पिता ने डांटा था, इससे कम नहीं हो जाती हत्या के अपराध की गुरुता, हाईकोर्ट ने बरकरार रखी हत्यारे बेटे की सजा
By मनाली रस्तोगी | Published: January 29, 2022 12:53 PM2022-01-29T12:53:06+5:302022-01-29T13:52:04+5:30
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद निवासी संदीप कुमार ने उच्च न्यायालय में अपील की कि वह अपने पिता की डाँट से भड़क गया था इसलिए इसे गैर-इरादतन हत्या मानी जाए।
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोल्हापुर और शिरडी के एक पुजारी की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि अगर कोई पिता बेटे को डांट रहा है तो यह बात किसी व्यक्ति के हत्या करने का कारण नहीं बन सकती है। ऐसे में हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा आरोपी पर लगाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। बता दें कि न्यायमूर्ति विश्वास जाधव और न्यायमूर्ति संदीप कुमार मोरे की पीठ उस्मानाबाद निवासी 29 वर्षीय नेताजी टेली की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे दिसंबर 2014 में दोषी ठहराया गया था।
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, नेताजी कोल्हापुर और शिरडी के मंदिरों में पुजारी था। उसके पिता चाहते थे कि वह कहीं और काम करे। ऐसे में दिसंबर 2013 को उसे पिता ने डांटा था और कहा था कि अगर उसने कुछ उचित काम नहीं किया तो वह घर न आए। ऐसे में अपने पिता की डांट से नाखुश नेताजी ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। वहीं, जब अपने बेटे के इस व्यवहार पर बुजुर्ग व्यक्ति ने सवाल उठाया तो नेताजी ने चाकू निकालकर अपने पिता पर हमला कर दिया, जिससे मौके पर ही उनकी मृत्यु हो गई।
वहीं, नेताजी ने न्यायमूर्ति जाधव के नेतृत्व वाली पीठ को बताया कि वह हत्या नहीं करना चाहता था, वो उससे हो गया। उसने दावा किया कि वह अपने पिता की डांट से अचानक भड़क गया था। इस प्रकार, उसने तर्क दिया कि उनके कृत्य को गैर इरादतन हत्या के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो कि हत्या के बराबर नहीं है। इस तर्क को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीशों ने कहा, "यहां तक कि अगर हम मान लें कि पिता ने अपने बेटे को डांटा था, तो भी यह तर्क किसी की हत्या करने के लिए काफी नहीं है।"