Highlightsभारत को जीत के लिए 407 रनों की जरूरत थी, लेकिन टीम 5 विकेट पर 334 रन ही बना सकी।क्रीज पर आते ही हनुमा विहारी को चोट का सामना करना पड़ा। लेकिन वो डटे रहे।अपनी टीम को बचाने के लिए विहारी ने कमाल की बल्लेबाजी की और सभी का दिल जीत लिया।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सिडनी में खेला गया तीसरा टेस्ट ड्रॉ पर आकर समाप्त हुआ। इस मैच का ड्रा होना भारत के लिए जीत से कम नहीं है। हनुमा विहारी और अश्विन ने 256 गेंदों में नाबाद 62 रनों की पार्टनरशिप कर भारत को इस सीरीज में अभी बनाए रखा। इन दोनों ही खिलाड़ियों ने आखिरी सेशन में कोई विकेट नहीं गिरने दिया और मैच को ड्रा कराने में सफलता हासिल की।
मस्ट्रिंग इंजरी से जूझ रहे हनुमा विहारी ने 161 गेंदो में नाबाद 23 रनों की पारी खेली। हनिमा विहारी की इस पारी को हर कोई सलाम कर रहा है। आईसीसी ने भी ट्वीट कर सिडनी टेस्ट मैच के पांचवें और आखिरी दिन हनुमा विहारी के जज्बे को सलाम किया है। वहीं क्रिकबज के रिपोर्टर भरत सुंदरेशन ने विहारी के बचपन का एक किस्सा ट्वीट पर फैंस के साथ शेयर किया।
पिता की मौत के बाद बिहार ने अपने स्कूल को जिताया था मैच
भरत सुंदरेशन ने लिखा कि जब हनुमा विहारी ने सिर्फ 12 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था, तो उसके बाद अगले 4-5 दिनों तक उनका कोई अता-पता नहीं था। वो किसी को नहीं मिल पा रहे थे। बाद में उनकी मां को यह खबर मिली की उनका बेटा स्कूल की टीम के लिए एक मैच जिताउ पारी खेल रहे हैं। विहारी ने स्कूल के मैच में 82 रनों की पारी खेलकर टीम को मैच जिताया था।
हनुमा को बचपन से ही था क्रिकेट खेलने का जुनून
महज 4 साल की उम्र में हनुमा क्रिकेट को लेकर आकर्षित हो चुके थे। धीरे-धीरे ये आकर्षण जुनून में बदलने लगा। अब तक हनुमा की स्किल्स में भी काफी सुधार आ चुका था। उनका इस खेल में टैलेंट दिखने लगा था। पड़ोसियों को भी कहीं ना कहीं ये उम्मीद होने लगी थी कि ये लड़का एक दिन भारत के लिए जरूर खेलेगा। बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए मां ने भविष्य को लेकर योजना बनाते हुए खुद पोस्ट-ग्रेजुएश की पढ़ाई शुरू कर दी, ताकि जब हनुमा की पढ़ाई पूरी हो जाए, तो पिता वॉलंटरी रिटायरमेंट लेकर बेटे पर फोकस करें और वह खुद कोई नौकरी कर ले, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
पिता की मौत के बाद मां ने बढ़ाया हौसला
हनुमा 12 साल के ही थे, जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। मां ने इस परिस्थिति में भी हार नहीं मानी और बेटे को क्रिकेट पर फोकस करने के लिए कहा। खुद हनुमा ने एक इंटरव्यू में क्रिकबज को बताया था कि मेरी मां बहुत हिम्मती हैं। वह किसी भी परिस्थिति में नहीं घबरातीं। आप इसे उनकी पहचान कह सकते हैं। मां ने हनुमा की क्षमताओं पर कभी संदेह नहीं किया। उन्हें यकीन था कि बेटा एक दिन देश के लिए जरूर खेलेगा।