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केवल तीन प्रतिशत पैकिंग वाले खाद्य पदार्थों के नमूनों में दो प्रतिशत वसा मौजूद: एफएसएसएआई सर्वे

By भाषा | Updated: September 22, 2021 20:30 IST

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नयी दिल्ली, 22 सितंबर खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने बुधवार को कहा कि पैकिंग वाले खाद्य पदार्थों के 6,245 नमूनों में से केवल 3.14 प्रतिशत यानी 196 में वसा की मात्रा दो प्रतिशत से अधिक पाई गई। अधिक मात्रा में वसा मोटापे का कारण बनती है।

खाद्य क्षेत्र के नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने एक बयान में कहा कि उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों के एक साल पहले वर्ष 2022 तक देश को औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा से मुक्त करने की पहल की है। इसके लिए उद्योगों में तैयार होने वाले पैकिंग वाले खाद्य उतपादों में वसा की मात्रा को दो प्रतिशत से कम रखना अनिवार्य किया गया है।

नियामक ने कहा कि बाजार की स्थिति का आकलन करने के लिए, उसने चयनित खाद्य श्रेणियों में ट्रांस-फैटी एसिड सामग्री की उपस्थिति के लिए एक सर्वेक्षण किया है। यह सर्वेक्षण क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) के साथ साझेदारी में किया गया।

छह पूर्व-निर्धारित खाद्य श्रेणियों के तहत विभिन्न पैकिंग वाले खाद्य पदार्थों के नमूने 34 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के 419 शहरों / जिलों से एकत्र किए गए।

बयान में कहा गया है, ‘‘सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चला है कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का, वर्ष 2022 तक खाद्य पदार्थों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा को खत्म करने के लिए एफएसएसएआई के विनियमन के बारे में सकारात्मक नजरिया है।’’

एफएसएसएआई ने कहा कि सर्वेक्षण के परिणाम ‘प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों में औद्योगिक वसा के अत्यधिक उपयोग की धारणा को ध्वस्त करते हैं।’ इस अध्ययन से पता चला है कि भारत वर्ष 2022 तक औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांसफैट को खत्म करने के अपने जनादेश को हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

ट्रांस-फैट में कुछ रासायनिक तत्व होते हैं जो कि ज्यादातर प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों जैसे कि बेकरी के सामान, जलपान उत्पाद, तले हुये उत्पादों तथा कुछ खाद्य तेलों में पाया जाता है। माना जाता है कि आहार में ट्रांस-वसा- हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर सहित कई बीमारियों में योगदान देता है। ट्रांस-वसा खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) के स्तर को बढ़ाता है और मानव शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) के स्तर को कम करता है। इससे ह्रदयाघात का खतरा बढ़ता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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