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राजेश बादल का ब्लॉग: रूस में ‘चक्र वर्ती’ पुतिन का फिर एक नया दांव

By राजेश बादल | Updated: January 17, 2020 07:02 IST

आम तौर पर वर्तमान विश्व किसी अधिनायक को पसंद नहीं करता. व्लादीमीर पुतिन को आप एक तरह से सकारात्मक अधिनायक कह सकते हैं, जिसे उनका देश पसंद करता है.

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रूस एक बार फिर राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की फिरकी में उलझ गया. अपने सबसे भरोसेमंद साथी और प्रधानमंत्नी दिमित्रि मेदवेदेव तथा उनके समूचे मंत्रिमंडल का इस्तीफा लेने के बाद पुतिन चक्रवर्ती मुद्रा में नजर आ रहे हैं. वह एक बार फिर संविधान में बड़ी तब्दीली करना चाहते हैं. लेकिन इस बार इस राजनीतिक कदम से रूस के लोग तनिक आश्चर्य में हैं.

एक तो यह कि पुतिन ने साफ-साफ कहा कि मंत्रिमंडल लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया. उनके इस कथन से दो तथ्य स्पष्ट होते हैं. एक तो यह कि अपने तीन दशक से भी अधिक पुराने सहयोगी पर उन्हें विश्वास नहीं रहा और दूसरा यह कि नए प्रधानमंत्नी के तौर पर उन्होंने मिखाइल मिशुस्तिन जैसे नए चेहरे को सामने लाकर लंबी पारी खेलने की तैयारी कर ली है. हालांकि मिखाइल को प्रधानमंत्नी बनाने से पहले उन्हें संसद की मंजूरी लेनी होगी. पुतिन के लिए यह चुटकी बजाते ही कर देने वाला काम है.

रूस के कर ढांचे को मजबूत करने की दिशा में उन्होंने बहुत काम किया है. दूसरी ओर मेदवेदेव की छवि एक उदार राजनेता की है. उन्होंने रूस की आर्थिक और औद्योगिक प्रगति की रफ्तार तेज करने की दिशा में बड़ा योगदान किया है. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप तो लगे, पर साबित नहीं हुए.

27 साल पुराने संविधान को बदलने के लिए पुतिन देश भर में जनमत संग्रह कराएंगे. उनके पक्ष में यह जनमत संग्रह आया तो ही वे संविधान बदल सकेंगे. पुतिन ने रूस में अपनी एक चमत्कारिक छवि गढ़ी है. इस तरह भले ही पुतिन - मेदवेदेव की जोड़ी टूटी, मगर पुतिन एक महानायक के रूप में अभी भी प्रतिष्ठित रहेंगे. वर्तमान संविधान के मुताबिक एक व्यक्ति लगातार दो बार से अधिक राष्ट्रपति नहीं रह सकता. पुतिन 2000 से 2008 तक दो बार राष्ट्रपति रहे. उस समय राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का ही होता था.

इसके बाद उन्होंने 2008 में अपने साथी मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनवाया. वे मेदवेदेव का प्रचार खुद कर रहे थे और प्रचार में मेदवेदेव यह वादा कर रहे थे कि अगर वे जीते तो पुतिन को प्रधानमंत्नी नियुक्त करेंगे. ऐसा ही हुआ. मेदवेदेव के राष्ट्रपति रहते हुए ही उन्होंने सितंबर 2011 में राष्ट्रपति का कार्यकाल छह साल करा लिया और जब 2012 में मेदवेदेव ने इस पद पर कार्यकाल पूरा किया तो एक बार फिर पुतिन ने राष्ट्रपति की कुर्सी की शोभा बढ़ाई. छह साल बाद 2018 में

उन्होंने फिर राष्ट्रपति का चुनाव जीता. इस तरह उन्हें 2024 तक तो कोई खतरा नहीं है. इसके बाद की पारी खेलने के संकेत उन्होंने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में दे दिए हैं.

आम तौर पर वर्तमान विश्व किसी अधिनायक को पसंद नहीं करता. व्लादीमीर पुतिन को आप एक तरह से सकारात्मक अधिनायक कह सकते हैं, जिसे उनका देश पसंद करता है. सोवियत संघ के बिखरने के बाद मिखाइल गोर्बाचेव की छवि एक कमजोर राजनेता की बन गई थी. रूस अब पुतिन चाहता था. इस जन मनोविज्ञान को पुतिन ने बखूबी समझा है.

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