूनी प्रक्रिया पूरी कर लें।
इसकी समय सीमा मंगलवार को पूरी हो रही है। ऐसे में मंगलवार से पहले इस मामले में पवन की ओर से क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की होनी है। क्यूरेटिव खारिज होने के बाद पवन के पास मर्सी पिटिशन का ऑप्शन बाकी बचेगा। बाकी सभी दोषियों की क्यूरेटिव और दया याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है।
जानकारी के लिए बताते चलें कि निर्भया के गुनाहगारों को अलग-अलग फांसी देने के लिए केंद्र सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट 11 फरवरी को सुनवाई करने वाला है। दोषियों की फांसी के अमल पर निचली अदालत ने रोक लगा दी थी और हाई कोर्ट ने भी उस फैसले को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि मुजरिम अपने कानूनी उपचार का इस्तेमाल हफ्ते भर में कर लें। उसकी मियाद 11 फरवरी को पूरी हो रही है।
केंद्र और दिल्ली सरकार को शुक्रवार को निर्भया मामले में उच्चतम न्यायालय तथा निचली अदालत में झटका लगा। शीर्ष अदालत ने जहां चारों दोषियों को उनकी फांसी पर स्थगन के खिलाफ नोटिस जारी करने का आग्रह नामंजूर कर दिया, वहीं निचली अदालत ने उनके खिलाफ नया मृत्यु वारंट जारी करने से इनकार कर दिया। पहला झटका शीर्ष अदालत से लगा जिसने दिल्ली उच्च न्यायालय के पांच फरवरी के आदेश के खिलाफ केंद्र और दिल्ली सरकार की अपील पर दोषियों को नोटिस जारी करने का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का आग्रह स्वीकार नहीं किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि चारों दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाया जाए, न कि अलग-अलग। शीर्ष अदालत में कार्यवाही के चंद घंटे बाद मामला पटियाला हाउस जिला अदालत पहुंचा जिसने दोषियों के खिलाफ नया मृत्यु वारंट जारी करने का दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल के अधिकारियों का आग्रह अस्वीकार कर दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा, ‘‘जब दोषियों को कानून जीवित रहने की इजाजत देता है, तब उन्हें फांसी पर चढ़ाना पाप है। उच्च न्यायालय ने पांच फरवरी को न्याय के हित में दोषियों को इस आदेश के एक सप्ताह के अंदर अपने कानूनी विकल्पों का उपयोग करने की इजाजत दी थी।’’
न्यायाधीश ने कहा , ‘‘मैं दोषियों के वकील की इस दलील से सहमत हूं कि महज संदेह और अटकलबाजी के आधार पर मृत्यु वांरट को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। इस तरह, यह याचिका खारिज की जाती है। जब भी जरूरी हो तो सरकार उपयुक्त अर्जी देने के लिए स्वतंत्र है।’’
न्यायमूर्ति आर भानुमति के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मेहता से कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने उन्हें (दोषियों) सभी विकल्प आजमाने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। यह वैसे ही आपके पक्ष में है।’’