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Panama Canal: पनामा नहर में चीन को डुबोएंगे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प?, 25 साल में ही नियंत्रण वापस लेना चाहता अमेरिका

By विकास मिश्रा | Updated: February 18, 2025 05:54 IST

Panama Canal: इतना ज्यादा महत्व क्यों है और इसे बनाने वाले अमेरिका ने 1999 में इसे पनामा को सौंप दिया तो अब वापस लेने के लिए ट्रम्प उतावले क्यों हैं? और इसमें चीन कहां से घुस आया?

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ठळक मुद्देआजादी मिलते ही पनामा ने नहर बनाने का अधिकार 1904 में अमेरिका को दे दिया.अमेरिका ने पूरी ताकत झोंक दी और 1914 में पनामा नहर बन कर तैयार हो गई. अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच की दूरी इस नहर ने करीब 12875 किलोमीटर घटा दी.

Panama Canal: अपने इसी कॉलम में पिछले सप्ताह मैंने लिखा था कि इस वक्त पूरी दुनिया में ट्रम्प का खौफ छाया है कि पता नहीं ये शख्स कब क्या कदम उठा ले! न जाने किसकी नकेल कसने को उतावला हो जाए! पनामा नहर पर फिर से अमेरिकी नियंत्रण की न केवल उन्होंने बात की बल्कि विदेश मंत्री मार्को रूबियो को भूमिका बनाने के लिए पनामा भी पहुंचा दिया. रूबियो ने पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो को संदेश दे दिया है कि नहर में चीन की चीनी अब बिल्कुल ही नहीं गलेगी. चलिए सामान्य भाषा में समझते हैं कि ये पनामा नहर है क्या? इसका इतना ज्यादा महत्व क्यों है और इसे बनाने वाले अमेरिका ने 1999 में इसे पनामा को सौंप दिया तो अब वापस लेने के लिए ट्रम्प उतावले क्यों हैं? और इसमें चीन कहां से घुस आया?

समुद्र के बीच दूरी कम करने के लिए इस नहर को बनाने का ख्वाब तो हालांकि सोलहवीं शताब्दी में ही देखा गया था, कई कोशिशें भी हुईं लेकिन ख्वाब पूरा नहीं हो पाया. पनामा उस वक्त कोलंबिया का गुलाम था. उसे आजाद कराने में अमेरिका ने मदद की और आजादी मिलते ही पनामा ने नहर बनाने का अधिकार 1904 में अमेरिका को दे दिया.

अमेरिका यह सपना न जाने कब से देख रहा था. अमेरिका ने पूरी ताकत झोंक दी और 1914 में पनामा नहर बन कर तैयार हो गई. करीब 82 किलोमीटर लंबा यह कृत्रिम जलमार्ग प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर को जोड़ता है. अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच की दूरी इस नहर ने करीब 12875 किलोमीटर घटा दी.

पनामा नहर के मार्ग से यह दूरी केवल 8 घंटे की हो गई. इस पर अमेरिका का नियंत्रण रहा और दोनों विश्व युद्धों और शीत युद्ध के दौरान अमेरिका को इसका भरपूर लाभ भी मिला. इस नहर की वजह से वैश्विक समुद्री व्यापार और सैन्य मामलों में  अमेरिका का दबदबा बढ़ता गया. ऐसा माना जाता है कि मौजूदा दौर में वैश्विक समुद्री व्यापार का करीब 6 प्रतिशत हिस्सा इसी मार्ग का है.

मगर वक्त बीतने के साथ एक समस्या खड़ी होती गई. पनामा के लोगों को यह लगने लगा कि नहर तो उनके इलाके में है, फिर इस पर अमेरिका का नियंत्रण क्यों होना चाहिए? वहां के नागरिकों ने इसे अपनी संप्रभुता पर अमेरिकी हस्तक्षेप के रूप में देखा और एक आंदोलन खड़ा होता गया. विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

कई दशकों के आंंदोलन का नतीजा यह हुआ कि अमेरिका और पनामा के बीच 1977 में एक करार हुआ और अंतत: 31 दिसंबर 1999 को नहर का नियंत्रण पनामा को मिल गया. संचालन के लिए पनामा नहर प्राधिकरण का गठन हुआ. अभी करीब 14 हजार जहाज हर साल यहां से गुजरते हैं. एशिया, अमेरिका और यूरोप के बीच व्यापार में पनामा नहर की महत्वपूर्ण भूमिका है.

व्यापार का करीब दो तिहाई हिस्सा या तो अमेरिका आता है या अमेरिका से जाता है. पनामा और अमेरिका के बीच चूंकि रिश्ते बहुत मधुर रहे हैं इसलिए अमेरिका निश्चिंत था लेकिन इस इलाके में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ने अमेरिका के कान खड़े कर दिए. नहर के पास बंदरगाहों, और बुनियादी ढांचे में चीनी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर निवेश तो किया ही है, हांगकांग की हचिसन पोर्ट कंपनी नहर के दोनों छोर पर बंदरगाहों का संचालन करती है. हालांकि यह कंपनी चीन सरकार के अधीन नहीं है लेकिन सभी जानते हैं कि चीन में निजी कंपनियां भी सरकार के परोक्ष नियंत्रण में ही होती हैं.

इधर चीन की कई सरकारी कंपनियों ने भी नहर से संबंधित कई परियोजनाओं में भागीदारी की कोशिश की है. ट्रम्प को लगता है कि इस इलाके में चीनी निवेश का सीधा सा मतलब है कि वह अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाना चाहता है. यह जगजाहिर है कि अमेरिका अपने पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच माल भेजने तथा तेल और कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए काफी हद तक पनामा नहर पर निर्भर है.

ट्रम्प और उनके समर्थक यह मानते हैं कि पनामा सरकार केवल कहने को नहर पर नियंत्रण रखती है, चुपके-चुपके वास्तविक नियंत्रण चीन ले रहा है. पनामा सरकार ने अमेरिका के साथ करार की अवहेलना की है इसलिए अमेरिका को पनामा नहर अपने नियंत्रण में ले लेना चाहिए. ट्रम्प और उनकी टीम यह मानती है कि जिस तरह से चीन अमेरिका के खिलाफ लगातार उग्रता दिखा रहा है,

उससे यह माना जा सकता है कि यदि कोई संघर्ष की स्थिति पैदा होती है तो वह नहर में यातायात को बाधित कर सकता है. ऐसी स्थिति में अमेरिका के लिए अटलांटिक और प्रशांत महासागर के बीच अपनी नौसेना को तेजी से तैनात कर पाना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए यह जरूरी है कि पनामा नहर को अमेरिका हर हाल में वापस ले.

ट्रम्प ने बड़े खुले रूप से यह आरोप भी लगाया है कि पनामा ने इस नहर का नियंत्रण चीन को सौंप दिया है और नहर में कई जगह चीनी सैनिक तैनात हैं. हालांकि चीन और पनामा दोनों ने ही इस आरोप को नकारा है लेकिन ट्रम्प आरोपों पर टिके हुए हैं. उनका आरोप यह भी है कि अमेरिकी जहाजों से बहुत ज्यादा टोल टैक्स लिया जा रहा है.

इस बीच पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने कहा है कि यह नहर पनामा की है और रहेगी. तो सवाल है कि नहर को वापस लेने के लिए क्या ट्रम्प सैन्य कार्रवाई करेंगे? हालांकि उन्होंने कहा है कि इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन मान लीजिए कि यदि जरूरत पड़ गई तो...? इस आशंका का जवाब केवल ट्रम्प ही दे सकते हैं. तो इंतजार कीजिए उनके जवाब का और उनके कदम का...!

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