विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: युद्ध में कोई भी जीते-हारे, मानवता झुलसती है हमेशा

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 4, 2022 01:56 PM2022-03-04T13:56:50+5:302022-03-04T14:01:54+5:30

यूक्रेन और रूस के बीच लड़े जा रहे युद्ध को लेकर उम्मीद करनी चाहिए कि ये फैलेगा नहीं, सिमट जाएगा. दूसरा विश्वयुद्ध हिरोशिमा और नागासाकी की विभीषिका के साथ समाप्त हुआ था. इस मुकाबले में स्थति आज और भयावह है.

Vishwanath Sachdev blog: Russia Ukraine war humanity always gets scorched in war | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: युद्ध में कोई भी जीते-हारे, मानवता झुलसती है हमेशा

युद्ध में मानवता हमेशा झुलसती है (फोटो- सोशल मीडिया)

रूस और यूक्रेन के बीच आज जो कुछ हो रहा है, वह आने वाले कल की भयावह आशंकाओं की भी एक तस्वीर है. यह पहली बार नहीं जब दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ी दिखाई दे रही है और यह आखिरी बार नहीं है जब दुनिया ऐसे किसी भी युद्ध से मनुष्यता को बचाने के लिए प्रार्थना में रत है. आज, जब मैं यह लिख रहा हूं सारा भारत भगवान शिव से मनुष्यता के कल्याण की पुकार कर रहा है. 

यूक्रेन के भारत स्थित राजदूत ने भारतवासियों से आग्रह किया है कि वह यूक्रेन पर रूसी हमले से उत्पन्न वैश्विक खतरों से बचाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करें. इसी बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति ने रूस की जनता के नाम एक अपील जारी की है कि वह रूसी राष्ट्रपति पर ‘मनुष्यता-विरोधी’ अभियान को तत्काल रोकने के लिए दबाव डाले. 

किसकी प्रार्थना और किसका आग्रह युद्ध की विभीषिका को रोकने में सहायक होगा, नहीं कहा जा सकता, पर यह कहना जरूरी है कि किसी की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा मनुष्यता के सुरक्षित भविष्य से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकती. वह हर व्यक्ति, और हर आशंका, मनुष्यता की अपराधी है जो दो विश्वयुद्ध के परिणामों से परिचित होने के बावजूद युद्ध का पक्ष लेती है. युद्ध तो अपने आप में एक समस्या है, वह किसी समस्या का समाधान कैसे हो सकता है?

बहरहाल, यह सब लिखते समय दो दृश्य लगातार मुझे परेशान करते रहे हैं. सबसे पहले युद्ध का कोई दृश्य दिखाने का दावा करने वाले चैनलों पर ही, शायद संयोग से ही, ये दृश्य देखे थे मैंने. पहला दृश्य यूक्रेन के उस नागरिक का है जो अपनी पत्नी और बेटी को किसी ‘सुरक्षित स्थान’ पर पहुंचाने के लिए विदा कर रहा है. 

वह स्वयं असुरक्षित स्थान पर ही रहने वाला था- मैं अपने देश के लिए अपनी जमीन के लिए लडूंगा, उसने कहा था. वह रो भी रहा था. बेटी भी बिलख रही थी, पत्नी भी. और यह दृश्य देखकर लगभग 75 साल पहले के एक दृश्य की कल्पना करने लगा था मैं. समय भारत के विभाजन का था और हमारा परिवार तब पाकिस्तान के एक छोर क्वेटा में रहता था. 

पाकिस्तान की सरकार ने मेरे पिता को देश छोड़ने की इजाजत नहीं दी थी और उन्होंने अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर भेजने का निर्णय किया था. यूक्रेन की उस बिलखती बच्ची को देखकर मैं कल्पना करने लगा था, मैं भी तब ऐसे ही रो रहा होऊंगा जैसे यह बच्ची रो रही है और मेरे पिता भी तब ऐसे ही आंसू बहा रहे होंगे जैसे इस बच्ची का पिता बहा रहा था. यूक्रेन के इस दृश्य और मेरी कल्पना में एक बड़ा अंतर भी है- मेरे पिता को तब क्वेटा छोड़ने की अनुमति नहीं मिली थी और यूक्रेन के इस व्यक्ति ने स्वयं यह निर्णय लेकर बंदूक हाथ में उठाई थी कि वह सुरक्षित स्थान पर जाने के बजाय रूसी खतरे का मुकाबला करेगा. 

बहुत बड़ा फर्क है दोनों स्थितियों में. जमीन-आसमान का फर्क. पर हकीकत यह भी है कि मानवीय संवेदना दोनों जगह पर एक जैसी थी. वहां भी एक परिवार था, यहां भी. इस एक भाव ने मुझे यूक्रेन के उस सिपाही से जोड़ दिया. फिर मैं स्वयं को उस बच्ची की जगह देखने लगा. फिर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. असहाय होने की भावना की एक पीड़ा थी इन आंसुओं में. 75 साल पहले का वह विभाजन भी अमानवीय था और आज की यह लड़ाई भी मनुष्य की अमानवीय आकांक्षाओं का ही एक उदाहरण है.

अब दूसरे चित्र की बात. यह चित्र भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ है. इस दृश्य में पांच-सात साल की एक बच्ची एक सिपाही को बुरी तरह दुत्कार रही है. सिपाही के हाथ में बंदूक है, पर उसके चेहरे पर असहाय होने का एक भाव भी है. पता नहीं यह चित्र यूक्रेन में हो रही इस लड़ाई का है अथवा किसी और लड़ाई का. 

यह भी नहीं पता कि वह बच्ची किस भाषा में चिल्ला-चिल्ला कर उस सिपाही के प्रति अपना गुस्सा निकाल रही थी. पर इतना स्पष्ट समझ आ रहा था उसके हाव-भाव से कि वह सिपाही से चले जाने के लिए कह रही है. मैंने अनुमान लगाया कि वह बच्ची यूक्रेन की है व सिपाही रूसी है. हमलावर.

यूक्रेन और रूस के बीच लड़ा जा रहा यह युद्ध कल क्या रूप लेता है नहीं कहा जा सकता. उम्मीद ही की जा सकती है कि युद्ध फैलेगा नहीं, सिमट जाएगा. दूसरा विश्वयुद्ध हिरोशिमा और नागासाकी की विभीषिका के साथ समाप्त हुआ था. और इस मायने में स्थितियां आज और भयावह हैं कि विनाश के हथियार पहले से कहीं अधिक भयानक हो गए हैं. ऐसे में कोई भी चिंगारी भीषण आग लगा सकती है. 

यह बात दुनिया के हर देश को समझनी होगी कि उस आग में कोई दूसरा ही नहीं जलेगा, वह भी जल सकता है. इसलिए युद्ध की हर संभावना को समाप्त करना ही एकमात्र विकल्प बचता है. उस पहले चित्र वाली बच्ची की आंख के आंसू और दूसरे चित्र वाली बच्ची का गुस्सा, अपने आप में एक सबक है - समूची मानवता के लिए. सवाल यह है कि हम कब इस सबक को समझेंगे?

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: Russia Ukraine war humanity always gets scorched in war

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