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विजय दर्डा का ब्लॉग: बहुत कठिन है डगर जो बाइडेन की...!

By विजय दर्डा | Updated: January 24, 2021 16:07 IST

ट्रम्प के फैसलों को पलटने का काम शुरू लेकिन क्या अमेरिका को पटरी पर लाना आसान है?

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तमाम तरह की कड़वाहटों के बीच आखिर जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान हो गए। कायदे से डोनाल्ड ट्रम्प को भी पदग्रहण समारोह में उपस्थित होना था लेकिन वो नहीं थे। नकचढ़े और गुस्सैल बच्चे की तरह वे गायब रहे। पूरा संशय का माहौल था। डर का ऐसा आलम था कि शपथ ग्रहण समारोह के लिए करीब 36 हजार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई थी जिसमें 25 हजार तो नेशनल गार्ड्स थे। उनमें से भी हर किसी की जांच की जा रही थी कि कहीं वो ट्रम्प का आदमी तो नहीं है?

हालात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि शपथ से पहले नेशनल गार्ड के 13 लोगों को ड्यूटी से हटा दिया गया क्योंकि फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन को शक था कि ये ट्रम्प के समर्थक हैं और अंतिम समय में कुछ हरकत कर सकते हैं। अविश्वास का ऐसा आलम अमेरिका ने अपने ढाई सौ साल के लोकतांत्रिक इतिहास में कभी नहीं देखा।।! ये उदाहरण यह समझने के लिए काफी है कि ट्रम्प के चार साल के कार्यकाल के बाद अमेरिका इस वक्त कहां खड़ा है और नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए चुनौतियां कितनी बड़ी हैं। 

वे इस बात को समझते भी हैं इसीलिए कुर्सी संभालने के कुछ घंटों के भीतर ही उन्होंने ट्रम्प के कई फैसलों को बदल दिया। उन्होंने कहा भी कि बर्बाद करने के लिए उनके पास वक्त बिल्कुल भी नहीं है। अब बाइडेन का फैसला है कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए सख्ती होगी। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य कर दिया गया है।   ट्रम्प इसी बात से बचते रहे जिसके कारण चार लाख से ज्यादा लोग मौत के शिकार हो गए। ट्रम्प ने लोगों की जान से ज्यादा अर्थव्यवस्था को तरजीह दी। लॉकडाउन को उन्होंने बार-बार खारिज किया। हालांकि वे अर्थव्यवस्था भी नहीं संभाल पाए। 

आज अमेरिका में बेरोजगारी की भीषण समस्या है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि करीब एक करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं और उन्होंने बेरोजगारी भत्ता के लिए आवेदन भी दिया। ऐसे लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध करा पाना जो बाइडेन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके साथ ही पूरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन इससे भी बड़ी एक और चुनौती है! 

ट्रम्प ने राष्ट्रवाद और अमेरिका फस्र्ट का नारा देकर पूरे अमेरिकी समाज में कट्टरवाद का जहर घोल दिया है। रंगभेद से तो वहां का समाज पहले से ही जूझ रहा है, इस नए कट्टरवाद ने हालात बुरे कर दिए हैं। अमेरिकी संसद पर ट्रम्प के समर्थकों का हमला इसी कट्टरवाद को प्रदर्शित करता है। ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में अपरोक्ष रूप से मुस्लिमों के प्रति खराब रुख रखा। 

बाइडेन ने मुस्लिम ट्रैवल बैन को खत्म करके समरसता का संदेश देने की कोशिश की है लेकिन जब समाज में मनभेद का जख्म पैदा हो जाए तो उस जख्म को भरने में वक्त भी लगता है और बड़े जतन भी करने पड़ते हैं। दुनिया के कई देश इस समय ऐसे ही जख्म का सामना कर रहे हैं। बाइडेन इससे कैसे निपटेंगे, पूरी दुनिया की नजर इस पर है। दुनिया के स्तर पर भी ट्रम्प इतना घालमेल करके गए हैं कि उसे दुरुस्त करने में बाइडेन का पूरा कार्यकाल लग जाएगा। 

पेरिस जलवायु समझौते से फिर से जुड़ने और विश्व स्वास्थ्य संगठन में दोबारा जुड़ने का फैसला निश्चय ही बाइडेन का एक अच्छा कदम है। ट्रम्प ने तो विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकलकर चीन के लिए पूरा मैदान छोड़ दिया था। इस वक्त डब्ल्यूएचओ पूरी तरह चीन की गिरफ्त में है। अमेरिका कैसे स्थिति को सामान्य करेगा, यह कहना अभी मुश्किल है क्योंकि चीन हर तरफ आक्रामक मुद्रा में है। 

अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए वह अमेरिका पर भी लगातार विभिन्न तरह के हमले कर रहा है। जिस दिन जो बाइडेन ने शपथ ली उसी दिन चीन ने डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में अहम पदों पर रहे 28 अधिकारियों के चीन में घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया। ये लोग हांगकांग और मकाऊ भी नहीं जा पाएंगे। वैसे ट्रम्प ने भी पिछले साल चीन के 14 अधिकारियों के लिए अमेरिका के दरवाजे बंद कर दिए थे। अब बाइडेन चीन के इस हमले का कैसे जवाब देंगे?

इधर भारत और चीन के बीच सीमा पर जिस तरह की तनातनी है उसमें बाइडेन का रुख क्या होगा, इस पर भी पूरी दुनिया की नजर है। बाइडेन की टीम में उपराष्ट्रपति कमला देवी हैरिस सहित 20 से ज्यादा भारतवंशियों की मौजूदगी से हम भारतीय बड़े खुश हो रहे हैं लेकिन ये भारतवंशी अमेरिका में भारत का कितना पक्ष ले पाएंगे या ले पा रहे हैं यह वक्त ही बताएगा! इतिहास पर नजर डालें तो डेमोक्रेट राष्ट्रपतियों के समय में भारत को कोई खास फायदा नहीं हुआ है। 

बिल क्लिंटन और ओबामा के समय भारत को कोई फायदा नहीं हुआ। अमेरिका के साथ जो न्यूक्लियर ट्रीटी हुई थी वह जॉर्ज डब्ल्यू बुश (जूनियर) के समय 2005 में हुई थी जो रिपब्लिकन थे। उस समय मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। ट्रम्प जैसे भी हों लेकिन चीन के मसले पर उन्होंने भारत के साथ दोस्ती का इजहार किया और काफी हद तक पाकिस्तान की भी नकेल कस कर रखी। बाइडेन से भी यही उम्मीद की जा रही है कि वे भारत का साथ देंगे लेकिन इसका जवाब तो समय गुजरने के साथ ही मिलेगा!

वास्तव में अमेरिका पर न केवल हमारी नजर है बल्कि पूरी दुनिया की नजर है क्योंकि अमेरिका में जो कुछ भी घटता है उससे सारी दुनिया प्रभावित होती है। जो बाइडेन ने राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के साथ ही डोनाल्ड ट्रम्प के फैसलों को पलटना शुरू कर दिया है। यह अपेक्षित भी था लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि ट्रम्प ने देश को जिस दलदल में धकेला है और अपनी हरकतों से पूरी दुनिया में अमेरिका की जो नाक कटाई है उसकी सर्जरी क्या आसान काम है? 

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