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किसान आंदोलन: सरकार का बाचतीत से समाधान निकालने पर बल, किसान संगठन की विरोध तेज करने की धमकी

By भाषा | Updated: December 11, 2020 00:07 IST

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नयी दिल्ली, 10 दिसंबर सरकार ने नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की संभावना से बृहस्पतिवार को एक तरह से इनकार करते हुए किसान समूहों से इन कानूनों को लेकर उनकी चिंताओं के समाधान के लिए सरकार के प्रस्ताओं पर विचार करने की अपील की।

सरकार ने कहा कि जब भी यूनियन चाहें, वह अपने प्रस्ताव पर खुले मन से चर्चा करने के लिए तैयार है। सरकार की अपील के बावजूद किसानों का विरोध जारी रहा और उन्हों ने धमकी दी कि वे राजमार्गों के अलावा रेलवे पटरियों को भी अवरुद्ध करेंगे।

सरकार और किसान संगठनों रुख में इस अंतर के बीच प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की आधारशिला रखते हुए, गुरु नानक का स्मरण करते हुए वार्ता के महत्व को रेखांकित किया। मोदी ने प्रथम सिख गुरु के इस वचन का उल्लेख कि बातचीत अनंत काल तक होती रहनी चाहिये।

प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर लिखित आश्वासन देने के सरकार की पेशकश को ठुकराने और नए कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने के प्रस्ताव को खारिज करने के एक दिन बाद, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि किसान यूनियन के नेताओं को प्रस्तावों पर विचार करना चाहिए और वह उनके साथ आगे की चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन उन्होंने किसानों से अगले दौर की वार्ता के लिए तारीख प्रस्तावित करने जिम्मा किसान समूहों पर छोड़ दिया।

केंद्र सरकार और मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों के प्रतिनिधियों के बीच कम से कम पांच दौर की औपचारिक वार्ता हुई है। ये किसान लगभग दो सप्ताह से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

केन्द्र सरकार के कानून में कुछ संशोधन करने, एमएसपी और मंडी व्यवस्था जैसे मुद्दों पर लिखित आश्वासन अथवा स्पष्टीकरण देने के प्रस्ताव को ठुकराते हुए किसान यूनियनें इन नए कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़ी हैं।

खाद्य, रेलवे और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ संवाददाताओं को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि वह अब भी वार्ता के जरिए समधान निकलने को लेकर आशान्वित हैं।

कृषि मंत्री ने कहा, ‘‘सरकार किसानों से आगे और वार्ता करने को इच्छुक और तैयार है.. उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए, हमने किसान यूनियनों को अपने प्रस्ताव भेजे हैं। हमारी उनसे अपील है कि वे जितना जल्द से जल्द संभव हो वार्ता की तिथि तय करें। अगर उनका कोई मुद्दा है, तो उस पर सरकार उनसे वार्ता को तैयार है।’’

तोमर ने कहा कि जब वार्ता चल रही हो तो वे आंदोलन के अगले चरण की घोषणा करने के बजाय किसान संगठनों को वार्ता की मेज पर बैठना चाहिए।

उन्होंने कहा, "हमने किसानों को उनसे मिलने के बाद अपने प्रस्ताव दिए और इसलिए हम उनसे उन पर विचार करने का आग्रह करते हैं। यदि वे उन प्रस्तावों पर भी चर्चा करना चाहते हैं, तो हम इसके लिए भी तैयार हैं।"

यह पूछे जाने पर कि क्या विरोध के पीछे कोई और शक्तियां मौजूद हैं, तोमर ने इस प्रश्न का कोई सीधा जवाब नहीं दिया और कहा: "मीडिया की आँखें तेज हैं और हम इसका पता लगाने का काम उस पर छोड़ते हैं।’’

ठीक इसी सवाल के संदर्भ में गोयल ने कहा, ‘‘इसका पता लगाने के लिए प्रेस को अपनी खोजी क्षमता और दक्षता का उपयोग करना होगा।’’

उन्होंने कहा, "हम मानते हैं कि किसानों के कुछ मुद्दे हैं। हम किसानों का सम्मान करते हैं और उन्होंने हमारे साथ चर्चा की। हमने उन मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश की जो चर्चा के दौरान सामने आए। यदि मौजूदा प्रस्ताव के बारे में अन्य कोई मुद्दे हैं जिन पर चर्चा की जानी चाहिए या उनपर स्पष्टीकरण की आवश्यकता है तो हम उसके लिए भी तैयार हैं।

सरकार के प्रस्तावों को खारिज करते हुए किसान संगठनों ने बुधवार को कहा था कि वे अपने आंदोलन को तेज करेंगे तथा राष्ट्रीय राजधानी को जोड़ने वाले राजमार्गो को रोकेंगे क्योंकि सरकार की पेशकश में कुछ भी नयी बात नहीं है।

