(बिजय कुमार सिंह)
नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर भारतीय अर्थव्यस्था की बुनियाद मजबूत है और बीते वित्त वर्ष में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पहले ही महामारी-पूर्व के स्तर को पार कर चुका है। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने रविवार को यह बात कही।
पनगढ़िया ने पीटीआई-भाषा से साक्षात्कार में कहा कि सरकार को जल्द से जल्द कोविड-19 महामारी पर निर्णायक तरीके से ‘जीत‘ हासिल करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘‘टीकाकरण के मोर्चे पर खबर शानदार है। मैं सिर्फ यह चाहूंगा कि हमारे नागरिक अपनी ओर से प्रयास करें तथा किसी अन्य के संपर्क में आने पर मास्क पहनें।’’
उन्होंने कहा कि 2020-21 की तीसरी और चौथी तिमाही में वास्तविक जीडीपी पहले ही महामारी के पूर्व के स्तर को पार कर चुकी है। इन तथ्यों से पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है।’’
इस बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था ने चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून की तिमाही में रिकॉर्ड 20.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। इसकी वजह यह पिछले साल का कमजोर आधार प्रभाव है। कोविड-19 की दूसरी लहर के बावजूद विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों ने भी अच्छी वृद्धि दर्ज की है।
विभिन्न विशेषज्ञों के अनुमानों के अनुसार भारत इस साल दुनिया में सबसे तेज वृद्धि हासिल करने की राह पर है। भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि दर के अनुमान को 10.5 से घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया है।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया ने कहा कि आम धारणा के उलट भारत में निश्चित रूप से निजी निवेश बढ़ना शुरू हो गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘बीते वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान सकल निश्चित पूंजी सृजन (जीएफसीएफ) जीडीपी के क्रमश: 33 प्रतिशत और 34.3 प्रतिशत पर रहा है, जो एक साल पहले की महामारी पूर्व की तिमाहियों से अधिक है।’’
विदेशी पूंजी के प्रवाह पर एक सवाल के जवाब में पनगढ़िया ने कहा कि यह स्पष्ट है कि इसकी वजह सिर्फ मात्रात्मक सुगमता (क्यूई) नहीं है।
उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से क्यूई से आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी का प्रवाह होता है, लेकिन इसमें इस बात की गारंटी नहीं है कि यह पूंजी सिर्फ भारत में ही आएगी और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में नहीं जाएगी। उन्होंने कहा कि यह पूंजी भारतीय अर्थव्यवस्था में मिलने वाले ऊंचे रिटर्न की वजह से यहां आती है।
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में प्रोत्साहनों को कम किए जाने के बीच पनगढ़िया ने कहा कि इससे चीजें कुछ पलट सकती हैं, लेकिन अंतिम नतीजा इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत में कितना ऊंचा रिटर्न मिलता है।
ऐसे समय जबकि अर्थव्यवस्था की वृद्धि सुस्त है, शेयर बाजारों में तेजी पर उन्होंने कहा कि संभवत: यह इससे जुड़ा नहीं है, लेकिन ऐसा जरूरी भी नहीं है। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि शेयरों के मूल्य भविष्य के रिटर्न की उम्मीदों से निर्धारित होते हैं।
हाल में इस तरह की चर्चाओं कि विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल बुनियादी ढांचा विकास तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुन:पूंजीकरण के लिए किया जाना चाहिए, पनगढ़िया ने कहा कि सामान्य तौर पर वह मौद्रिक नीति और आरबीआई के एफएक्स परिचालन को राजकोषीय नीति के साथ जोड़ने के पक्ष में नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक से सरकार को कोष के प्रवाह में पारदर्शिता होनी चाहिए।
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