नेतृत्व को लेकर कांग्रेस-तृणमूल के बीच खींचतान से विपक्षी एकता खतरे में

By भाषा | Published: November 27, 2021 3:16 PM

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(प्रदीप्ता तापदर)

कोलकाता, 27 नवंबर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच चल रही खींचतान के बाद, भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए विपक्षी एकता की कोशिशों को झटका लगता दिख रहा है। हाल में ममता बनर्जी नीत पार्टी द्वारा कांग्रेस नेताओं को अपने दल में शामिल किए जाने के बाद दोनों दलों में दरार बढ़ गई है और कांग्रेस खुद को मुश्किल स्थिति में पा रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 20 अगस्त को बुलाई गई बैठक में सौहार्द्र दिखाने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी को भाजपा से लोहा लेने में कथित तौर पर असफल बताने का मौका नहीं छोड़ रही है। इसके साथ ही तृणमूल पूरे देश में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

तृणमूल सूत्रों के मुताबिक पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी अपने करियर के सबसे कठिन चुनावों में से एक को जीतने के बाद विपक्ष के सबसे सशक्त चेहरे के रूप में उभरी हैं। इसके साथ ही वह राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका चाहती हैं, संभवत: विपक्षी गठबंधन के नेता के रूप में खुद को स्थापित करना चाहती हैं जो वर्ष 2014 के भाजपा के सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस के पास है।

पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दल (तृणमूल) पर हमला करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘‘ मैं शुरू से कह रहा हूं कि ममता बनर्जी गुप्त रूप से भाजपा की सहायक हैं। तृणमूल कांग्रेस की गतिविधियां संकेत दे रही हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य कांग्रेस को कमजोर करना और भाजपा की मदद करना है। लेकिन ताकीद कर दूं कि कोई भी इसमें सफल नहीं होगा और कोई भी कभी कांग्रेस को मिटा नहीं सकेगा।’’

विपक्ष के नेतृत्व के मुद्दे और कांग्रेस की कीमत पर भी तृणमूल की राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश ने संयुक्त विपक्षी मोर्चा बनाने की कोशिशों में गतिरोध पैदा कर दिया है।

तृणमूल सूत्रों के मुताबिक सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के आकलन कि पार्टी, भाजपा के साथ सीधा मुकाबला होने पर अगले लोकसभा चुनाव में 120 से 130 सीट जीतने की स्थिति में है, से ममता के खेमे में अच्छा संदेश नहीं गया है।

उन्होंने कहा कि तब से विपक्षी खेमे में दरार सामने आ रही है और दोनों पार्टियों को कई मौकों पर एक दूसरे पर हमला करते हुए देखा गया जबकि भाजपा नेता इस लड़ाई को देख रहे हैं और संभवत: उनके चेहरे इससे खिले हुए हैं।

सूत्रों ने बताया कि पूर्व के रुख के उलट तृणमूल कांग्रेस ने फैसला किया है कि वह संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में सदन में कांग्रेस के साथ किसी तरह का समन्वय नहीं करेगी।

तृणमूल के महासचिव कुणाल घोष ने कहा, ‘‘कांग्रेस ने गत सात साल में भाजपा का मुकाबला करने के लिए कुछ नहीं किया। यह तृणमूल है जो भाजपा के साथ लड़ रही है। हमने कभी कांग्रेस के बिना विपक्षी गठबंधन बनाने की बात नहीं की, लेकिन कांग्रेस को अहसास होना चाहिए कि बड़े भाई की भूमिका अब स्वीकार नहीं की जा सकती। पार्टी (कांग्रेस) कई राज्यों में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।’’

गौरतलब है कि विगत में तृणमूल ने कांग्रेस को न केवल ‘‘ अयोग्य और अक्षम’ करार दिया बल्कि पिछले चुनाव में राहुल गांधी की अमेठी में हार को लेकर भी निशाना साधा। पार्टी जोर दे रही है कि राहुल गांधी नहीं बल्कि बनर्जी विपक्ष का चेहरा हैं।

ममता बनर्जी की पार्टी का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर उसका विस्तार सही फैसला है और भले ही यह कांग्रेस की कीमत पर हो। सुष्मिता देव, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिनो फलेरियो और क्रिकेट से राजनीति में आए कीर्ति आजाद हाल में कांग्रेस छोड़कर तृणमूल में शामिल हुए हैं। इस सप्ताह तृणमूल ने कांग्रेस को एक और बड़ा झटका दिया और मेघालय में पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा सहित पार्टी के 12 विधायक तृणमूल में शामिल हो गए। इसके साथ ही राज्य में ममता बनर्जी की पार्टी मुख्य विपक्षी बन गई।

तृणमूल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा को अब भी विपक्षी एकता को लेकर उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘यह सही है कि लोग अब तृणमूल की ओर देख रहे हैं और कांग्रेस गत कुछ सालों में कमजोर हुई है। फिर भी अभी अगला चुनाव होने में ढाई साल का समय है, परिस्थिति बदल सकती है।’’

दोनों दलों की लड़ाई पर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘‘ दोनों पार्टियों के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई ने विपक्षी एकता की कमी को उजागर कर दिया है। तृणमूल और कांग्रेस किसी मुकाम पर नहीं पहुंचेंगे।’’

राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम कहते हैं, ‘‘ये पार्टियां- तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी- कांग्रेस से ही पैदा हुई हैं। इसलिए उनके अस्तित्व और विकास के लिए कांग्रेस विरोध कायम रखने की जरूरत है। अगर कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर होती है तो ये पार्टियां उसका स्थान लेने की कोशिश करेंगी। साथ ही पश्चिम बंगाल चुनाव में जीत के बाद तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने वाली ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री की कुर्सी के दावेदार के तौर पर देखा जा सकता है।’’

राजनीतिक विश्लेषक विश्वजीत चक्रवर्ती ने आगाह किया कि विपक्षी ताकतों के बीच की लड़ाई भाजपा के पक्ष में जा सकती है।

एक अन्य विश्लेषक सुमन भट्टाचार्य ने कहा कि अंतत: दोनों पार्टियां हाथ मिलाएंगी, भले यह आम चुनाव के पहले हो या उसके बाद। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में लेने का असर विपक्षी एकता पर नहीं पड़ेगा। अगर ऐसा होता तो कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र में सफलतापूर्वक सरकार चलाने में सफल नहीं होतीं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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