देश प्रेम से लबालब भरे हुए हैं प्रसिद्ध अभिनेता चंद्रशेखर
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 8, 2018 13:06 IST2018-07-08T13:06:19+5:302018-07-08T13:06:19+5:30
फिल्म जगत में एक बहुत लंबी पारी सफलता पूर्वक खेलने वाले चंद्रशेखर के मन में आज भी फिल्मी कलाकारों और कर्मचारियों के प्रति चिंता तथा स्नेह, और देश के प्रति लगाव और प्रेम लबालब भरा हुआ है।

देश प्रेम से लबालब भरे हुए हैं प्रसिद्ध अभिनेता चंद्रशेखर
- किशन शर्मा
7 जुलाई को, वरिष्ठतम फिल्म निर्माता-निर्देशक-लेखक-अभिनेता चंद्रशेखर अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे किए। शायद हिंदी फिल्म जगत में अभिनेता दिलीप कुमार के बाद चंद्रशेखर ही वरिष्ठतम कलाकार हैं, जिनका सानिध्य हम सब को प्राप्त है। हैदराबाद में जन्मे और पढ़े चंद्रशेखर ने एक मामूली ‘एक्सट्रा’ कलाकार के रूप में 1941 में फिल्म जगत में प्रवेश किया। अधिकतर फिल्मों में पुलिस अधिकारी या जज की भूमिका करने वाले चंद्रशेखर ने ‘चा चा चा’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ जैसी हिंदी फिल्मों का निर्माण किया। फिल्म जगत से जुड़े कलाकारों, कर्मचारियों के विभिन्न संगठनों के अध्यक्ष के रूप में शायद सबसे लंबे समय तक कार्य करने वाले चंद्रशेखर एकमात्र कलाकार हैं। वे बहुत अच्छे नृत्यकार भी हैं। मुंबई के अंधेरी (पश्चिम) इलाके में मेरे घर के पास ही चंद्रशेखर का तीन मंजिला बंगला है। वे अक्सर ही पैदल घूमते हुए, विभिन्न लोगों और दुकानदारों से बातचीत करते हुए मिल जाया करते थे। फिल्म जगत में ट्रेड यूनियन गतिविधियों को शुरू करने वाले चंद्रशेखर को अनेक पुरस्कारों से विभूषित किया गया है। देशप्रेम से संबंधित अनेक लेख वे अक्सर मुझे भेजते रहते थे। अपने इलाके, अपने शहर, अपने राज्य और अपने देश के हित में वे तरह- तरह के विचार व्यक्त करते रहते थे। आमतौर पर वे अपने हस्तलिखित पत्र और लेख ही भेजा करते थे। उनके घर जाने पर ढेर सारा नाश्ता प्रस्तुत कर दिया जाता था। पिछले लगभग बीस वर्ष में सुबह और शाम के समय मैंने उन्हें अपने घर के दरवाजे पर कुर्सी पर बैठे हुए कुछ पढ़ते हुए या लिखते हुए ही पाया। शाम में वे लुंगी-कुर्ता पहन कर ही अंधेरी में घूमते हुए दिखाई दे जाते थे। सभी दुकानदार उन्हें बहुत सम्मान देते थे। चंद्रशेखर के विवाह की स्वर्ण जयंती के अवसर पर उन्होंने अपने घर पर ही दावत दी थी, जिसमें अनेक पुराने कलाकारों से मिलने का मौका मिला था।
