न खाता न बही, जो फरमान सुना दिया वही सही?, भागलपुर, मधेपुरा, पूर्णिया, कोसी-सीमांचल के दियारा में आज भी अघोषित रूप से गुंडा बैंकर्स राज?

By एस पी सिन्हा | Updated: December 12, 2025 14:38 IST2025-12-12T14:38:06+5:302025-12-12T14:38:59+5:30

सीमांचल एवं अंग क्षेत्र में गुंडा बैंक के बूते अकूत संपत्ति बटोरने वालों का बोलबाला रहा है।

bihar police Neither account nor ledger whatever order correct goonda bankers still rule undeclaredly Diara of Bhagalpur, Madhepura, Purnia, Kosi-Seemanchal | न खाता न बही, जो फरमान सुना दिया वही सही?, भागलपुर, मधेपुरा, पूर्णिया, कोसी-सीमांचल के दियारा में आज भी अघोषित रूप से गुंडा बैंकर्स राज?

file photo

Highlightsसरकार ने सूदखोरी और अवैध वसूली करने वाले ‘गुंडा बैंकों’ पर निर्णायक कार्रवाई का ऐलान किया है।वर्ष 2020 में हुए ट्रिपल मर्डर केस की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया था। छानबीन में सूद पर लिए पैसे की देनदारी और जमीन की बिक्री की बात भी आई थी।

पटनाः बिहार में इन दिनों गुंडा बैंक की चर्चा जोरों पर है। राज्य के सीमांचल व अंग क्षेत्र में यह धंधा बेरोकटोक जारी है। भागलपुर, मधेपुरा, पूर्णिया, कोसी व सीमांचल के दियारा क्षेत्र में आज भी अघोषित रूप से गुंडा बैंकर्स का राज कायम है। जरायम की दुनिया से निकल कर महाजन बन बैठे अपराधियों ने न खाता न बही, जो फरमान सुना दिया वही सही के तर्ज पर बाकायदा लोकल बैंक खोल रखे हैं जो स्थानीय स्तर पर गुंडा बैंक के नाम से कुख्यात हो गया। जहां आठ से दस फीसद महीने की ब्याज दर पर कर्ज मिलता है। ब्याज और मूल की वसूली के लिए कर्जदारों के शरीर से खाली डिस्पोजेबल सिरिंज के जरिये खून निकाला जाता है। ऐसे में राज्य सरकार ने सूदखोरी और अवैध वसूली करने वाले ‘गुंडा बैंकों’ पर निर्णायक कार्रवाई का ऐलान किया है।

उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि राज्य में केवल आरबीआई अधिकृत बैंक ही चलेंगे और गुंडा बैंक की कोई जगह नहीं होगी। सरकार इसे कानून-व्यवस्था से जुड़ा गंभीर मुद्दा मानते हुए सख्त कार्रवाई की तैयारी में है। सम्राट चौधरी के इस ऐलान के बाद माना जा रहा है कि गुंडा बैंक और सरकारी बैंकों के समानांतर चलने वाली इस अवैध व्यवस्था पर अब नकेल कसना तय है।

हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने सीमांचल में चल रहे गुंडा बैंक पर लगाम लगाने के लिए एडीजी की अध्यक्षता में एसआईटी गठन का आदेश दिया था। न्यायमूर्ति संदीप कुमार की एकलपीठ ने कटिहार मुफस्सिल थाना क्षेत्र में वर्ष 2020 में हुए ट्रिपल मर्डर केस की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया था। मृत लोगों में पति-पत्नी और चार साल का बच्चा था।

मामले को आत्महत्या माना गया था, लेकिन छानबीन में सूद पर लिए पैसे की देनदारी और जमीन की बिक्री की बात भी आई थी। इसी सुनवाई में ‘गुंडा बैंक’ शब्द भी सामने आया। उल्लेखनीय है कि राज्य के सीमांचल एवं अंग क्षेत्र में गुंडा बैंक के बूते अकूत संपत्ति बटोरने वालों का बोलबाला रहा है।

ऐसे कथित बेनामी बैंक के संचालक भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार में सर्वाधिक हैं। इनमें कई रसूखदार चेहरे हैं जो पर्दे के पीछे से गतिविधियां कमांड करते हैं। कई तो राजनीति में भी किस्मत आजमा चुके हैं। हद तो यह है कि इस खेल में कुछ सरकारी मुलाजिम भी हिस्सेदार हैं। भागलपुर और पूर्णिया में ही कथित तौर पर गुंडा बैंक के कई संचालक हैं।

कटिहार के भी कई नाम हैं। कटिहार में मानसी, फलका, हसनगंज, कोढ़ा, बरारी में अफसर रहे कुछ लोग भी ऐसे तत्वों को पनाह देते रहे हैं जो ऐसी गतिविधियों के सर्वेसर्वा हैं। ऐसे तत्वों के पैन, आधार कार्ड, बैंक खाते और उनकी संपत्ति अर्जित करने के तौर-तरीकों की छानबीन जारी है। अंग एवं सीमांचल में गरीब व जरूरतमंद लोगों को दबंग ऊंची सूद पर पैसा देते हैं।

इसकी कोई लिखा-पढ़ी या रिकार्ड नहीं होता। सब जुबानी चलता है। पैसा समय पर नहीं चुकाने पर दबंग ब्याज पर पैसा लेने वालों की जमीन जबरिया अपने नाम लिखवा लेते हैं। यदि वसूली जाने वाली राशि से जमीन की कीमत अधिक हुई तो दबंग शेष राशि अदा करने का भरोसा देकर जमीन उनसे ले लेते हैं और पैसे भी नहीं देते।

