वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती है अफगानिस्तान
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 10, 2021 11:34 AM2021-07-10T11:34:44+5:302021-07-10T11:36:41+5:30
अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. वहीं, भारत की हालत अजीब-सी हो गई. ऐसा लगता है कि भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है.
अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजें जैसे सिर पर पांव रखकर भागी हैं, क्या उससे भी भारत सरकार ने कोई सबक नहीं लिया? बगराम सहित सात हवाईअड्डों को खाली करते वक्त अमेरिकी फौजियों ने काबुल सरकार को खबर तक नहीं की. नतीजा क्या हुआ?
बगराम हवाई अड्डे में सैकड़ों शहरी लोग घुस गए और उन्होंने बचा-खुचा माल लूट लिया. अमेरिकी फौज अपने कपड़े, छोटे-मोटे कम्प्यूटर और हथियार, बर्तन-भांडे-फर्नीचर वगैरह जो कुछ भी छोड़ गई थी, उसे लूटकर काबुल में कई कबाड़ियों ने दुकानें खोल लीं.
यहां असली सवाल यह है कि अमेरिकियों ने अपनी विदाई भी भली प्रकार से क्यों नहीं होने दी? गालिब के शब्दों में ‘बड़े बेआबरू होकर, तेरे कूचे से हम निकले.’ क्यों निकले? क्योंकि अफगान लोगों से भी ज्यादा अमेरिकी फौजी तालिबान से डरे हुए थे.
उन्हें इतिहास का वह सबक याद था, जब लगभग पौने दो सौ साल पहले अंग्रेजी फौज के 16 हजार फौजी जवान काबुल छोड़कर भागे थे तो उनमें से 15 हजार 999 जवानों को अफगानों ने कत्ल कर दिया था. अमेरिकी जवान वह दिन नहीं देखना चाहते थे. लेकिन उसका नतीजा यह हो रहा है कि अफगान प्रांतों में तालिबान का कब्जा बढ़ता चला जा रहा है.
एक-तिहाई अफगानिस्तान पर उनका कब्जा हो चुका है. कई मोहल्लों, गांवों और शहरों में लोग हथियारबंद हो रहे हैं ताकि गृह युद्ध की स्थिति में वे अपनी रक्षा कर सकें.
डर के मारे कई राष्ट्रों ने अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए हैं और काबुल स्थित राजदूतावासों को भी वे खाली कर रहे हैं. भारत ने अभी अपने दूतावास बंद तो नहीं किए हैं लेकिन उन्हें कामचलाऊ भर रखा है.
अफगानिस्तान में भारत की हालत अजीब-सी हो गई. तीन अरब डॉलर वहां खपानेवाला और अपने कर्मचारियों की जान कुर्बान करनेवाला भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है. भारत की वैधानिक सीमा (कश्मीर से लगी हुई) अफगानिस्तान से लगभग 100 किमी लगती है.
अपने इस पड़ोसी देश के तालिबान के साथ चीन, रूस, तुर्की, अमेरिका आदि सीधी बात कर रहे हैं और दिग्भ्रमित पाकिस्तान भी उनका दामन थामे हुए है लेकिन भारत की विदेश नीति दुविधा में है.
आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री ने दक्षता के नाम पर अपने लगभग आधा दर्जन वरिष्ठ मंत्रियों को घर बिठा दिया लेकिन विदेश नीति के मामले में उनकी कोई मौलिक पहल नहीं है. इस समय भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती अफगानिस्तान है.
उसके मामले में अमेरिका का अंधानुकरण करना और भारत को अपंग बनाकर छोड़ देना राष्ट्रहित के विरुद्ध है. यदि अफगानिस्तान में अराजकता फैल गई तो वह भारत के लिए सबसे नुकसानदेह साबित होगी.