पाकिस्तान को राजनीति ने कर दिया बदहाल, अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के है आसरे
By राजेश बादल | Published: October 16, 2018 06:09 PM2018-10-16T18:09:11+5:302018-10-16T18:09:11+5:30
पाकिस्तान के वित्त मंत्री असद उमर ने अपने ताजा बयान से एक बार फिर अपने देश के लिए मुश्किलें खड़ी कर ली हैं।
पाकिस्तान सकते में है। अवाम ने जिस उम्मीद से इमरान खान को गद्दी पर बिठाया था, उनकी भी अब बोलती बंद है। प्रधानमंत्री बनने से पहले वे आर्थिक मदद के लिए किसी दूसरे देश के सामने हाथ फैलाने में अपनी तौहीन समझते थे। पद पर बैठते ही हाथ पसारे सऊदी अरब गए। पुराने कर्ज के जाल में फंसाकर चीन ने चुप्पी साध ली है। ले-देकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का आसरा है और वह भी आसान नहीं है। मुद्रा कोष में अमेरिका की वोट हिस्सेदारी सबसे अधिक है और पाकिस्तान के वित्त मंत्री असद उमर ऐलान कर रहे हैं कि अमेरिका की कोई ऐसी शर्त नहीं मानी जाएगी, जो पाकिस्तान के हितों के खिलाफ होगी। उधर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को चीन से मिले सारे कर्ज की जानकारी मांगी है। पाकिस्तान ने ऐसा किया तो चीन खफा हो जाएगा। कुल मिलाकर पाकिस्तान की स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गई है। अपने गठन के बाद पहली बार पाकिस्तान इतने बुरे वक्त का सामना कर रहा है।
दरअसल पाकिस्तान के वित्त मंत्री असद उमर ने अपने ताजा बयान से एक बार फिर अपने देश के लिए मुश्किलें खड़ी कर ली हैं। उमर इंडोनेशिया में विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठक में शिरकत करने के बाद पाकिस्तान लौटे थे। उनकी त्यौरी चढ़ी हुई थी। बड़े तल्ख अंदाज में उन्होंने कहा कि मुद्रा कोष से किसे मदद मिलेगी और किसे नहीं, यह तय करने वाला अमेरिका कोई नहीं है। उसे कोई वीटो का अधिकार भी नहीं है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है। पाकिस्तान के पास बमुश्किल महीने भर के आयात के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार बचा है। उसे तत्काल बारह अरब डॉलर की सहायता चाहिए। अगर यह मदद न मिली तो पाकिस्तान इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना करेगा। असद उमर के मुताबिक सात नवंबर को मुद्रा कोष का एक दल पाकिस्तान का दौरा करेगा। पाकिस्तानी वित्त मंत्री को उम्मीद है कि मुद्रा कोष से उन्नीसवीं बार मदद के लिए गुहार की गई है, इसके बाद उनके देश को कभी मुद्रा कोष का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ेगा।
इससे पहले पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव के आगे अड़ियल रवैया अख्तियार किया था। उससे कहा गया था कि चीन से मिले अब तक के सारे ऋण-अनुबंधों को मुद्रा कोष के सामने पेश करे। चीन ने अपनी आर्थिक गलियारा योजना में जिन देशों को शामिल किया है, उनको दिए गए कर्ज की शर्ते बेहद गोपनीय रखी गई हैं। अब पाकिस्तान इन शर्तो को साझा करने पर सहमत हो गया है। इससे चीन के कूटनीतिक हलकों में नाराजगी है। माना जाता है कि चीन ने ऋण देने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य सिद्धांतों का पालन नहीं किया है। इसलिए अगर पाकिस्तान ने कर्ज की शर्ते उजागर कर दीं तो चीन मुश्किल में पड़ जाएगा।
चीन की उलझन यह है कि अब उसकी स्थिति भी पाकिस्तान को लगातार सहायता देने की नहीं है। इसी कारण बीते दिनों जब इमरान खान ने यह कहा था कि पाकिस्तान चीन की आर्थिक गलियारा परियोजना की आर्थिक समीक्षा करेगा तो चीन की भृकुटि तन गई थी। इसके अलावा पाकिस्तानी वित्त मंत्री के बयान से अमेरिका बेहद नाराज है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में अमेरिकी भागीदारी सबसे अधिक है। वह करीब 17।68 फीसदी वोट के साथ सबसे ऊपर है। उसके बाद जापान है और चीन इससे भी नीचे है। चीन की वोट भागीदारी 6।49 प्रतिशत है, जो पाकिस्तान को किसी भी सूरत में सहायता के लिए दबाव डालने वाला नहीं बनाती। असद उमर ने अमेरिका की असल स्थिति समङो बिना बयान देकर अपने देश के लिए परेशानियां बढ़ा दी हैं।
इधर पाकिस्तान के आर्थिक विशेषज्ञ अब इमरान खान को प्रधानमंत्री के तौर पर अपने देश के लिए एक गलत फैसला मानने लगे हैं। पाकिस्तान के मीडिया जगत में यह धारणा बनती जा रही है कि इमरान खान के पास वास्तव में देश को आगे ले जाने वाली कोई सोच थी ही नहीं। अब जब मुल्क बदहाली के कगार पर है तो इमरान खान चुप्पी साधे बैठे हैं। अपने आवास से भैंसों और कारों की नीलामी कर भी वो कुछ बचा नहीं पा रहे हैं। कुल मिलाकर इमरान के लिए अब बुरा दौर शुरू होने वाला है। उन्होंने जो लोक लुभावन वादे चुनाव में किए थे वे अब उनके गले की फांस बन गए हैं। इमरान की बंधी मुट्ठी खुलती देख फौज भी भौंचक्का है। उसे अंदाज नहीं था कि इमरान की पोल इतनी जल्द खुलने लगेगी। अब फौज भी कोई विकल्प तलाश करने लग जाए तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लाहौर में तो खुलेआम लोग कहने लगे हैं कि अब हिंदुस्तान ही अकेला देश है जो पाकिस्तान को बचा सकता है।