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सरकारी बैंकों के लिए 30 हजार करोड़ का बजट टॉनिक, क्या बदलेंगे हालात?

By विकास कुमार | Published: June 17, 2019 11:54 AM

बैंकों में पूंजी डालना सरकार का रूटीन वर्क है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के साथ-साथ एमएसएमई को एक बार फिर से लांच करने की जरूरत है ताकि अर्थव्यवस्था के मूल रूप को बदला जा सके.

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ठळक मुद्दे बैंकों में पूंजी डालना सरकार का रूटीन वर्क है. बैंक ऑफ बड़ोदा के साथ देना बैंक और विजया बैंक का विलय किया गया था. सरकार ने कुछ सरकारी बैंकों पर प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन(PCA) लगाया था.

8 लाख 64 हजार करोड़ के एनपीए(नॉन परफॉर्मिंग एसेट) के बोझ तले दबे सरकारी बैंकों की हालत खस्ताहाल है. आलम ये है कि ये बैंक रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में लगातार की जा रही कटौती का फायदा ग्राहकों को नहीं दे पा रहे हैं. कर्ज नहीं मिलने के कारण भारत का ऑटो सेक्टर मंदी की मार झेल रहा है. लोगों की खपत क्षमता में गिरावट आई है. कुल मिला कर इसका बहुत खराब असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. 

इन चुनौतियों के बावजूद सरकारी बैंकों की देश की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने में अहम योगदान रहता है. एमएसएमई सेक्टर के छोटे व्यापारियों को 70 फीसदी से ज्यादा कर्ज सरकारी बैंक ही मुहैया करवाते हैं. बीते वर्ष से सरकार ने बैंकों के विलयीकरण की प्रक्रिया अपनाई थी जिसके तहत बैंक ऑफ बड़ोदा के साथ देना बैंक और विजया बैंक का विलय किया गया था. 

NPA का दर्द 

एनपीए से कराह रहे आईडीबीआई बैंक को एलआईसी के हवाले किया गया था. बैंक से लिए गए किसी कर्ज पर अगर 90 दिनों तक कोई ब्याज नहीं मिलता है तो वह लोन एनपीए की श्रेणी में आ जाता है. सरकार ने कुछ सरकारी बैंकों पर प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन(PCA) लगाया था जिसके तहत कोई भी बैंक अपने ब्रांच का विस्तार नहीं कर सकता है. सरकार ने बीते वित्त वर्ष में बैंकों ने पुनः पूंजीकरण की प्रक्रिया के तहत 1 लाख 6 हजार करोड़ रुपये मुहैया करवाए थे. यह एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसका अनुपालन सरकार प्रति वर्ष करती है. 

हर साल सरकार के इस आधिकारिक प्रक्रिया को फॉलो करने के बावजूद भी सरकारी बैंकों का पुर्नजन्म क्यों नहीं हो रहा है? इसका सीधा जवाब देश की अर्थव्यवस्था से है. कर्ज लेने वाले लोग जब इसे समय पर नहीं चुका रहे हैं, इसका सीधा मतलब है कि मार्केट में लिक्विडिटी की कमी है.

सभी समस्याओं का एक ही हल 

उपभोक्ताओं की खपत क्षमता में आई गिरावट के कारण व्यापार में मंदी है. रोज़गार के अवसरों में भारी कमी है. पुराने रोज़गार भी छिन रहे हैं और नए रोज़गार को लेकर भी लोग आशान्वित नहीं हैं. 

कुल मिला कर सरकार की सबसे बड़ी चुनौती रोज़गार ही है. लोगों के पास पैसा होगा तो उसे खर्च करेंगे ही जिससे व्यापार भी रफ्तार पकड़ेगा. बैंकों में पूंजी डालना सरकार का रूटीन वर्क है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के साथ-साथ एमएसएमई को एक बार फिर से लांच करने की जरूरत है ताकि अर्थव्यवस्था के मूल रूप को बदला जा सके. 

टॅग्स :गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए)निर्मला सीतारमणइकॉनोमी
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