रूस-यूक्रेन युद्धः भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यश अर्जित करने का अवसर खो रहा है...

By राजेश बादल | Published: December 20, 2022 08:59 AM2022-12-20T08:59:18+5:302022-12-20T09:32:15+5:30

भारत ने बीते दिनों इस बात पर जोर दिया था कि मौजूदा दौर जंग का नहीं है। शांति और संवाद ही एकमात्र उपाय है। इसके बाद भी यूरोपीय देशों और अमेरिका की ओर से युद्ध रोकने के लिए कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं आई। एक ठंडा सा रवैया था।

Russia-Ukraine War India is missing that opportunity to earn international fame | रूस-यूक्रेन युद्धः भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यश अर्जित करने का अवसर खो रहा है...

रूस-यूक्रेन युद्धः भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यश अर्जित करने का अवसर खो रहा है...

रूस और यूक्रेन के बीच जंग फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रही है। लेकिन ताजा खबरें बताती हैं कि दोनों मुल्क अब समाधान चाहते हैं। वे शांति चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें एक मेज पर बिठाने वाली शक्ति कौन सी है? कमोबेश सारे विश्व को यह सवाल झिंझोड़ रहा है। संसार का स्वयंभू चौधरी अमेरिका आग में घी डालने का काम कर रहा है और चीन रूस का मित्र होते हुए भी इस महाशक्ति को कमजोर होते देखना चाहता है क्योंकि तब दुनिया दो ताकतवर ध्रुवों में बंट जाएगी और उसका दबदबा कायम हो जाएगा। ऐसे में हिंदुस्तान ही शेष रहता है, जो मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है। अतीत में उसका रिकॉर्ड भी शानदार है। लेकिन वह इसके लिए बहुत उत्सुक नजर नहीं आता। उसका यह अनमनापन क्या भारतीय विदेश नीति में अनिश्चितता का संकेत है? यदि ऐसा है तो यकीनन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यश अर्जित करने का वह अवसर खो रहा है। भारत ही एकमात्र देश है जो अमेरिका, रूस और यूक्रेन को चर्चा के लिए साथ बिठा सकता है। इसके बाद भी संवाद के प्रयास क्यों नहीं हो रहे हैं?

भारत ने बीते दिनों इस बात पर जोर दिया था कि मौजूदा दौर जंग का नहीं है। शांति और संवाद ही एकमात्र उपाय है। इसके बाद भी यूरोपीय देशों और अमेरिका की ओर से युद्ध रोकने के लिए कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं आई। एक ठंडा सा रवैया था। खीझे हुए रूस ने तब आक्रामक बयान दिया कि वह यूक्रेन के खिलाफ सभी विकल्पों का उपयोग करने के लिए आजाद है। इसके बाद फिर भारत और चीन ने परमाणु हथियारों के विकल्प का इस्तेमाल नहीं करने की बात कही। अमेरिका और उसके सहयोगी अभी भी खामोश हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के मुखिया विलियम बर्न्स ने अवश्य इसके बाद भारत और चीन के रवैये पर प्रसन्नता जताई और कहा कि रूस के दो शुभचिंतक देशों के इस कथन से उस पर दबाव पड़ा है। बर्न्स ने कहा कि चीन के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री ने परमाणु हथियारों को लेकर जो आशंका जताई है, उसने रूस पर काफी असर डाला है। लेकिन दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फिर एक उत्तेजक बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि रूस की तरफ से परमाणु हथियारों के प्रयोग की आशंका प्रबल है। उन्होंने यह भी कहा कि जब पुतिन यह कहते हैं कि वे रूस की रक्षा के लिए अपने सभी साधनों का इस्तेमाल करेंगे तो जाहिर है कि वे मजाक नहीं कर रहे हैं। इसके उत्तर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने याद दिलाया कि विश्व में जापान पर परमाणु बम तो अमेरिका ने ही गिराया था। वह किस मुंह से शांति की बात कर सकता है। इस समूची अंताक्षरी का अर्थ निकलता है कि वास्तव में शांति के लिए कोई पक्ष गंभीर नहीं दिखाई देता।

इन संदर्भों को दोहराने का मकसद यह है कि शांति के लिए संवाद आवश्यक है और उसके लिए दोनों पक्ष ही सकारात्मक रुख नहीं दिखा रहे हैं। जहां तक यूक्रेन का सवाल है तो यह एकदम साफ है कि राष्ट्रपति जेलेंस्की के कंधे का सहारा लेकर यूरोपीय देश और अमेरिका रूस को निशाना बना रहे हैं। नकली राष्ट्रवाद के जरिये जेलेंस्की अपने मुल्क को विनाश के कगार पर ले जा चुके हैं। आखिर रूस अपनी सीमा पर नाटो की सेनाओं को क्यों तैनात होने देगा। कोई भी राष्ट्र अपनी तमाम महत्वाकांक्षाएं रख सकता है पर अपनी सीमाओं  और भौगोलिक स्थितियों का ख्याल तो उसे रखना ही होगा। जेलेंस्की नहीं समझ रहे हैं कि अमेरिका और उसके साथी उसकी बर्बादी की कीमत पर अपनी आर्थिक हालत सुधार रहे हैं। वे गोला-बारूद मुहैया करा रहे हैं और जब जंग रुक जाएगी तो इसका खर्चा मय ब्याज के वसूलेंगे। इतना ही नहीं, यूक्रेन के पुनर्निर्माण के नाम पर अपने कर्ज के जाल में उसे फांस लेंगे। इस कर्ज से मुक्त होने में यूक्रेन को कई दशक लग सकते हैं। यूक्रेन को समझना होगा कि रूस ही उसका स्वाभाविक संरक्षक हो सकता है, अमेरिका नहीं। फिर उसकी ओर से संवाद की पहल क्यों नहीं हो रही है?

तो क्या यूक्रेन इस कड़वे सच को नहीं जानता? या फिर वह मुल्क को मलबे का ढेर बन जाने देना चाहता है? यदि वह ऐसा करता है तो उसे इस सदी का सबसे नासमझ राष्ट्र क्यों नहीं समझा जाना चाहिए? आज नहीं तो कल उसे और रूस को वार्ता के लिए आमने-सामने आना ही होगा। चर्चा के लिए हिंदुस्तान को तनिक और सक्रिय होना होगा। रूस चीन की महत्वाकांक्षा समझता है। रूस जानता है कि उसके कमजोर होने से चीन प्रसन्न ही होगा। इसी कारण हाल ही में जब रूस ने चीन से यूक्रेन के खिलाफ जैसी सैनिक मदद मांगी थी, चीन ने उससे इंकार कर दिया था। सिर्फ भारत ही ऐसा है, जिसका कोई निहित या छिपा हुआ हित नहीं दिखाई देता। इसलिए संवाद की पहल भी भारत की ओर से होनी चाहिए। चाहे उससे अमेरिका कितना ही नाराज क्यों न हो जाए। एक बार चर्चा की मेज पर आने के बाद शर्तों और एक-दूसरे की चिंताओं तथा सरोकारों पर बातचीत होगी। जाहिर है कि तब दोनों ही पक्ष थोड़ा-थोड़ा झुकेंगे। अंततः जंग की समाप्ति में उनकी भलाई है। यह बात अब तक रूस और यूक्रेन को समझ में आ जानी चाहिए। यह भी उन्हें ध्यान देना होगा कि जंग अपने आप में एक समस्या है। वह किसी भी मसले का समाधान नहीं है। समस्या को हल समझने की भूल नहीं की जाए तो बेहतर होगा।
 

Web Title: Russia-Ukraine War India is missing that opportunity to earn international fame

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे