रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का ब्लॉग: जीवन पथ को आलोकित करते नेल्सन मंडेला

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 18, 2020 12:36 PM2020-07-18T12:36:32+5:302020-07-18T12:36:32+5:30

जब नेल्सन मंडेला ने 1994 में  अपने रॉबेन द्वीप के अनुभवों पर विचार किया, तो उन्होंने कहा : ‘‘जो घाव नहीं देखे जा सकते हैं, वे उनकी तुलना में अधिक दर्दनाक हैं जिन्हें डॉक्टर द्वारा देखा और ठीक किया जा सकता है. जेल में मेरे जीवन के सबसे दुखद क्षणों में से एक मेरी मांं की मृत्यु थी.

Ramesh Pokhriyal's blog 'Nishank': Nelson Mandela illuminating the path of life | रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का ब्लॉग: जीवन पथ को आलोकित करते नेल्सन मंडेला

नेल्सन मंडेला और उनके एएनसी साथियों को जेल में लाया गया तो  एक वार्डन के पहले शब्द थे

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

‘‘मैं 27 साल की लंबी छुट्टी पर गया था’’. 18 जुलाई 1918 को जन्मे  नेल्सन मंडेला ने एक बार जेल में बिताए गए 27 यातनापूर्ण वर्षों के बारे में कहा था. 27 लंबे वर्षों की यातनापूर्ण जेल यात्रा को मजाक में इतनी सहजता से छुट्टी बताने का साहस एक महान् व्यक्तित्व ही कर सकता है. व्यक्तित्व की इसी  महानता के कारण वे  1994  को स्वतंत्र अफ्रीका के  पहले  अश्वेत राष्ट्रपति बने.

मुझे इस बात का सदैव दु:ख रहा कि उनसे कभी मिल नहीं पाया. इतिहास में मानवीय मूल्यों और आदर्शों के प्रति समर्पण कम ही देखने को मिलता है. 1964 में अदालत की कार्यवाही में भाग लेते  हुए उन्होंने कहा था - ‘‘मैंने श्वेत वर्चस्व के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और काले वर्चस्व के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी है.  मैंने एक लोकतांत्रिक और मुक्त समाज के आदर्श को पोषित किया है जिसमें सभी व्यक्ति सौहार्द्र और समान अवसरों के साथ रहते हैं. यह एक आदर्श है, जिसके लिए मैं जीने और इसे हासिल करने की उम्मीद करता हूं. लेकिन जरूरत पड़ी तो इस के लिए मैं मरने को भी तैयार हूं.’’
नेल्सन मंडेला ने अपनी अद्भुत संकल्पबद्धता, नेतृत्व क्षमता, प्रखरता, विनम्रता और धैर्य के कारण अत्यंत शक्तिशाली औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने में सफलता पाई. मेरी सदैव यह धारणा रही है  विनम्रता व्यक्तित्व को नई ऊंचाई  प्रदान करती है.  नेल्सन मंडेला के संबंध में भी यही हुआ. यहां तक  कि उनके घोर विरोधी भी उनके विनम्र व्यवहार के कायल थे.

केप टाउन और टेबल माउंटेन के मध्य स्थित कुख्यात रॉबेन द्वीप में मंडेला ने  अपने 27 निर्वासित वर्षों के 18 साल बिताए. कांक्र ीट का 7 बाई 8 का छोटा सा एकल कक्ष किसी का भी मनोबल तोड़ सकता था.

रॉबेन द्वीप की जेल बंदियों से बुरे व्यवहार के लिए कुख्यात थी. नेल्सन मंडेला और उनके एएनसी साथियों को जेल में लाया गया तो  एक वार्डन के पहले शब्द थे : ‘‘यह द्वीप है. यह वह जगह है जहां से तुम मरकर ही जाओगे.’’ राजनीतिक कैदियों के लिए बनाए गए एक नए सेल ब्लॉक में उन्हें कठोर जेल प्रशासन का सामना करना पड़ा. प्रत्येक कैदी के पास एक ठोस प्रांगण में एक छोटा एकल कक्ष था, जिसमें जमीन पर सोना पड़ता था. साथ के ही  कैदी और अफ्रीकी स्वाधीनता आंदोलन के प्रखर प्रवक्ता वाल्टर सिसुलु ने कैदियों के बीच नेल्सन मंडेला के उभरते हुए नेतृत्व की बात बताई. उन्होंने कहा : ‘‘जेल अधिकारियों ने हमें आदेश दिया...‘हार्डलूप!’   इसका मतलब था कि भागो.

