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भारतीय रिजर्व बैंक ने SBI पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया, आखिर क्या है कारण

By भाषा | Updated: November 26, 2021 21:55 IST

केंद्रीय बैंक के अनुसार वित्तीय स्थिति के संदर्भ में 31 मार्च 2018 और 31 मार्च 2019 के बीच एसबीआई के निगरानी संबंधी मूल्यांकन को लेकर वैधानिक निरीक्षण किया गया था।

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ठळक मुद्देरिपोर्ट में बैंकिंग विनियमन अधिनियम के एक प्रावधान का उल्लंघन पाया गया।कंपनियों की चुकता शेयर पूंजी के तीस प्रतिशत से अधिक की राशि शेयर गिरवी के रूप में रखा था।बैंक के जवाब पर विचार करने के बाद जुर्माना लगाने का निर्णय किया गया।

मुंबईः भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) पर नियामकीय अनुपालन में कमी को लेकर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। आरबीआई ने शुक्रवार को एक बयान में बताया कि 16 नवंबर, 2021 को जारी एक आदेश में यह जुर्माना लगाया गया है।

केंद्रीय बैंक के अनुसार वित्तीय स्थिति के संदर्भ में 31 मार्च 2018 और 31 मार्च 2019 के बीच एसबीआई के निगरानी संबंधी मूल्यांकन को लेकर वैधानिक निरीक्षण किया गया था। आदेश के अनुसार जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट की जांच, निरीक्षण रिपोर्ट में बैंकिंग विनियमन अधिनियम के एक प्रावधान का उल्लंघन पाया गया।

एसबीआई ने उधारकर्ता कंपनियों के मामले में कंपनियों की चुकता शेयर पूंजी के तीस प्रतिशत से अधिक की राशि शेयर गिरवी के रूप में रखा था। आरबीआई ने इसके बाद इस मामले में एसबीआई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। बैंक के जवाब पर विचार करने के बाद जुर्माना लगाने का निर्णय किया गया।

रिजर्व बैंक ने निजी बैंक के प्रवर्तकों को 15 साल बाद 26% तक हिस्सेदारी रखने की मंजूरी दी

रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को निजी क्षेत्र के बैंकों के कॉरपोरेट स्वामित्व पर अपने कार्यकारी समूह की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार करते हुए परिचालन के पहले पांच वर्षों में प्रवर्तकों की बिना किसी सीमा के शेयरधारिता और 15 साल बाद उसे मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने की मंजूरी दे दी।

रिजर्व बैंक ने साथ ही नयी पूंजी जरूरतों के संबंध में भी मंजूरी दे दी। इस कदम से कोटक महिंद्रा बैंक और इंडसइंड बैंक जैसे प्रमुख बैंकों को फायदा होगा, जो कई वर्षों से नियामक से अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए और समय मांग रहे थे। केंद्रीय बैंक ने आंतरिक कार्य समूह की 33 सिफारिशों में से 21 को स्वीकार करते हुए कहा कि शेष सुझावों पर विचार किया जा रहा है।

रिजर्व बैंक ने 12 जून, 2020 को कार्य समूह का गठन किया और इस समिति ने 20 नवंबर, 2020 को रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें हितधारकों और जनता के सदस्यों की टिप्पणियां 15 जनवरी, 2021 तक मांगी गयी थीं। केंद्रीय बैंक ने समिति की इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया कि पहले पांच वर्षों के लिए बैंक की चुकता वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी का न्यूनतम 40 प्रतिशत रखने की प्रारंभिक लॉक-इन जरूरतों से संबंधित मौजूदा निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन कहा कि इस अवधि में प्रवर्तकों की शेयरधारिता पर कोई सीमा नहीं होगी।

समिति की रिपोर्ट यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रवर्तक बैंकों में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी बनाए रखें, और व्यवसाय ठीक से स्थापित एवं स्थिर होने तक प्रवर्तक समूह के नियंत्रण की विश्वसनीयता बनी रहे, पहले पांच वर्षों के लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बनाए रखने का समर्थन करता है। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि प्रवर्तक शुरुआती वर्षों में बैंक को जरूरी रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध रहे।

एक और महत्वपूर्ण बदलाव वह यह है कि प्रवर्तकों को बैंक शुरू करने के लिए और पैसा लाना होगा क्योंकि रिजर्व बैंक ने नए बैंकों को लाइसेंस देने के लिए न्यूनतम प्रारंभिक पूंजी संबंधी जरूरत से जुड़ी सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।

रिजर्व बैंक ने प्रारंभिक पूंजी जरूरतों से जुड़ी सिफारिशों को स्वीकार करते हुए कहा है कि विविध बैंकिंग गतिविधियों में शामिल बैंकों के लिए प्रारंभिक चुकता वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी/कुल संपत्ति किसी नए बैंक के लिए जरूरी, मौजूदा 500 करोड़ रुपये से पांच साल में बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये किया जा सकता है।

इसी तरह लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के लिए यह मौजूदा 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये, एसएफबी का रूप लेने वाले शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए मौजूदा 100 करोड़ रूपये से बढ़ाकर 150 करोड़ रुपये किया जा सकता है।

टॅग्स :भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)SBI
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