Manikarnika Movie Review : सबकुछ होकर भी कहीं चूकती सी नजर आती है क्वीन कंगना की 'मणिकर्णिका – द क्वीन ऑफ झांसी'

By प्रतीक्षा कुकरेती | Published: January 25, 2019 08:45 AM2019-01-25T08:45:09+5:302019-01-25T09:52:03+5:30

Manikarnika - The Queen of Jhansi Movie Review (मणिकर्णिका - द क्वीन ऑफ झाँसी मूवी / फिल्म रिव्यू):बचपन से ही हम सुभद्राकुमारी चौहान की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' सुनते आए हैं. इस कविता के माध्यम से झांसी की रानी की एक पावरफुल इमेज हमारे ज़ेहन में बनी हुई है. लेकिन कंगना रनौत बड़े परदे पर इस लेजंडरी कैरेक्टर के साथ इंसाफ करती नजर नहीं आती है. फिल्म का सबसे कमज़ोर पार्ट उसका डायरेक्शन है. क्वीन ऑफ़ बॉलीवुड डायरेक्शन के मामले में चुक जाती है.

Manikarnika - The Queen of Jhansi Movie Review in Hindi: Kangana Ranaut fails to impress in Manikarnika: The Queen of Jhansi | Manikarnika Movie Review : सबकुछ होकर भी कहीं चूकती सी नजर आती है क्वीन कंगना की 'मणिकर्णिका – द क्वीन ऑफ झांसी'

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फिल्म: मणिकर्णिका – द क्वीन ऑफ झांसी
कलाकार: कंगना रनौत, अंकिता लोखंडे, जीशान अयूब आदि।
निर्देशक: कंगना रनौत, राधाकृष्ण जगर्लामुदी
रेटिंग: 2.5 /5 स्टार्स 


बचपन से ही हम सुभद्राकुमारी चौहान की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' सुनते आए हैं. इस कविता के माध्यम से झांसी की रानी की एक पावरफुल इमेज हमारे ज़ेहन में  बनी हुई है.  लेकिन  कंगना रनौत बड़े पर्दे पर इस लेजंडरी कैरेक्टर के साथ इंसाफ करती नजर नहीं आती है. फिल्म का सबसे कमज़ोर पार्ट उसका डायरेक्शन है. क्वीन ऑफ़ बॉलीवुड डायरेक्शन के मामले में चूक जाती है.  

होती है शुरुआत

'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी की कहानी शुरआत लगान फिल्म की तरह अमिताभ बच्चन की आवाज़ से होती है. कहानी मणिकर्णिका के जन्म से शुरू होती है और बचपन में ही ऐलान कर दिया जाता है कि उसकी उम्र लंबी न हो लेकिन उसका नाम इतिहास के पन्नो में लिखा जाएगा. कंगना रनौत की एंट्री बाघ के शिकार के साथ बड़े ही  शानदार तरीके से होती है, इतनी ही नहीं कंगना बेहद खूबसूरत भी लगती हैं. मणिकर्णिका बड़ी ही चतुर, बहादुर और अष्ट्र शास्त्र में निपुंड होती हैं. झांसी के राजा के लिए मणिकर्णिका को चुना जाता है और शादी के बाद उसका नाम लक्ष्मीबाई हो जाता है. उस वक़्त अंग्रेज़ झाँसी को हड़पना चाहते थे. इसलिए रानी के पुत्र के निधन के बाद से ही अंग्रेज झांसी को 'हड़प की नीति' के तहत हड़पने की कोशिश करते हैं लेकिन लक्ष्मी बाई ये ऐलान कर देती है कि वो अपनी झांसी किसी को नहीं देगी. पूरी फिल्म में फोकस झाँसी पर है और किस तरह से झाँसी की रानी वीरता से अपने राज्य के लिए लड़ाई करती है. फिल्म की कहानी  गद्दारी और देशभक्ति से भरी हुई है.

