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मंडियों के बाहर व्यापार हुआ तो 4-5 साल बाद एमएसपी मिलने की क्या गारंटी होगी: किसान

By भाषा | Updated: November 30, 2020 22:44 IST

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नयी दिल्ली, 30 नवंबर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान आने वाले समय में न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त होने को लेकर चिंता जता रहे हैं। उन्हें यह आशंका भी है कि इन कानूनों से वे निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे।

यहां सिंघु बार्डर पर एक प्रदर्शनकारी किसान रणवीर सिंह ने कहा, ‘‘मैंने एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडी में लगभग 125 क्विंटल खरीफ धान बेचा है और अपने बैंक खाते में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का भुगतान प्राप्त किया है। लेकिन क्या गारंटी है कि अगर मंडियों के बाहर इस तरह के व्यापार की अनुमति रही तो यह (एमएसपी की व्यवस्था) जारी रहेगी। यह हमारी चिंता है।’’

पंजाब के तरनतारन जिले के शहबाजपुर गांव के प्रधान 44 वर्षीय रणवीर सिंह, अपने साथी किसानों के साथ छह ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में इस सर्दियों में लगभग 425 किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली की सीमा पर पहुंचे हैं।

लगभग 32 से अधिक किसान संगठनों से जुड़े अन्य प्रदर्शनकारी किसानों की तरह, उनकी एकमात्र मांग केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए ‘‘तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करना’’ है जिसके बारे में उन्हें डर है कि यह एमएसपी व्यवस्था को ध्वस्त कर देगा और अगली पीढ़ी के किसानों को निजी कंपनियों के शोषण के फंदे में डाल देगा।

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम एमएसपी प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन हमें यकीन नहीं है कि हम इसे 4-5 साल बाद भी प्राप्त कर पायेंगे। यह लड़ाई अगली पीढ़ी के किसानों के हितों की रक्षा के लिए है।’’

किसानों के समक्ष मंडियों के बाहर व्यापार करने के लिए नए कानूनों के तहत कई विकल्प दिए गए हैं, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह केवल मौजूदा सरकार की एपीएमसी मंडी प्रणाली को कमजोर करेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की तरह, नए कृषि कानून केवल हमारी मंडियों को कमजोर करेंगे। हम जानते हैं कि मंडियां खत्म नहीं होंगी, लेकिन अगले कुछ वर्षों में निजी कारोबारियों का प्रवेश, मंडी व्यवस्था को ही खत्म कर देगा।’’

पटियाला के 60 वर्षीय एक अन्य किसान बख्शीश सिंह ने कहा, ‘‘हम केंद्र से केवल एक आश्वासन की मांग कर रहे हैं कि यदि हम मंडी के बाहर अपनी उपज बेचते हैं तो अडाणी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों की कंपनियां एमएसपी से नीचे खरीद नहीं करेंगी।’’

उन्होंने यह भी कहा कि निजी कंपनियों के प्रवेश ने शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक के कई सरकारी क्षेत्रों को कमजोर कर दिया है। निजी अस्पतालों में गरीबों का इलाज मुश्किल है।

यह बताने जाने पर कि नए कानून के तहत केंद्र ने सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) और जिला कलेक्टर स्तर पर विवाद समाधान तंत्र के लिए प्रावधान किया है, सिंह ने कहा, ‘‘वे सरकारी लोग हैं और वे किसानों के बजाय निजी कंपनियों का पक्ष लेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जब मौजूदा व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है, तो नए कानूनों के क्या मायने हैं। यहां तक ​​कि आढ़तिया (बिचौलिए) भी निजी कारोबारी हैं, लेकिन हम उनके साथ कई साल से काम कर रहे हैं।’’

विरोध प्रदर्शन में भाग लेने दिल्ली आये अमृतसर जिले के बाथू चक गाँव के एक अन्य किसान बलविंदर सिंह का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा किसानों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया जाता है, वह विश्वास नहीं जगाता, चाहे सरकार दावा करे कि ये सारे कानून किसान समुदाय के हित में हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चालू खरीफ सत्र में अब तक सरकार की धान खरीद 18.60 प्रतिशत बढ़कर 316.93 लाख टन हो गई है। जिसमें से अकेले पंजाब ने 202.74 लाख टन का योगदान दिया है जो कुल खरीद का 63.97 प्रतिशत हिस्सा है।

पटियाला जिले से दिल्ली आने वाले 60 वर्षीय जगवीर सिंह ने कहा, ‘‘हम यहां शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं। हमें विरोध करने का अधिकार है - चाहे अच्छा या बुरा। हम गुंडे नहीं हैं, जो कुछ मंत्री हमारे बारे में कह रहे हैं। हम केंद्र सरकार द्वारा कानूनों को निरस्त करने के बाद ही गृहनगर लौटेंगे।”

अधिकतर प्रदर्शनकारी किसान केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए सभी तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी चिंताएं मोटे तौर पर केवल एक कानून - किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम (एफपीटीसी) से संबंधित है।

किसानों ने यह भी दावा किया कि वे अपनी इच्छा से विरोध कर रहे हैं ना कि कोई राजनीतिक दलों ने उन्हें ऐसा करने के लिये कहा है।

कई सारे ट्वीट के जरिये केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कुछ किसान निकायों और विपक्षी दलों द्वारा कृषि कानूनों की आलोचना का खंडन किया।

उन्होंने कहा कि किसानों के एमएसपी नहीं देना पड़े उसके लिए कृषि कानून का षडयंत्र किया गया है, ऐसी भ्रांतियों को फैलाया जा रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि इन कानूनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लेना-देना नहीं है। ‘‘एमएसपी लागू है और लागू रहेगा।’’

केन्द्रीय मंत्री का दावा है कि बड़ी कंपनियां इन कानूनों का पालन करते हुए किसानों का शोषण नहीं कर सकेंगी, क्योंकि किसान बिना किसी दंड के, किसी भी समय अनुबंध से बाहर जा सकते हैं।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘‘कृषि कानूनों के बारे में गलत धारणाएं न रखें। पंजाब के किसानों ने पिछले साल की तुलना में मंडी में अधिक एमएसपी पर ज्यादा धान बेचा है। एमएसपी कायम है और मंडी भी। और सरकारी खरीद भी हो रही है।’’

सरकार की प्रतिक्रिया से क्षुब्ध, भारत किसान यूनियन (डाकुन्डा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, ‘‘हम सरकार के साथ बिना किसी शर्त के वार्ता करना चाहते हैं। हम चर्चा के लिए तब तक नहीं आएंगे, जब तक कि हमारे कुछ किसान जो बुरारी मैदान में हैं, उन्हें आने की अनुमति नहीं दी जाती है। यह एक मिनी जेल है।’’

अपनी मांगों को लेकर पंजाब के सैकड़ों किसान अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में दिल्ली की सीमाओं तक पहुंचे हैं। उनका कहना है कि अब गेंद, केन्द्र सरकार के पाले में है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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