मंत्रियों की संवाददाता सम्मेलन के बाद, बृहस्पतिवार को किसान नेताओं ने धमकी दी कि यदि सरकार अपने तीन कानूनों को रद्द नहीं करती तो रेलवे पटरियों को भी अवरुद्ध किया जायेगा। सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के बारे में किसानों का दावा है कि इन कानूनों का उद्देश्य कृषि उत्पाद की खरीद के लिए मंडी प्रणाली तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था को कमजोर कर कॉर्पोरेट घरानों को लाभान्वित करना है।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार एमएसपी प्रणाली पर एक नए विधेयक लाने के बारे में विचार करेगी, तोमर ने कहा कि नए कृषि कानून एमएसपी व्यवस्था को प्रभावित नहीं करते हैं और यह जारी रहेगा।

उसी मीडिया ब्रीफिंग में गोयल ने कहा, "हम अपने किसान भाइयों और बहनों और यूनियन नेताओं से अपील करते हैं कि वे अपना विरोध खत्म करें और सरकार से बातचीत कर उनके मुद्दों को हल करें।"

उन्होंने कहा कि सरकार, किसानों के हित में कोई सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के बारे में खुला रवैया और लचीलापन लिये है।

तोमर ने कहा, ‘‘सरकार नए कानूनों में किसी भी प्रावधान पर विचार करने के लिए खुले मन से तैयार है जहां कहीं भी किसानों की कोई समस्या हो और हम उनकी सभी आशंकाओं को साफ करना चाहते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम किसानों के नेताओं से उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए सुझाव का इंतजार करते रहे, लेकिन वे कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं।’’ उन्होंने प्रकारातंर से इन कानूनों को खत्म करने की किसानों की मांग से सहमत होने की संभावना से इंकार किया ।

तोमर ने कहा, "उनकी मांग कानूनों को निरस्त करने की थी। लेकिन सरकार का रुख उन प्रावधानों पर खुलकर चर्चा करने का था, जिन पर उन्हें कोई आपत्ति है। सरकार के साथ कोई अहंकार नहीं है। हमारे पास यूनियनों के साथ चर्चा करने और समाधान खोजने को लेकर कोई समस्या नहीं है।’’

तोमर ने कहा कि सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए हमेशा तैयार रही है।

मंत्री ने कहा, ‘‘हम ठंड के मौसम और मौजूदा कोविड-19 महामारी के दौरान विरोध कर रहे किसानों के बारे में चिंतित हैं। किसान यूनियनों को सरकार के प्रस्ताव पर जल्द से जल्द विचार करना चाहिए और फिर जरूरत पड़ने पर हम अगली बैठक में इस पर फैसला कर सकते हैं।’’

दोनों मंत्रियों की टिप्पणियों पर किसान यूनियनों के रुख के बारे में पूछे जाने पर, किसान नेता शिव कुमार कक्का ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘सरकार के साथ पहले ही पांच दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन वे अनिर्णायक रहीं। अभी तक, सरकार ने हमें वार्ता के एक और दौर के लिए कोई निमंत्रण नहीं भेजा है।"

उन्होंने कहा, ‘‘अगर सरकार वार्ता का कोई प्रस्ताव भेजती है, तो इस बारे में कोई फैसला हम अपनी बैठक में करेंगे।’’

यह पूछे जाने पर कि सरकार के साथ चल रहे गतिरोध का क्या हल हो सकता है, कक्का ने कहा, "केवल ईश्वर ही जानता है।"

कक्का ने कहा, "ठंड के मौसम और कोविड-19 महामारी के कारण हमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी हम अपना विरोध तब तक जारी रखेंगे, जब तक कि उन्हें मान नहीं लिया जाता।"

सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था जारी रखने का लिखित आश्वासन देने के अलावा कम से कम सात मुद्दों पर आवश्यक संशोधन करने का भी प्रस्ताव किया है, जिसमें से एक, मंडी प्रणाली के कमजोर होने को लेकर आशंका से जुड़ा मुद्दा शामिल है।

तोमर ने कैबिनेट पीयूष गोयल के साथ पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बुधवार रात मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि सरकार सितंबर में बनाए गए नए कृषि कानूनों के बारे में सभी आवश्यक स्पष्टीकरण करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि ये कानून संसद में विस्तृत चर्चा के बाद पारित किये गए हैं।

गोयल ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि नए कानून एपीएमसी को प्रभावित नहीं करते हैं और यह संरक्षित रहेगा। किसानों को केवल निजी मंडियों में भी अपनी उपज बेच सकने का एक अतिरिक्त विकल्प दिया जा रहा है।

तोमर ने कहा कि पिछले छह वर्षो में घोषित, इन तीन कृषि कानून और पीएम-किसान जैसी विभिन्न योजनाएं, किसानों के लिए कृषि को लाभकारी बनाने और वर्ष 2022 तक उनकी आय को दोगुना करना सुनिश्चित करने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का हिस्सा हैं।

उन्होंने कहा कि ये कृषि कानूना विशेष तौर पर छोटे एवं सीमांत किसान के लिए लाभदायक हैं जो कुल कृषक आबादी का 86 प्रतिशत हिस्सा हैं।

शाह ने मंगलवार रात किसान नेताओं के एक समूह से मुलाकात की लेकिन लगभग चार घंटे की बैठक के बाद भी गतिरोध नहीं टूट पाया। यह बैठक लगभग मध्य रात्रि तक चली थी। लेकिन बैठक में इस बात का निर्णय किया गया कि सरकार किसान यूनियनों को एक लिखित प्रस्ताव भेजेगी।

बुधवार सुबह होने वाली सरकार और किसान यूनियन नेताओं के बीच छठे दौर की वार्ता भी रद्द कर दी गई।

अपने प्रस्ताव में, सरकार ने कहा है कि वह खुले दिल से किसानों की उन आपत्तियों पर विचार करने के लिए तैयार है, जो नए कृषि कानूनों को लेकर बनी हुई है।

ऐसी चिंताओं पर कि केवल पैन कार्ड के आधार पर एपीएमसी मंडियों के बाहर व्यापार करने की अनुमति है और इससे किसानों के साथ धोखा किया जा सकता है, सरकार ने कहा है कि इस तरह की आशंकाओं को दूर करने के लिए, राज्य सरकारों को ऐसे व्यापारियों को पंजीकृत करने और किसानों की स्थानीय स्थिति को ध्यान में रखकर नियमों को बनाने की शक्ति दी जा सकती है।

विवाद के समाधान के लिए किसानों को दीवानी अदालतों में अपील करने का अधिकार नहीं मिलने के मुद्दे पर, सरकार ने कहा कि वह सिविल अदालतों में अपील करने के लिए संशोधन करने के पर विचार को तैयार है।

वर्तमान में, विवाद समाधान एसडीएम स्तर पर होना है।

इस आशंका पर कि बड़े कॉरपोरेट खेत पर कब्जा कर लेंगे, सरकार ने कहा कि यह पहले ही कानूनों में स्पष्ट कर दिया गया है, लेकिन फिर भी, स्पष्टता के लिए, यह लिखा जा सकता है कि कोई भी खरीदार खेत के एवज में ऋण नहीं ले सकता है और न ही ऐसी कोई शर्त किसानों पर लगाई जाएगी।

ठेका खेती के तहत ऋण के लिए खेत को गिरवी रखने के संदर्भ में सरकार ने कहा कि मौजूदा प्रावधान स्पष्ट है लेकिन फिर भी आवश्यकता पड़ने पर इसे और स्पष्ट किया जा सकता है।

एमएसपी व्यवस्था को खत्म करने और व्यापार को निजी क्षेत्र के हवाले करने के बारे में आशंका के बारे में, सरकार ने कहा कि वह लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है कि मौजूदा एमएसपी व्यवस्था जारी रहेगी।

प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करने की मांग पर, सरकार ने कहा कि किसानों के लिए बिजली बिल भुगतान की मौजूदा प्रणाली में कोई बदलाव नहीं होगा।

एनसीआर अध्यादेश 2020 के वायु गुणवत्ता प्रबंधन को रद्द करने की किसानों की मांग पर, जिसके तहत फसल अवशेषों को जलाने पर जुर्माने का प्रावधान है, सरकार ने कहा कि यह एक उचित समाधान खोजने के लिए तैयार है।

किसानों को खेती के ठेके का पंजीकरण प्रदान करने की मांग पर, सरकार ने कहा कि जब तक राज्य सरकारें पंजीकरण की व्यवस्था नहीं करती हैं, तब तक एसडीएम कार्यालय में एक उचित सुविधा प्रदान की जाएगी, जिसमें अनुबंध की एक प्रति हस्ताक्षरित होने के 30 दिन बाद जमा कराई जा सकती है।

कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता पर, मंत्रियों ने कहा कि ठेका खेती और अंतर-राज्य व्यापार पर कानूनों को पारित करने के लिए समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 के तहत सरकार के पास यह शक्ति है, और राज्यों को एपीएमसी क्षेत्रों के बाहर शुल्क / उपकर लगाने से रोकने का अधिकार है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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