डायरेक्शन

कमजोर डायरेक्शन फिल्म की सबसे बड़ी कमी है. आप फिल्म की कहानी से कनेक्ट नहीं कर पाते. पूरी फिल्म आपको ओवर ड्रामेटिक और इमोशनल लगती है. कई सीन्स बड़े ही दोहराते भी लगते है. पूरी फिल्म में कमजोर डायरेक्शन और बचकानी बातें देखने को मिलेगी. इतना ही नहीं अंग्रेजो के बोलने का एक्सेंट और तरीका बड़ा ही अजीब लगता है. हालाँकि कुछ सीन्स आपको इम्प्रेस करेंगे जैसे रानी लक्ष्मी बाई के बेटे और पति के निधन वाले सीन हों या अंग्रेजों के सामने उनका सिर ना झुकाना या तलवारबाजी  के शानदार सीन, लेकिन बैटल सीन्स बहुत ही वीक है. एक सीन में रानी लक्ष्मी बाई गांव में जाकर जमकर डांस करती हैं, वो सीन आपको हैरत करे देगा और आप सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की क्या रानी लक्ष्मी बाई के किरदार के साथ इन्साफ हुआ है ? 

पावरफुल

फर्स्ट हॉफ काफी स्लो है जबकि सेकेंड हॉफ थोड़ा पॉवरफुल और जोश से भरा है. फिल्म में काशी, झांसी और ग्वालियर की जो झलक दिखती है उसमें कहीं भी वो बात नहीं है, वहां की खुश्बू नहीं है, ना रंग है, ना वो संगीत और ना ही वो बोली। फिल्म बहुत भव्य बनाई गई है लेकिन जिस इमोशन और जोश की उम्मीद थी उसमें यह फिल्म पूरी तरीके से खरी नहीं उतरती. फिल्म में इस्तेमाल किये गए डिजाइनर जूलरी और कपड़ों से भी उस दौर की झलक नहीं मिलती.  

फिल्म में कंगना रनौत रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में पूरी तरह से नहीं जमती हैं. कई जगह उनका अभिनय शानदार है लेकिन कई बार उनके एक्सप्रेशंस ओवर हो जाते हैं. उनकी आवाज़ रानी लक्ष्मी बाई के दमदार किरदार से मैच नहीं हो पाती. कंगना की पतली आवाज़ और पतला शारीर आपको उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मी बाई मानने से इनकार कर देगा. कई जगह कंगना योद्धा के रूप में नाजुक लग रही है लेकिन कई जगह अपने एक्शन से उन्होंने किरदार में जान डाली है. कंगना की तलवारबाजी सीन काबिले तारीफ़ है. ये फिल्म कंगना के करियर की सबसे बेस्ट फिल्म हो सकती थी लेकिन अगर इसे संजय लीला भंसाली जैसे मंझे हुए डायरेक्टर का साथ मिलता जिन्होंने अपने शानदार और ज़बरदस्त डायरेक्शन से बाजीराव मस्तानी और पद्मावत जैसी फिल्मो को सुपर डुपर हित बनाया है

फिल्म में पूरा फोकस कंगना पर ही रखा गया है जिसकी वजह से वहीं बाकी किरदारों को काफी कम रोल दिया गया है. इस फिल्म से टीवी एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे अपना बॉलीवुड डेब्यू कर रही है लेकिन उनको ज्यादा मौका नहीं मिला अपना दम दिखाने में. अंकिता फिर भी अपनी एक्टिंग से आपको इम्प्रेस कर देंगी. इसके अलावा फिल्म में  अतुल कुलकर्णी, सुरेश ओबेरॉय, डैनी , जीशान अयूब और जीशू सेनगुप्ता जिनको अपना टैलेंट दिखने का ज्यादा मौका नहीं मिला. 

फिल्म के डायलॉग प्रसून जोशी ने लिखे है जो ठीक ठाक है और आपको काफी निराश करेंगे. फिल्म की कहानी कई जगह बिखरी बिखरी लगती है. फिल्म के गाने आपको ज्यादा पसंद नहीं आयेंगे और ना ही वो कहानी में पूरी तरह से फिट बैठ ते है. फिल्म में VFX कमाल के है लेकिन स्क्रीनप्ले काफी टाइट है. 
फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत तंग करता है.  

इसमें कोई डाउट नहीं है कि कंगना रनौत एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं और वो बॉलीवुड की क्वीन है लेकिन डायरेक्शन के मामले में अभी वो काफी कमज़ोर है. 

English summary :
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Web Title: Manikarnika - The Queen of Jhansi Movie Review in Hindi: Kangana Ranaut fails to impress in Manikarnika: The Queen of Jhansi

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