पाकिस्तान में लोकतंत्र की तस्दीक 

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 24, 2018 11:02 AM2018-07-24T11:02:01+5:302018-07-24T11:02:01+5:30

चुनावों के बारे में दो कारक मीडिया पर हावी हैं। दावा किया जा रहा है कि छिपे तौर पर सक्रिय बलों ने इमरान खान की अगुवाई वाली पीटीआई को बहुमत हासिल करने के लिए सक्षम बनाने के लिए चुनावी उम्मीदवारों को दल बदलने के लिए मजबूर किया है।

pakistan general elections democracy political parties | पाकिस्तान में लोकतंत्र की तस्दीक 

पाकिस्तान में लोकतंत्र की तस्दीक 

जावेद जब्बार

पाकिस्तान में 25 जुलाई 2018 को होने जा रहे चुनाव 71 वर्षो में वयस्क मताधिकार पर आधारित 12वें आम चुनाव होंगे। एक ऐसे देश के लिए, जहां 33 वर्षो की संयुक्त अवधि के लिए राजनीतिक क्षेत्र में चार बार सैन्य हस्तक्षेप हो चुका है, यह तथ्य कि इसके बावजूद वहां आजादी के बाद से औसतन हर छह साल में आम चुनाव आयोजित किए जा रहे हैं, पाकिस्तानी लोगों के लोकतंत्र के प्रति सहज झुकाव को दर्शाता है।

दलगत राजनीति से इतर अन्य क्षेत्रों में भी दर्जनों ऐसे मंच हैं जहां चुनाव नियमित रूप से होते हैं तथा पूरी ताकत से लड़े जाते हैं। इनमें कई स्तरों के बार एसोसिएशन, शिक्षकों के पेशेवर मंच, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, क्लर्क, उद्यमी, किसान, पत्रकार, मीडिया विशेषज्ञ, वकालत में स्वयंसेवी नेतृत्व वाले सामाजिक निकाय, सेवा प्रदान करने और सामाजिक कल्याण करने वाले मंच, निजी क्लब, विशेष रुचि समूह आदि शामिल हैं। चुनाव, उम्मीदवार, अभियान, मतदान और चुनाव परिणाम की घोषणा साल भर चलने वाली गतिविधियां हैं जो साल-दर-साल चलती हैं।

प्रत्येक पांच वर्ष में आयोजित होने वाले राजनीतिक पार्टी आधारित चुनाव अपनी अनूठी तीव्रता को उभारते हैं और वास्तव में सभी क्षेत्रों को अपने भीतर समाहित कर लेते हैं। फिर भी 1970 से लेकर 2013 तक के पिछले 11 चुनावों में मतदान का औसत 50 प्रतिशत से कम रहा है।

ऊपर-ऊपर से देखने पर यह बात ऊपर के दो पैराग्राफ के विरोधाभासी प्रतीत होती है। लेकिन राजनीतिक चुनावों में मतदाताओं की कम भागीदारी के लिए सिर्फ उदासीनता और बेपरवाही ही जिम्मेदार नहीं है, हालांकि इन दोनों तत्वों का भी इसमें योगदान है। हिंसा, आतंकवाद का भय, पहुंच की कठिनाइयां और अराजनीतिक उदासीनता इसके लिए जिम्मेदार चार अन्य कारण हैं। 2018 के चुनावों के पहले भी कई क्रूर आतंकवादी त्रसदियां हो चुकी हैं।

हालांकि जनरल मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान  स्थानीय, प्रांतीय और संघीय विधायिकाओं में महिलाओं की भागीदारी में काफी वृद्धि हुई, लेकिन फिर भी लाखों वयस्क महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में महिलाओं को हतोत्साहित किया जाता है या मतदान करने से सक्रिय रूप से रोका जाता है। इसने चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं- सभी को सुधारात्मक उपायों के लिए प्रेरित किया है। 

यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में महिला मतदाताओं की संख्या असामान्य रूप से कम हो तो पहले दौर के मतदान को अमान्य घोषित कर दूसरा दौर कराया जा सकता है। चुनाव अधिनियम, 2017 सभी राजनीतिक दलों को बाध्य करता है कि राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ाने के लिए वे  सामान्य सीटों पर कम से कम पांच प्रतिशत टिकट महिलाओं को दें। 

इससे महिला मतदाताओं के साथ ही महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा, नेशनल एसेंबली और चार प्रांतीय एसेंबलियों में करीब 17 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इस प्रकार, उक्त पांच फोरम में 2018 में जो 1070 सदस्य चुने जाएंगे, उनमें कम से कम 188 महिलाएं होंगी। यह संख्या उसके अलावा होगी, जो महिलाएं सामान्य सीटों पर चुनी जाएंगी।

चुनावों के बारे में दो कारक मीडिया पर हावी हैं। दावा किया जा रहा है कि छिपे तौर पर सक्रिय बलों ने इमरान खान की अगुवाई वाली पीटीआई को बहुमत हासिल करने के लिए सक्षम बनाने के लिए चुनावी उम्मीदवारों को दल बदलने के लिए मजबूर किया है। दूसरा, नवाज शरीफ के खिलाफ मामले की त्वरित जांच और दोषसिद्धि का उद्देश्य उनकी पार्टी पीएमएल-एन को सत्ता में आने से रोकना है। 

सेना और न्यायपालिका को स्पष्ट रूप से - कभी-कभी अप्रकट रूप से भी - इन दोनों कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। ऐसे आरोप, और उनका समय नवाज शरीफ के देश वापस लौटने और कारावास स्वीकार करने के एक राजनीतिक शहादत के तत्व पर जोर देते हैं जिससे दुविधाग्रस्त मतदाताओं को उनके पक्ष में मोड़ने में मदद मिल सकती है। यदि ऐसा है तो निश्चित रूप से सेना और न्यायपालिका ने पीएमएल-एन की मदद की है, उन्हें सताया नहीं है!

तीसरा कारक मीडिया के बारे में एक बेहद अतिरंजित दावा है कि वह ‘अभूतपूर्व’ दबाव का सामना कर रहा है। ऐसे कुछ अस्वीकार्य, प्रतिकूल प्रयास किए गए हैं। लेकिन सरकारी मीडिया के अलावा, बड़ी संख्या में निजी टीवी चैनल और अखबार भी बिना किसी अंकुश के, निरंतर खुले रूप से राजनीतिक, सैन्य, न्यायपालिका, चुनाव की संभावनाओं पर चर्चाओं का आयोजन करते हैं। यह पाकिस्तानी मनोविज्ञान की मूल रूप से लोकतांत्रिक प्रकृति का स्पष्ट प्रमाण है। आइए परिणामों के लिए 26 जुलाई 2018 का इंतजार करें!

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