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RBI की बोर्ड बैठक में मोदी सरकार से कई मुद्दों पर बातचीत जारी, बन सकती है सहमति 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 19, 2018 14:40 IST

केंद्रीय बैंक इस बात से चिंतित है कि यदि एनपीए यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (गैर निष्पादनीय परिसंपत्तियां) को कम नहीं किया जाता है तो इससे दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर जोखिम बढ़ सकता है। 

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केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच हाल के दिनों में कई स्तर पर गतिरोध देखने को मिला। इस पूरे मामले के कारण सरकार को विपक्षी पार्टियों ने निशाने पर लिया और आरबीआई की स्वायत्तता में दखलंदाजी का आरोप लगाया। मोदी सरकार के आरबीआई के खिलाफ सेक्शन 7 के इस्तेमाल करने की ख़बरों के बीच आज आरबीआई के बोर्ड की अहम बैठक हो रही है। ऐसा माना जा रहा ही कि इस बैठक में सरकार और आरबीआई के बीच कुछ मुद्दों पर आम सहमति बन सकती है। आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने बीते सप्ताह ही प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी जिसे जल्द से जल्द विवाद को सुलझाने के प्रयास के रूप में देखा गया था। 

सरकार और देश के केंद्रीय बैंक के बीच तकरार की ख़बरें उस वक़्त आईं जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने यह चेतावनी दी कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को कमज़ोर करना विनाशकारी हो सकता है. उन्होंने एक निजी कार्यक्रम में कहा था, "आरबीआई टेस्ट मैच खेल रही है वहीं सरकार टी 20 खेलने का प्रयास कर रही है"। उन्होंने अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दी थी कि जब भी देश की सरकार केंद्रीय बैंक के स्वायत्तता में दखल देती है वहां विनाश निश्चित होता है।

सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच मतभेद की असली वजह आरबीआई के कॅश रिज़र्व को लेकर है. ऐसी खबरें आयी थीं कि सरकार ने आरबीआई से 3.6 लाख करोड़ रुपये की मांग की थी जिसे आरबीआई ने ठुकरा दिया था. हालांकि सरकार ने उन रिपोर्ट्स का खंडन किया है कि उसने आरबीआई के कैश रिजर्व से 3.6 लाख करोड़ रुपये निकाल कर अर्थव्यवस्था में शामिल करने की कोई मांग की थी। आज की बैठक में इस पर भी चर्चा हो सकती है कि आरबीआई के पास कितनी सुरक्षित निधि रहनी चाहिए। वित्त मंत्री ने आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के सार्वजनिक रूप से दिए गए बयान की निंदा की थी क्योंकि सरकार का मानना था कि इससे निवेशकों का भरोसा कम होगा। 

अरुण जेटली ने बढ़ते हुए एनपीए के ग्राफ को लेकर आरबीआई की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि, "देश के बैंकों की तरफ से 2008 से लेकर 2014 तक मनमाने रूप से दिए गए लोन पर आरबीआई ने आँख मूंदे रखी जिसके कारण एनपीए में बेतहाशा वृद्धि हुई। अरुण जेटली के बयान का मतलब इससे भी निकाला जा सकता है कि हाल ही में देश के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बैंकों पर निशाना साधा है कि बैंकों ने निर्माण प्रोजेक्ट के लिए दिए जाने वाले लोन में भारी कटौती की है जिसके कारण कई प्रोजेक्ट का भविष्य अधर में लटक गया है। सरकार चुनावी साल में आरबीआई से ज्यादा से ज्यादा सहयोग की उम्मीद लगा रही है लेकिन आरबीआई अपनी मजबूरियां गिनाकर सरकार को राहत देने के मूड में नहीं दिख रहा है। 

केंद्रीय बैंक इस बात से चिंतित है कि यदि एनपीए यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (गैर निष्पादनीय परिसंपत्तियां) को कम नहीं किया जाता है तो इससे दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर जोखिम बढ़ सकता है। लेकिन प्रतिबंधों की वजह से कई बैंक आज कर्ज़ देने की स्थिति में नहीं हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश के बैंकों पर इस वक़्त एनपीए का बोझ 9 लाख करोड़ से भी ज्यादा हो गया है। सरकार और आरबीआई के बीच आज के बैठक में इन मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। केंद्रीय बैंक और मोदी सरकार के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनने के आसार हैं तो वहीं आरबीआई जटिल मुद्दों पर अपना पुराना रुख जारी रख सकता है।

टॅग्स :आरबीआईमोदी सरकार
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