जानकारों की मानें तो गुंडा बैंक संचालकों की तरफ से कर्ज के बोझ तले लोगों से ब्याज के पैसे लेने के लिए यातनाएं दी जाती है। बैंकर्स के गुंडों के यातनाओं का दौर इतना भयानक होता है कि रूह कांप जाए। कई लोगों की हत्या तक हो चुकी है। थानों में अब तक चार सौ से अधिक मामले गुंडा बैंकर्स की ज्यादतियों से संबंधित दर्ज हो चुके हैं।

बताया जाता है कि लोकल बैंक चलाने की सोच वर्षों पूर्व सबसे पहले तिनटंगा दियारा के सिकंदर नामक एक चर्चित शख्स ने अपने लोगों के सामने रखी थी। उसमें यह समझ तब हुए सूबे के एक चर्चित घोटाले के पैसे आने के बाद विकसित हुई थी। घोटाले में लिप्त बड़े ओहदेदारों ने उसे बैंक चलाने के लिए तब एकमुश्त रकम दी थी।

शर्त यह थी कि बैंक के जरिये उनके दो नंबर के पैसे ब्याज पर लगाएं। पहले तीन रुपये सैकड़े की दर से बैंक संचालक को घोटाले का पैसा मिला था, जिसे उसने चार रुपये की दर से लोगों को कर्ज तब बांटा था। इसमें प्रत्येक माह ब्याज न देने पर ब्याज की रकम मूलधन में जुट जाती है। इसे यहां कट्ठी का नाम दिया गया है।(यह चक्रवृद्धि ब्याज की तरह है)।

देखते ही देखते सरस्वती, शारदा, बीणापानी, सहारा, मां विषहरी विकास बैंक, शिवशंकर बैंक समेत सैकड़ों की संख्या में गुंडा बैंक उग आए। बैंक के संचालकों में अधिकांश की पृष्ठभूमि आपराधिक है। कर्ज और ब्याज में ना नुकुर करने का अंजाम मौत होती है। कटिहार जिले के कुर्सेला निवासी लकड़ी व्यवसायी संजय चिरानियां का अपहरण तीन जनवरी 2006 को गुंडा बैंक के रुपए न लौटाने पर किया गया था।

व्यवसायी ने गुंडा बैंक से 16 लाख कर्ज लिए थे। उसकी बरामदगी पांच दिनों बाद कटिहार, पूर्णिया और भागलपुर पुलिस की संयुक्त छापेमारी में नवगछिया के तिनटंगा दियारे में अवधेश मंडल के यहां से हुई थी। इसके बाद ही गुंडा बैंक का पर्दाफाश हुआ था। अवधेश के घर से कंप्यूटर, सीडी समेत अन्य दस्तावेज बरामद हुए थे।

त्वरित अदालत में एक अभियुक्त कारे लाल मंडल को तीन साल की सजा हुई थी। गुंडा बैंक से कर्ज लेने के बाद न लौटाने पर भागलपुर के नारायणपुर प्रखंड स्थित जयपुर चोरहर गांव निवासी महेश चंद्र मंडल के शरीर से सिरिंज के जरिये तब तक खून निकाला गया जब तक वह बेहोश नहीं हो गया। वर्तमान समय में गुंडा बैंकर्स की सूद की राशि आठ से दस रुपये प्रतिमाह सैकड़ा की दर से कर्जदारों को दिया जाता है।

यही नहीं कर्जदारों को कर्ज देते समय ही सूद की रकम पहले माह की काट कर दी जाती है। एक बार इन सूदखोरों से सूद की रकम ली तो मानों उसके जाल में ही फंस गए। भागलपुर और नवगछिया में सूदखोरों से पीड़ित लोगों की संख्या सैकड़ों की तादाद में है। उनसे कर्ज लेने वाले कंगाल होते चले गए जबकि सूदखोरों ने अकूत चल-अचल संपत्तियों के मालिक बन बैठे।

बता दें कि भागलपुर में पिछले दिनों आयकर की टीम ने आज तक की सबसे बड़ी छापेमारी की थी। 13 लोग आयकर विभाग के रडार पर चढ़े थे, जिसमें भागलपुर के निवर्तमान डिप्टी मेयर राजेश वर्मा भी शामिल हैं। आयकर की छापेमारी में डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा की नकद राशि जब्त हुई थी। आयकर विभाग को राजेश वर्मा के घर से हवाला कारोबार से जुड़े अहम दस्तावेज मिले।

इसमें करोड़ों के लेनदेन की बात सामने आई है। फोकस उन पर है जिन्होंने बीते पांच वर्षों के दौरान सीमांचल के इलाके में कई जमीन की रजिस्ट्री कराई है। 500 से अधिक ऐसे लोगों की सूची आयकर विभाग को सौंपी भी जा चुकी है। और नाम जुड़ेंगे। आयकर यह पता लगा रहा है कि इन लोगों के पास इतनी जमीन खरीदने के लिए पैसे कहां से आए? उनकी आय का मूल स्रोत क्या है?

Web Title: bihar police Neither account nor ledger whatever order correct goonda bankers still rule undeclaredly Diara of Bhagalpur, Madhepura, Purnia, Kosi-Seemanchal

क्राइम अलर्ट से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे