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दिवाला प्रक्रिया वाली कंपनियों की सूचीबद्धता के नियमों में ढील, म्यूचुअल फंडों पर नियम कड़े

By भाषा | Updated: December 16, 2020 23:40 IST

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नयी दिल्ली, 16 दिसंबर पूंजी बाजार नियामक सेबी की पूंजी बाजार को बढ़ावा देने और इसे निवेशकों के लिये बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास जारी हैं। सेबी ने बुधवार को दिवाला प्रक्रिया के तहत गई कंपनियों के लिये 25 प्रतिशत नयूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियम में बदलाव करने के साथ ही म्यूचुअल फंड की संपत्ति और देनदारी को अलग अलग रखने का फैसला किया। सेबी ने अनुवर्ती सार्वजनिक पेशकश में कंपनी के प्रवर्तकों की भागीदरी संबंधी नियमों को भी सरल बनाया है।

म्यूचुअल फंड के मामले में नियामक ने मुनाफा मानदंडों को उदार बनाया है और म्यूचुअल फंड का प्रायोजक बनाने वाली कंपनियों के लिये न्यूनतम 100 करोड़ रुपये की नेटवर्थ होने की आवश्यकता रखी है। सेबी द्वारा जारी वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अनुवर्ती सार्वजनिक पेशकश (एफपीओ) में कंपनी के प्रवर्तकों के न्यूनतम योगदान के नियम को समाप्त कर दिया है और निर्दिष्ट प्रतिभूतियों के मामले में एफपीओ लाने वाले जारीकर्ता के लिये लॉक- इन की आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया। वर्तमान में प्रवर्तकों को एफपीओ में 20 प्रतिशत योगदान करना होता है। साथ ही सार्वजनिक तौर पर पूंजी जारी करने पर प्रवर्तक की न्यूनतम भागीदारी को तीन साल तक बंदिश (लॉक- इन) में रखा जाता है।

सेबी निदेशक मंडल की बुधवार को हुई बैठक में ये फैसले लिये गये। बैठक के बाद जारी वक्तव्य में कहा गया है कि बाजार मध्यस्थों के मामले में भी नियमनों में संशोधन को मंजूरी दी गई। सक्षम प्राधिकरण के समक्ष और प्राधिकृत सदस्य के मामले में प्रक्रिया के दोहरीकरण से बचने के लिये नियमों में संशोधन को मंजूरी दी गई है।

दिवाला एवं रिण शोधन प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के मामले में उनमें न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता आवश्यकता के नियम में बदलाव को मंजूरी दी गई है। यह कदम समाधान योजना के बाद कर्जदार कंपनी के पुनरुत्थान और अगले तीन साल के दौरान शेयरधारकों को सूचीबद्धता से होने वाले लाभ को सुनिश्चित करेगा।

सेबी बोर्डने म्यूचुअल फंड क्षेत्र के लिये लाये गये कुछ प्रस्तावों को भी मंजूरी दे दी। इनमें म्यूचुअल फंड योजना के तहत उनकी संपत्ति और उनकी देनदारियों को अलग- अलग करने और सुरक्षित रखे जाने के प्रावधान शामिल है। यह वर्तमान में ऐसे कोषों के लिये उनके बैंक खातों और प्रतिभूति खातों को अलग अलग रखने की आवश्यकता के अतिरिक्त उठाया गया कदम है।

सैम्को सिक्युरिटीज में रैकएमएफ के प्रमुख ओंकेश्वर सिंह ने कहा कि म्यूचुअल फंड क्षेत्र के लिये नियमों में दी गई राहत से इस क्षेत्र में म्यूचुअल फंड के प्रायोजक बनने में नये उद्यमियों के आने का रास्ता खुल जायेगा।

सेबी ने वैकल्पिक निवेश कोषों (एआईएफ) को निवेश समिति सदस्यों और संशोधित मध्यस्थों से जुड़े नियमों में कुछ छूट देने का फैसला किया है। एआईएफ को दी गई छूट में कुछ शर्त भी रखी गई है।

सेबी ने कहा है कि दिवाला प्रक्रिया से गुजरने वाली कंपनियों को शेयर बाजारों में फिरसे सूचीबद्ध होने के समय उनमें कम से कम पांच प्रतिशत सार्वजनिक शेयरधारिता होनी जरूरी हैं। वर्तमान में इस तरह के कोई न्यूनतम आवश्यकता नहीं है। इसके बाद ऐसी कंपनियों को 10 प्रतिशत सार्वजनिक शेयरधारिता पाने के लिये 12 महीने और 25 प्रतिशत तक पहुंचने के लिये 36 महीने का समय होगा। वर्तमान में ऐसी कंपनियों की सार्वजनिक शेयरधारिता 10 प्रतिशत से कम होने पर उसे फिर से 10 प्रतिशत करने के लिये 18 महीने और 25 प्रतिशत पर पहुंचाने के लिये तीन साल का समय दिया गया है।

ऐसी कंपनियों के विभिन्न खुलासा नियमों को भी विस्तार किया गया है।

एफपीओ में प्रवर्तकों के मामले में दी गई दूट पर सेबी ने कहा है कि यह छूट उन्हीं कंपनियों को उपलब्ध होगी जिनके शेयरों की कम से कम तीन साल तक स्टॉक एक्सचेंज में खुले तौर पर खरीद फरोख्त होती रही है। इसके साथ ही इन कंपनियों ने शेयरधारकों की 95 प्रतिशत शिकायतों का भी निपटारा किया हो साथ ही सूचीबद्धता दायित्व और खुलासा आवश्यकता का नियमित रूप से पालन किया हो।

म्युचुअल फंड के प्रायोजन की पात्रता के मामले में सेबी ने कहा है कि जो प्रायोजक आवेदन करने के समय मुनाफा संबंधी मानदंड को पूरा नहीं करते हैं, उन्हें भी म्यूचुअल फंड के प्रायोजक के लिये पात्र माने जाने पर विचार किया जायेगा। यह कदम इस क्षेत्र में नवोन्मेष और विस्तार को बढ़ावा देने के लिये उठाया गया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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