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शारदा चिटफंड घोटाला: ED ने पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी के खिलाफ जारी किया समन

By स्वाति सिंह | Updated: June 18, 2018 15:14 IST

नलिनी से ईडी के कोलकाता कार्यालय में 20 जून को पूछताछ किया था।  इससे पहले उन्हें सात मई को हाजिर होने के लिए समन भेजा गया था लेकिन उन्होंने इसे मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

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नई दिल्ली, 18 जून: शारदा चिटफंड घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)  ने सोमवार को पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के खिलाफ ताजा समन जारी किया है। बताया जा रहा है कि नलिनी से ईडी के कोलकाता कार्यालय में 20 जून को पूछताछ किया था।  इससे पहले उन्हें सात मई को हाजिर होने के लिए समन भेजा गया था लेकिन उन्होंने इसे मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

बता दें कि पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम पेशे से एक वकील है। इससे पहले उन्हों ने ईडी के समन को लेकर अपनी अपील में न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम के 24 अप्रैल के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उन्होंने ईडी के समन के खिलाफ नलिनी की याचिका को खारिज कर दिया गया था। अदालत ने उनकी इस दलील को नहीं माना कि किसी महिला को जांच के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत उसके घर से दूर नहीं बुलाया जा सकता। अदालत ने कहा कि इस तरह की छूट कोई अनिवार्य नहीं है और यह संबंधित मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। 

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न्यायाधीश ने ईडी को नलिनी के नाम नया समन जारी जारी करने को कहा था। इसके बाद एजेंसी ने 30 अप्रैल को समन जारी कर उन्हें सात मई को उपस्थित होने को कहा। एजेंसी ने कहा कि वह इस मामले से उनके संबंध पर धन शोधन रोधक कानून (पीएमएलए) के तहत बयान दर्ज करना चाहती है। ईडी ने सबसे पहले नलिनी को सात सितंबर , 2016 को समन कर सारदा चिट फंड घोटाले में गवाह के रूप में कोलकाता कार्यालय में पेश होने को कहा था। नलिनी को कथित रूप से अदालत और कंपनी विधि बोर्ड में टीवी चैनल खरीद सौदे में सारदा समूह की ओर से उपस्थिति होने के लिए 1। 26 करोड़ रुपये की फीस दी गयी थी। 

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ईडी और सीबीआई उनसे इस मामले में पहले भी पूछताछ कर चुकी हैं। एजेंसी सूत्रों ने दावा किया कि कुछ नए प्रमाण मिलने के बाद उन्हें नए सिरे से समन किया गया है। मद्रास उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान नलिनी ने कहा था कि यह समन राजनीति से प्रेरित है जो उनकी छवि को खराब करने के लिए जारी किया गया है। उन्होंने कहा था कि किसी आरोपी का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिवक्ता द्वारा फीस ले जाती है और यह कोई अपराध नहीं है। प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में कोलकाता की विशेष पीएमएलए अदालत में 2016 में आरोपपत्र दायर किया था। 

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