करेंसी छापकर राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण नहीं करे रिजर्व बैंक : पिनाकी चक्रवर्ती

By भाषा | Updated: July 4, 2021 15:16 IST2021-07-04T15:16:39+5:302021-07-04T15:16:39+5:30

RBI should not finance fiscal deficit by printing currency: Pinaki Chakraborty | करेंसी छापकर राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण नहीं करे रिजर्व बैंक : पिनाकी चक्रवर्ती

करेंसी छापकर राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण नहीं करे रिजर्व बैंक : पिनाकी चक्रवर्ती

(बिजय कुमार सिंह)

नयी दिल्ली, चार जुलाई प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पिनाकी चक्रवर्ती का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक को राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिए करेंसी नहीं छापनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह वित्तीय अपव्यय होगा।

चक्रवर्ती ने पीटीआई-भाषा से साक्षात्कार में रविवार को उम्मीद जताई कि यदि कोई बड़ी तीसरी लहर नहीं होती है, तो भारत का आर्थिक पुनरुद्धार अधिक तेजी से होगा।

राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) के निदेशक चक्रवर्ती ने कहा कि ऊंची मुद्रास्फीति निश्चित रूप से चिंता की बात है। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को ऐसे स्तर पर स्थिर करने की जरूरत है, जिसका आसानी से प्रबंधन हो सके।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह बहस महामारी की शुरुआत के साथ शुरू हुई थी। राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिए करेंसी छापने पर विचार नहीं हुआ। मुझे नहीं लगता कि रिजर्व बैंक कभी ऐसा करेगा।’’

चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘रिजर्व बैंक और सरकार के बीच सहमति ज्ञापन (एमओयू) के तहत हमने 1996 में इसे रोक दिया था। हम इसकी ओर वापस नहीं लौटना चाहिए।’’

हाल के समय में विभिन्न हलकों से यह मांग की जा रही है कि केंद्रीय बैंक को करेंसी की छपाई कर राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण करना चाहिए। रिजर्व बैंक द्वारा राजकोषीय घाटे के मौद्रिकरण का आशय यह है कि केंद्रीय बैंक सरकार के किसी आपात खर्च को पूरा करने के लिए करेंसी छापे और राजकोषीय घाटे को पूरा करे।

चक्रवर्ती ने कहा कि भारत की मौजूदा वृहद आर्थिक स्थिति निश्चित रूप से कोविड-19 की पहली लहर की तुलना में अच्छी है।

‘यदि काई बड़ी तीसरी लहर नहीं आती है, तो निश्चित रूप से आगे चलकर हमें अधिक तेज आर्थिक पुनरुद्धार देखने को मिलेगा।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह महामारी के दौरान रोजगार गंवाने वालों को नकदी प्रोत्साहन के पक्ष में हैं, उन्होंने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौरान हम रोजगार चक्र का बचाव नहीं कर सकते। रोजगार बढ़ाने के लिए तेज पुनरुद्धार सबसे जरूरी है।’’

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लघु अवधि में वित्तीय उपायों के जरिये उपलब्ध कराए गए समर्थन से आजीविका को लेकर कुछ सुरक्षा मिलनी चाहिए।

सरकार के सभी प्रोत्साहन उपायों के रोजकोषीय प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर चक्रवर्ती ने कहा कि प्रोत्साहनों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार है।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रोत्साहन की क्षेत्रवार प्रकृति को समझने की जरूरत है, न कि यह सोचने कि इसे बजट के जरिये दिया गया है या अन्य तरीकों से।’’ उन्होंने कहा कि जहां तक बजटीय प्रोत्साहनों की बात है, तो पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9.5 प्रतिशत रहा था।

उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकारों के राजकोषीय घाटे की बात करें, तो यह राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) के करीब 4.5 प्रतिशत रहा था। ऐसे में कुल मिलाकर राजकोषीय घाटा जीडीपी के 14-15 प्रतिशत के बराबर है।

एनआईपीएफपी के निदेशक ने कहा कि ऐसे में खर्च को बढ़ाने की गुंजाइश सीमित है।

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