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आरबीआई ने नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया, वृद्धि दर अनुमान 9.5 प्रतिशत पर बरकरार

By भाषा | Updated: August 6, 2021 12:53 IST

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नयी दिल्ली, छह अगस्त भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को उम्मीद के अनुरूप प्रमुख नीतिगत दर रेपो में कोई बदलाव नहीं किया और इसे रिकार्ड न्यूनतम स्तर पर बरकरार रखा। इसके साथ केन्द्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था के अभी तक पूरी तरह से कोविड-19 संकट से नहीं उबर पाने के कारण मौद्रिक नीति के रुख को नरम बनाये रखने का भी फैसला किया।

आरबीआई ने आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने और वृद्धि को गति देने के इरादे से यह कदम उठाया। रेपो दर वह दर है जिस पर वाणिज्यक बैंक केंद्रीय बैंक से फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिये अल्पकालीन कर्ज लेता है।

छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आम सहमति से रेपो दर को चार प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर बरकरार रखने का निर्णय किया। हालांकि नरम रुख के मामले में वोट विभाजित रहा और छह में से एक सदस्य इसके पक्ष में नहीं थे।

यह लगातार सातवां मौका है, जब रेपो दर के मामले में यथास्थिति बररार रखी गयी है। इससे पहले, आरबीआई ने मांग बढ़ाने के इरादे से 22 मई, 2020 को नीतिगत दर में बदलाव किया था और इसे रिकार्ड न्यूनतम स्तर पर लाया था।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने डिजिटल माध्यम से मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए कहा, ‘‘एमपीसी के सदस्यों ने आम सहमति से नीतिगत दर को यथावत चार प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय किया। समिति के छह में पांच सदस्यों ने आर्थिक वृद्धि को गति देने तथा मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अंतर्गत रखने के लिये जबतक जरूरत हो, मौद्रिक नीति रुख नरम बनाये रखने का फैसला किया है।’’

आरबीआई ने यह निर्णय ऐसे समय किया जब मुद्रास्फीति पिछले दो महीनों में लक्ष्य के तहत निर्धारित सीमा छह प्रतिशत से ऊपर पहुंच गयी है। इसके बारे में दास ने कहा कि यह अस्थायी है और शुरूआती पुनरूद्धार को गति देने के लिये अर्थव्यवस्था को सभी पक्षों की तरफ से नीतिगत... राजकोषीय और मौद्रिक नीति... समर्थन की जरूरत है।

केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 के लिये वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर को 9.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।

दास ने कहा कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिये पुनरूद्धार अभी संतुलित नहीं है और सभी नीति निर्माताओं से समर्थन की जरूरत है। ‘‘आरबीआई अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये जो भी जरूरत हो, चाहे वह मौद्रिक नीति हो या फिर नियामकीय...सभी प्रकार के कदम उठाने के लिये तैयार है।’’

मुद्रास्फीति पिछले वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में 5.9 प्रतिशत रही। अगली तिमाही में कुछ नरमी आयी लेकिन जनवरी-मार्च में फिर से बढ़कर 5.8 प्रतिशत पहुंच गयी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष 2021-22 की अप्रैल-जून तिमाही में 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

दास ने कहा, ‘‘आपूर्ति पक्ष को लेकर जो समस्याएं हैं, वह अस्थायी हो सकती हैं। जबकि अर्थव्यवस्था में सुस्ती को देखते हुए मांग के मामले में अभी दबाव कम है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस समय अगर मौद्रिक नीति को लेकर कोई कदम उठाया जाता है तो जो शुरूआती पुनरूद्धार है, उस पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।’’

दास के अनुसार जो भी आंकड़े हैं, वह यह बता रहे हैं कि आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है, वह अस्थायी है। यह एमपीसी के निर्णय की पुष्टि करता है।

आरबीआई ने कोविड संकट के प्रभाव से अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिये मार्च 202 से रेपो दर में 1.15 प्रतिशत की कटौती की है।

इसके अलावा, आरबीआई ने सदा सुलभ लक्षित दीर्घकालीन पुनर्वित्त परिचालन कार्यक्रम (टीएलटीआरओ) तीन महीने 31 दिसंबर, 2021 तक बढ़ाने का निर्णय किया। इससे बैंक अधिक समय तक दबाव वाले क्षेत्रों को कर्ज दे सकेंगे।

इसके साथ, विदेशी मुद्रा में निर्यात कर्ज को लेकर दिशानिर्देश में संशोधन किया गया है और महामारी से प्रभावित कंपनियों की मदद के लिये कर्ज पुनर्गठन छह महीने के लिये बढ़ाया गया है।

इसके अलावा, नकदी बढ़ाने के उपायों के तहत आरबीआई सरकारी प्रतिभूति खरीद कार्यक्रम (जी-सैप) 2.0 के तहत दो चरणों में 50,000 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों का अधिग्रहण करेगा।

रिजर्व बैंक की अगली मौद्रिक नीति समीक्षा 6 से 8 अक्टूबर को होगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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