विनीत नारायण का ब्लॉग: दुनिया को हम क्या दे जाएंगे?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 5, 2019 02:51 PM2019-08-05T14:51:48+5:302019-08-05T14:51:48+5:30
पिछली सदियों में जो नुकसान हुआ, उसमें जनधन की ही हानि हुई. पर अब जो पाशविक वृत्ति की सत्ताएं हैं, वो लगभग दुनिया के हर देश में हैं. ऐसी तबाही मच रही है, जिसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियां बहुत गहराई तक महसूस करेंगी. पर उससे उबरने के लिए उनके पास बहुत विकल्प नहीं बचेंगे.
मैं जीवन में पहली बार ग्रीस (यूनान) आया हूं, जिसे पश्चिमी दुनिया की सभ्यता का पालना कहते हैं. यहां आज भी 2500 साल पुराने विशाल मंदिर और 30 मीटर ऊंची देवी-देवताओं की मूर्तियों के अवशेष या प्रमाण मौजूद हैं, जिन्हें देखकर पूरी दुनिया के लोग हैरत में पड़ जाते हैं. हमारा टूरिस्ट गाइड एक बहुत ही पढ़ा-लिखा व्यक्ति है. उसने हमें 2 घंटे में ग्रीस का 3000 साल का इतिहास तारीखवार इतना सुंदर बताया कि हम उसके मुरीद हो गए.
जब हमने इन भव्य इमारतों के खंडहरों को देखकर आश्चर्य व्यक्त किया तो उसने पलटकर एक ऐसा सवाल पूछा, जिसे सुनकर मैं सोच में पड़ गया. उसने कहा, ‘‘ये इमारतें तो 2500 साल बाद भी अपनी संस्कृति और सभ्यता का प्रमाण दे रही हैं, पर क्या आज की दुनिया में हम कुछ ऐसा छोड़कर जा रहे हैं, जो 2500 वर्ष बाद भी दुनिया में मौजूद रहेगा?’’
उसने आगे कहा, ‘‘हम प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, जल, जमीन और हवा जितनी प्रदूषित पिछले 50 साल में हुई है, उतनी पिछले एक लाख साल में भी नहीं हुई थी. आज ग्रीस गर्मी से झुलस रहा है, हमारे जंगलों में आग लग रही है, रूस के जंगलों में भी लग रही है, कैलिफोर्निया के जंगलों में भी लग रही है. ये तो एक ट्रेलर है. अगर ‘ग्लोबल वॉर्मिग’ इसी तरह बढ़ती गई तो उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के ग्लेशियर अगले 2-3 दशकों में ही काफी पिघल जाएंगे, जिससे समुद्र दुनिया के तमाम उन देशों को डुबो देगा, जो आज टापुओं पर बसे हैं.’’
ग्रीस का इतिहास दुनिया के तमाम दूसरे देशों की तरह है, जहां राजसत्ताओं ने या आक्रांताओं ने बार-बार तबाही मचाई और सबकुछ पूरी तरह नष्ट कर दिया. ये तो आम आदमी की हिम्मत है कि वो बार-बार ऐसे तूफान झेलकर भी फिर उठ खड़ा होता है और तिनके-तिनके बीनकर अपना आशियाना फिर बना लेता है.
पिछली सदियों में जो नुकसान हुआ, उसमें जनधन की ही हानि हुई. पर अब जो पाशविक वृत्ति की सत्ताएं हैं, वो लगभग दुनिया के हर देश में हैं. ऐसी तबाही मच रही है, जिसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियां बहुत गहराई तक महसूस करेंगी. पर उससे उबरने के लिए उनके पास बहुत विकल्प नहीं बचेंगे.