आदमखोर बाघिन अवनी को मार डाला गया। शुक्रवार को महाराष्ट्र के यवतमाल में उसे शॉर्प शूटर असगर अली ने गोली मार दी। अवनी ने पिछले दो साल में 13 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। पिछले तीन महीने से उसकी सघन तलाश जारी थी। इस खोज अभियान में 200 से ज्यादा लोगों को लगाया गया था, साथ ही हाथियों और पैराग्लाइडर्स तक की मदद ली गई थी। आदमखोर बाघिन की मौत से इलाके के लोगों ने भले ही राहत की सांस ली हो लेकिन उसकी मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
बाघिन की मौत से उठे सवाल
एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट सरिता सुब्रमण्यम ने बाघिन अवनी के 'फर्जी एनकाउंटर' के लिए फॉरेस्ट मिनिस्टर का इस्तीफा और वरिष्ठ वन अधिकारियों को बर्खास्त किए जाने की मांग की है। दरअसल, कोर्ट ने बाघिन को मारने की कोशिश न करते हुए पहले बेहोश करने और पकड़ने के आदेश दिए थे। बाघिन को न मारने के कोर्ट के आदेश के बाद बेहोश कर चिड़ियाघर भेजने की योजना बनाई गई थी।
शार्प शूटर ने बाघिन को मारा तो उस समय वन विभाग का कोई कर्मचारी साथ नहीं था, जो नियमों का उल्लंघन है। हालांकि बाघिन की तस्वीरों में बेहोशी का इंजेक्शन दिखाई दे रहा है लेकिन ये मौत के बाद भी लगाया जा सकता है। सही स्थिति तो बाघिन के पोस्टमॉर्टम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी जो नागपुर के गोरेवड़ा रेस्क्यू सेंटर में किया जा रहा है।
मुश्किल थी अवनी की खोज
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अवनी को सबसे पहले साल 2012 में यवतमाल जिले के जंगलों में देखा गया था। वो यहां अपने 9 महीने के दो शावकों के साथ रहती थी. पिछले दो सालों में उसने 13 लोगों को मार कर खा लिया था जिसके बाद उसे आदमखोर घोषित करने के बाद शूट एंड साइट के आदेश दिए गए।लेकिन ये इतना आसान नहीं था। बाघिन को पकड़ने के लिए 100 कैमरे लगाए गए थे। शिकारी कुत्तों और पैराग्लाइडर्स को भी अवनि को ढूंढने के काम में लगाया गया था। इतनी मशक्कत के बाद भी अवनि का पता नहीं चल पा रहा था। शुक्रवार को शॉर्ट शूटर शफत अली खान के बेटे असगर अली खान ने उसे मार गिराया।
जानवर कैसे बनते हैं आदमखोर
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस इलाके में जानवारों और इंसानों के बीच खूनी संघर्ष की कई घटनाएं देखने को मिल रही है। इसकी वजह है उनके जंगलों को खत्म किया जाना, अतिक्रमण और प्राइवेट सीमेंट फैक्टरियों का बढ़ता दायरा।
1907 से 1938 के बीच करीब 33 आदमखोरों को मौत के घात उतारने वाले मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट का मानना था कोई भी जानवर अपनी मर्जी से आदमखोर नहीं बनता है। बाघ या कोई भी अन्य जानवर जब जख्मी हो जाए, बूढ़ा हो जाए या अपने इलाके से खदेड़ा जाए, तो अपना गुस्सा वो खुद से कमजोर लोगों पर निकालना शुरू कर देता है। अगर वो एकबार अपने मंसूबों में कामयाब हो जाए तो फिर उसके अंदर का डर खत्म हो जाता है। अवनी की कहानी भी इससे अलग नहीं लगती!