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ब्लॉग: कतर का 'ओपेक' की सदस्यता छोड़ना सऊदी अरब को करारा जवाब है

By विकास कुमार | Updated: December 4, 2018 19:37 IST

जून 2017 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर से कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते तोड़ लिए थे। अब खबर है कि कतर अगले साल तेल उत्पादक देशों के संगठन 'ओपेक' को छोड़ने की तैयारी कर रहा है।

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मध्य-पूर्व के दो सुन्नी बहुल देश सऊदी अरब और कतर। दोनों के पास प्रयाप्त मात्रा में तेल और इतना पैसा कि मध्य-पूर्व की राजनीति के रास्ते विश्व राजनीति में भी ठीक-ठाक दखल रखते हैं। कभी गल्फ राजनीति के दो महत्वपूर्ण धूरी रहे ये देश आज एक-दुसरे को फूटे आँख भी नहीं सुहाते। जून 2017 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर से कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते तोड़ लिए थे। अब खबर है कि कतर अगले साल तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक को छोड़ने की तैयारी कर रहा है। कतर ने फिलहाल इसके कारणों का जिक्र नहीं किया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि ओपेक में सऊदी अरब के प्रभाव और उसकी मनमानियों को देखते हुए कतर ने ये फैसला लिया है। 

कतर 'गल्फ कॉपरेशन कौंसिल' में भी सऊदी अरब का महत्वपूर्ण सहयोगी रह चूका है लेकिन हाल के दिनों में ईरान से बढ़ती नजदीकियों के कारण उसे अरब देशों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। कूटनीतिक बैन के बाद सऊदी अरब और उसके सहयोगियों ने कतर पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध लगाये और कतर को खाने-पीने की वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगा दिया। ईरान और तुर्की की सहायता से कतर ने सऊदी के घेरेबंदी को बेअसर कर दिया था। 

कतर और ईरान का याराना 

कतर और ईरान के रिश्ते ऐतिहासिक रहे हैं। फारस की खाड़ी में दोनों देश प्राकृतिक गैस के खोज पर साथ मिलकर काम कर रहे हैं। कतर और ईरान की यही नजदीकी सऊदी के हुक्मरानों को चुभती है। यमन की लड़ाई में सऊदी अरब और ईरान आमने-सामने हैं। हौथी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन प्राप्त है तो वहीं खाड़ी के अन्य देश सऊदी अरब के नेतृत्व में यमन पर बमबारी कर रहे हैं। कतर ने यमन की लड़ाई में शामिल होने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके कारण वो सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के आँखों की किरकिरी बन गया। सऊदी अरब ने कतर पर ये कहते हुए प्रतिबंध लगाये थे कि कतर मुस्लिम ब्रदरहूड जैसे आतंकवादी संगठनों को मदद मुहैया करवा रहा है। कतर ने सऊदी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था.  

दुश्मन का दुश्मन दोस्त

जब सऊदी ने सीमा पर घेरेबंदी की तो कतर में खाने-पीने के वस्तुओं की भारी किल्लत हो गई और कतर को ईरान से मदद लेनी पड़ी। इस मुश्किल वक़्त में ईरान कतर के साथ खड़ा रहा और लगातार मदद मुहैया करवाता रहा। ईरान एक शिया बहुल मुल्क है और कतर सुन्नी बहुल देश है लेकिन दोनों के ऐतिहासिक व्यापारिक रिश्ते रहें हैं। ईरान के साथ कतर की समुद्री सीमा लगती है। कतर के हवाई जहाज ईरान के वायु क्षेत्र से हो कर जाते हैं क्योंकि सऊदी अरब ने कतर एयरवेज के विमानों को अपने हवाई क्षेत्र में घुसने से प्रतिबंधित कर रखा है।

ईरान और सऊदी अरब की दुश्मनी के किस्से पूरे मध्य-पूर्व में महशूर हैं। कतर और सऊदी अरब की दुश्मनी को ईरान अपने लिए एक मौके की तरह देख रहा है, क्योंकि इस बहाने ईरान और कतर की दोस्ती परवान चढ़ रही है और ईरान की अर्थव्यवस्था को भी मदद मिल रही है। कतर खाने-पीने की वस्तुओं और दवाईयों का आयात ईरान से ही कर रहा है।

इसी साल अप्रैल में सरकार समर्थक सऊदी समाचार वेबसाइट 'सब्क़' ने रिपोर्ट छापी थी कि सऊदी सरकार कतर के साथ लगती सीमा पर 60 किलोमीटर लंबी और 200 मीटर चौड़ी नहर बनाना चाहती है। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 75 करोड़ डॉलर से बनने वाली नहर के अलावा यहां पर परमाणु कचरे को निपटाने के लिए भी एक स्थान तय किया जाएगा। सऊदी अरब कतर को अस्थिर करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। 

कतर का ओपेक की सदस्यता छोड़ना सऊदी अरब को कूटनीतिक जवाब के रूप में देखा जा सकता है. ओपेक में सऊदी अरब सबसे प्रभावी माना जाता है।  सऊदी के एक एलान पर इसके सदस्य देश तेल के उत्पादन में कटौती कर देते हैं। ओपेक की स्थापना 1960 में ईरान, इराक, सऊदी अरब, कुवैत और वेनेजुएला ने मिल कर की थी. कतर इसका सदस्य 1961 में बना।  

टॅग्स :सऊदी अरबईरानइराक
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