नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंगलवार (12 मई) को घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के चरण के तहत आज (15 मई) को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित की। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के प्रेस कांफ्रेंस का आज तीसरा चरण है। इस प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों के फायदे के लिए कई कदम उठाए हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में लागू हुआ था, अब देश में प्रचुर उत्पादन होता है हम निर्यात करते हैं। इसलिए इसमें बदलाव जरूरी है। अब अनाज, तिलहन, प्याज, आलू आदि को इससे मुक्त किया जाएगा। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि यह कानून क्या है और किसानों व अन्य लोगों से इसका क्या जुड़ाव है?
दरअसल, आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में भारत की संसद ने पारित किया था। तब से सरकार इस कानून की मदद से 'आवश्यक वस्तुओं' का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करती है ताकि ये चीजें उपभोक्ताओं को मुनासिब दाम पर उपलब्ध हों।
सरकार अगर किसी चीज को 'आवश्यक वस्तु' घोषित कर देती है तो सरकार के पास अधिकार आ जाता है कि वह उस पैकेज्ड प्रॉडक्ट का अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर दे। उस मूल्य से अधिक दाम पर चीजों को बेचने पर सजा हो सकती है। खाने-पीने की चीजें, दवा, ईंधन जैसे पेट्रोलियम के उत्पाद जिंदगी के लिए कुछ अहम चीजें हैं। अगर कालाबाजारी या जमाखोरी की वजह से इन चीजों की आपूर्ति प्रभावित होती है तो आम जनजीवन प्रभावित होगा। इसी वजह से लोगों के लिए आवश्यक समान बिना कालाबाजारी के कम कीमत में उप्लब्ध कराने के लिए इस कानून को बनाया गया है।
आपको बता दें कि करीब आधे दर्जन वस्तुओं को इस श्रेणी में डाल दिया गया है जिनमें से कुछ इस तरह से हैं। पेट्रोलियम और इसके उत्पाद, खाने की चीजें जैसे खाने का तेल और बीज, वनस्पति, दाल, गन्ना और इसके उत्पाद जैसे गुड़, चीनी, चावल और गेहूं, टेक्सटाइल्स, जरूरी ड्रग्स,फर्टिलाइजर्स आदि। इनके अलावा कई बार सरकार कुछ चीजों को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में डाल चुकी है और बाद में स्थिति सामान्य होने पर निकाल दिया गया है।
कभी लोह और स्टील समेत कई उत्पादों को आवश्यक वस्तु की सूची में डाला गया था। सामान्य तौर पर केंद्र सरकार किसी चीज को जमा करके रखने की अधिकतम सीमा तय करती है और राज्य अपने मुताबिक उस सीमा के अंदर कोई खास सीमा तय कर सकती हैं। राज्य और केंद्र के बीच किसी तरह का मतभेद होने पर केंद्र का नियम लागू होगा। स्थानीय स्तर पर खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग यह सुनिश्चित करता है कि कानून के प्रावधानों पर अमल हो।