मेरे मित्र, गीतकार-संगीतकार-गायक रवीन्द्र जैन ने उसी समय रची अपनी एक रचना गा कर सुनाई थी जो सभी को बहुत पसंद आई थी। चंद्रशेखर को संगीत की अच्छी समझ रही है। बच्चों का एक ‘प्ले स्कूल’ भी उन्होंने अपनी बहू के लिए अपने बंगले के प्रांगण में शुरू करवा दिया था। ‘चा चा चा’ में गीतकार नीरज का लिखा, इकबाल कुरैशी का संगीतबद्ध किया और मोहम्मद रफी का गाया गीत, ‘सुबह ना आई शाम ना आई’ बहुत ही लोकिप्रय रहा है। कई बार चंद्रशेखर यह गीत मुझसे सुना करते थे। रेडियो पर भी इस फिल्म के दो गीत, ‘सुबह ना आई’ और ‘एक चमेली के मंडवे तले’ बहुत अधिक प्रसारित होते रहते थे। श्रोताओं की फरमाइश के हजारों पत्र इन दोनों गीतों के लिए आया करते थे। हाल ही में मेरे एक मित्र ने मुझे फोन करके बताया कि चंद्रशेखर जी बहुत गंभीर हालत में हैं और बिस्तर पर ही लेटे रहते हैं तथा किसी को पहचानते भी नहीं हैं। मुझे थोड़ा अजीब लगा क्योंकि कुछ समय पहले ही मैं उनसे मिला था। मैं मुंबई में उनके घर गया तो उनकी बहू ने यह कहा कि वे वास्तव में आजकल किसी को पहचानते नहीं हैं। मैं उनके पास गया तो देखा कि वे दरवाजे के पास वाली अपनी कुर्सी पर बैठे हुए अपनी डायरी में कुछ लिख रहे थे। उनकी बहू ने उनसे कहा, ‘किशन शर्मा जी आए हैं’, तो उन्होंने मेरी तरफ देखा और बैठने का इशारा किया। डायरी रख कर मुझसे बोले, ‘आप तो नागपुर में रहने लगे हैं। कब आए मुंबई ? आपकी बेटी तो यहीं रहती है न? क्या कर रही है वो आजकल?’ उनकी बहू को और मुझे भी थोड़ा सा आश्चर्य हुआ क्योंकि चंद्रशेखर जी मुझे पहचान भी रहे थे और मेरे बारे में उन्हें सब कुछ याद था। हम लोग थोड़ी देर बात करते रहे। उसके बाद उन्होंने फिर से पूछा, ‘आप तो नागपुर में रहने लगे हैं। कब आए मुंबई ? आपकी बेटी तो यहीं रहती है न ? क्या कर रही है वो आजकल ?’
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चाय-नाश्ता करने के बाद उन्होंने तीसरी बार फिर से वही बात दोहराई। और फिर मैं जब वापस आने के लिए उठने लगा तो फिर से वही बात चौथी बार कही। मैं समझ गया कि वे मुझे पहचान भी रहे हैं, मेरी पूरी जानकारी भी उन्हें है, लेकिन वे भूल जाते हैं और एक ही बात कई- कई बार दोहराते रहते हैं, क्योंकि उन्हें यह याद नहीं रहता कि वे क्या बात कर रहे थे। हर थोड़ी देर में मुझसे कहते, ‘अब मुझे उठा लो। भगवान से मेरे लिए कहो कि मुझे अब उठा लें’।
मैंने इतना निराश और कमजोर कभी भी चंद्रशेखर जी को नहीं देखा। मुंह से लार टपकती रहती और नीचे गिरती रहती थी। देश की परिस्थिति और राजनीतिक हलचलों पर उनकी सदा नजर रहती थी। उन्हें किसी भी राजनीतिक दल से लगाव नहीं था, लेकिन देश और देश की जनता के बारे में बहुत गंभीरता से हमेशा सोचा, बोला और लिखा करते थे। अभी भी उनके विचार सुनने से उनका देश प्रेम दिखाई देता है। वास्तव में फिल्म जगत में एक बहुत लंबी पारी सफलता पूर्वक खेलने वाले चंद्रशेखर के मन में आज भी फिल्मी कलाकारों और कर्मचारियों के प्रति चिंता तथा स्नेह, और देश के प्रति लगाव और प्रेम लबालब भरा हुआ है।
(किशन लोकमत समाचार से जुड़े हैं)