एक दिन उन्होंने दोबारा हमारे साथ ऐसा किया. नेल्सन ने कहा : ‘कामरेड चलो पहले से कहीं ज्यादा धीमे हो जाओ’.  यह स्पष्ट था कि धीमी चाल से  खदान तक पहुंचना असंभव था. जेल प्रशासन नेल्सन के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर था. ’’ समय के साथ मंडेला के प्रयासों से जेल में लोगों को अध्ययन की अनुमति  मिलने लगी. जो लोग अध्ययन करना चाहते थे  वे अनुमति के लिए आवेदन कर सकते थे. यद्यपि कुछ विषयों, जैसे राजनीति और सैन्य इतिहास को निषिद्ध किया गया था. लोग नई भाषा सीखने लगे. धीरे-धीरे रॉबेन द्वीप ‘सलाखों के पीछे  का विश्वविद्यालय’ के रूप में जाना जाने लगा.  देखा जाए तो महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला में काफी समानता थी.

दोनों का स्वाधीनता संग्राम के दौरान एक लंबा समय जेल में कटा. दोनों ने आजादी की लंबी यात्रा में  देश के सुप्त जन-मानस के  भीतर स्वाधीनता की लौ को प्रज्ज्वलित कर एक शक्तिशाली जनआंदोलन की शक्ल दी.  मुझे महसूस होता है कि महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला को शक्तिशाली औपनिवेशिक शासन के खिलाफ मिली अपार सफलता  उनके असाधारण करिश्मे को चिह्नित करती है.

इस करिश्मे की आधारशिला उनका सम्मोहन था जिसके बल पर स्वाधीनता  की लड़ाई के लिए उन्होंने करोड़ों लोगों को एकजुट कर संघर्ष के लिए तैयार किया. मुझे  स्मरण  है  11 फरवरी, 1990 के ऐतिहासिक दिन को जब नेल्सन मंडेला की रिहाई हुई तो संपूर्ण  विश्व ने स्वाधीनता के इस महानायक का अभिनंदन किया था.  जेल से बाहर निकलते हुए उनका आत्मविश्वास देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि उन्होंने लगभग तीन दशकों का जीवन घोर यातनाओं के बीच काटा है.

जब नेल्सन मंडेला ने 1994 में  अपने रॉबेन द्वीप के अनुभवों पर विचार किया, तो उन्होंने कहा : ‘‘जो घाव नहीं देखे जा सकते हैं, वे उनकी तुलना में अधिक दर्दनाक हैं जिन्हें डॉक्टर द्वारा देखा और ठीक किया जा सकता है. जेल में मेरे जीवन के सबसे दुखद क्षणों में से एक मेरी मांं की मृत्यु थी. अगला चकनाचूर कर देने वाला अनुभव एक कार दुर्घटना में मेरे बड़े बेटे की मृत्यु का था.’’

 भले ही मंडेला 1999 में सक्रि य राजनीति से दूर हो गए, लेकिन दिसंबर 2013 में अपनी मृत्यु तक शांति और सामाजिक न्याय के एक वैश्विक प्रवक्ता  रहे. उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव बान-की मून ने कहा था ‘‘नेल्सन मंडेला के जीवन ने हमें दिखाया कि अगर हम साथ विश्वास करते हैं, सपने देखते हैं और एक साथ काम करते हैं तो हमारी दुनिया में और हम में से हर एक के लिए क्या संभव नहीं है.’’ मदीबा हमारे बीच नहीं हंै पर उनके आदर्श हम सभी का जीवन पथ आलोकित करते हैं. 

Web Title: Ramesh Pokhriyal's blog 'Nishank': Nelson Mandela illuminating the path of life

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे