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बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ दिवाला समाधान प्रक्रिया में वर्ष 2022 में तेजी की उम्मीद

By भाषा | Updated: December 31, 2021 16:31 IST

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(कुमार राहुल)

नयी दिल्ली, 31 दिसंबर मामलों के निपटान मे विलंब और कुछ प्रकरण में दावा राशि के मुकाबले वास्तविक प्राप्ति में काफी अंतर से दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया वर्ष 2021 में चर्चा में रही।

हालांकि नये साल में बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ दिवाला समाधान प्रक्रिया में तेजी की उम्मीद है।

दिवाला कानून के तहत सक्षम प्राधिकार राष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण (एनसीएलटी) और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) न्यायाधीशों के रिक्त पदों और खराब बुनियादी ढांचे के कारण संसाधनों की कमी के संकट से जूझ रहे हैं। इससे वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण अपनाई गई डिजिटल प्रक्रिया की गति भी मंद पड़ गई है।

एनसीएलटी के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति एम एम कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जनवरी 2020 के बाद से नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई। सदस्यों की संख्या भी कम होती जा रही है। एक पीठ को दो से तीन पीठों के मामले सौंपे जा रहे हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में मामले जमा होते जा रहे हैं।’’

जनवरी 2020 में न्यायमूर्ति कुमार के एनसीएलटी के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होने के बाद कई कार्यवाहक अध्यक्ष आए। पूर्णकालिक प्रमुख की नियुक्ति अक्टूबर 2021 में की गई। यह जानना दिलचस्प होगा कि जून में एनसीएलटी के चार कार्यवाहक अध्यक्ष रहे जिनमें से एक का कार्यकाल केवल 24 घंटे का रहा।

वर्ष 2022 में सबसे अधिक जरूरत मामलों के जल्द से जल्द निबटारे की होगी। प्राधिकरण के समक्ष दिवाला संबंधी कई महत्वपूर्ण मामले हैं जिनमें जेट एयरवेज, दीवान हाउसिंग, सिनटेक्स इंडस्ट्रीज और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के मामले प्रमुख हैं।

इसके अलावा दिवाला प्रक्रिया में वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज जैसे कुछ मामलों में कुल दावा राशि में से 95 प्रतिशत की कटौती कर्जदाताओं द्वारा स्वीकार किये जाने से भी समाधान प्रक्रिया सवालों के घेरे में रही।

भारतीय दीवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 30 सितंबर तक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के 73 प्रतिशत मामलों में 270 दिन से अधिक समय लगा। कई मामले के निपटान में अधिकतम स्वीकृत अवधि से कहीं अधिक समय लगे।

दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत मामलों के समयबद्ध समाधान की व्यवस्था की गयी है। इस संहिता के तहत ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) महत्वपूर्ण संस्थान है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव वशिष्ठ कहते हैं कि यह उम्मीद करना ही अव्यावहारिक है कि सीआईआरपी 270 दिन के भीतर पूरी हो जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘एनसीएलटी पीठों की संख्या को देखते हुए, 270 या 330 दिनों में मामले का निपटान करना लगभग असंभव है।’’

राष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण बार एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेंद्र गांडा ने कहा कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी ने पूरे साल किसी नियामक अध्यक्ष के बगैर ही काम किया और इनमें न्यायिक एवं तकनीकी सदस्यों की भी कमी रही। उन्होंने कहा, ‘‘अब सरकार ने नए सदस्य नियुक्त कर दिए हैं, कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ गई है अत: मामलों के निस्तारण में भी तेजी आनी चाहिए।’’

सरकार ने अक्टूबर 2021 में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण को एनसीएलएटी का चेयरपर्सन नियुक्त किया था और मणिपुर उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रामलिंगम सुधाकर को एनसीएलटी का अध्यक्ष बनाया था।

एनसीएलटी बार एसोसिएशन के महासचिव सौरभ कालिया ने कहा कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी 2022 में भी कंपनियों के पुनर्गठन और वित्तीय पुनरुद्धार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘एनसीएलएटी के चेयरपर्सन के साथ-साथ एनसीएलटी के अध्यक्ष की नियुक्ति से कामकाज को गति मिली है। इसका प्रभाव 2022 में देखने को मिलेगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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