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विजय दर्डा का ब्लॉग: किसके इशारे पर मुनीर बने पाक के आर्मी चीफ?

By विजय दर्डा | Updated: November 28, 2022 09:05 IST

पुलवामा हमले के वक्त आईएसआई चीफ थे मुनीर, नाराज इमरान ने कुछ ही दिनों में पद से हटा दिया था।

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ठळक मुद्देआतंकियों को साजो-सामान देते हैं, हथियार देते हैं और पैसा देते हैं।आतंकियों की सैलरी के लिए पैसा देते हैं। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई खुद ही सब कर लेती है और राजनीतिक सत्ता को ऑपरेशन के बाद पता चलता है।

पाकिस्तान का नया सेना प्रमुख एक ऐसे व्यक्ति को बनाया गया है जिसके हाथ पुलवामा हमले के खून से रंगे हैं। इमरान की भारत-पाक दोस्ती की चाहत को उसने नेस्तनाबूद कर दिया था। जाहिर सी बात है कि ऐसे व्यक्ति के हाथ में पाकिस्तान की वास्तविक सत्ता आना हमारे लिए अत्यंत चिंताजनक है। भारत को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

पाकिस्तान में आर्मी चीफ कोई भी बने, उससे बेहतरी की उम्मीद भारत नहीं कर सकता लेकिन पुलवामा जैसे भीषण हमले के मास्टर माइंड सैयद आसिम मुनीर शाह का पाकिस्तान का आर्मी चीफ बन जाना भारत के लिए ज्यादा चिंता की बात तो है ही! मुनीर का चुनाव इस बात को भी दर्शाता है कि दहशतगर्दी तो पाकिस्तानी हुक्मरानों के खून में है। 14 फरवरी 2019 के पुलवामा हमले को देश आज भी नहीं भूला है। 

100 किलो से ज्यादा विस्फोटक से भरा हुआ एक वाहन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की बस से जा टकराया था। सीआरपीएफ के 40 जवान उस हमले में शहीद हो गए थे। उस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। जब यह हमला हुआ था तो प्रारंभिक जांच-पड़ताल में ही यह बात सामने आ गई थी कि इस हमले के पीछे न केवल जैश-ए-मोहम्मद का हाथ था बल्कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी इसमें शामिल थी। उस वक्त आईएसआई के चीफ थे सैयद आसिम मुनीर शाह। 

हमला उनके निर्देशन में हुआ था लेकिन इसकी भनक भी इमरान को नहीं लग पाई थी। किसी भी देश को यदि दूसरे देश के खिलाफ कोई ऑपरेशन करना होता है तो प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को जानकारी जरूर होती है लेकिन पाकिस्तान में उलटा है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई खुद ही सब कर लेती है और राजनीतिक सत्ता को ऑपरेशन के बाद पता चलता है। 

नवाज शरीफ हों, बेनजीर भुट्टो हों या फिर इमरान, इन्हें पता ही नहीं चलता था कि हो क्या रहा है...? पाकिस्तान में चुनकर आए लोगों को सेना ने कभी स्थापित ही नहीं होने दिया। सेना और आईएसआई अपनी समानांतर सरकार चलाती है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जितने भी आतंकी संगठन हैं उनके आका आईएसआई और पाक के मिलिट्री इंजेलिजेंस के अधिकारी ही हैं। 

वहीं, आतंकियों को साजो-सामान देते हैं, हथियार देते हैं और पैसा देते हैं। आतंकियों की सैलरी के लिए पैसा देते हैं। ये आतंकी भारत के खिलाफ तो अभियान चलाते ही हैं, पाकिस्तान के भीतर राजनीतिक सत्ता को परेशान करने और अवाम को भयभीत करने का भी काम करते हैं ताकि इनके हुक्म के विरोध में कोई न जाए। जो ताकतें हिंदुस्तान के भीतर अमन-चैन नहीं चाहती हैं वो पाकिस्तानी सेना की मदद करती रहती हैं। 

पहले सुदूर का एक देश मदद करता था और अब एक पड़ोसी देश कर रहा है। पुलवामा हमले को लेकर चौतरफा आलोचना से घिरे इमरान खान ने जांच-पड़ताल में पाया कि अक्तूबर 2018 में आईएसआई चीफ बनते ही मुनीर कुछ ऐसा करना चाहते थे जो बड़ा हो। पुलवामा हमला उसी की परिणति थी लेकिन जब 26 फरवरी 2019 को भारत ने बालाकोट स्थित जैश-ए-मोहम्मद के एक बड़े कैंप पर एयर स्ट्राइक किया और बहुत से आतंकी मारे गए तो इमरान खान को लगा कि मुनीर ने उन्हें फंसा दिया है। जून 2019 में मुनीर को आईएसआई चीफ के पद से हटा दिया गया। 

दरअसल 2017 की शुरुआत में मुनीर को जब मिलिट्री इंटेलिजेंस की जिम्मेदारी सौंपी गई तब से लेकर आईएसआई चीफ के अपने कार्यकाल के दौरान उसने ऐसी खुराफाती रणनीतियां बनाईं कि भारत और पाकिस्तान के संबंध तबाही की ओर चले गए। मुनीर कुछ ज्यादा ही भारत विरोधी रुख अख्तियार कर रहे थे जबकि इमरान भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश में लगे थे। 

आईएसआई प्रमुख के पद से हटाए जाने के बाद मुनीर मुखर रूप से इमरान खान के विरोधी हो गए थे। यहां तक कि इमरान की पत्नी बुशरा बेगम के भ्रष्टाचार को लेकर उन्होंने टिप्पणी भी कर दी थी। दिलचस्प बात यह है कि पाक के निवर्तमान आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है। मुनीर इसके पहले ही रिटायर हो जाने वाले थे लेकिन उन्हें सेना प्रमुख के पद पर लाने का एक बड़ा कारण उनका इमरान विरोधी होना तो है ही, अंतरराष्ट्रीय जानकारों के बीच चर्चा है कि मुनीर को आर्मी चीफ का पद देने के लिए चीन का बहुत दबाव था। 

पाकिस्तान इस वक्त चीन के कर्जे तले दबा है और चीन के हुक्म को टालने की हिम्मत उसमें नहीं है। वैसे भी एक कहावत है कि पाकिस्तान में सरकार की सेना नहीं होती बल्कि सेना की सरकार होती है। हालांकि बाजवा के समय कई ऐसे मौके आए जब सेना ने कम से कम यह दिखाने की जरूर कोशिश की कि वह सत्ता से दूर है लेकिन यह केवल छलावा है। सत्ता तो वहां सेना की ही होती है। 

पाकिस्तानी सेना नहीं चाहती कि भारत के साथ कोई दोस्ताना रिश्ता कायम हो जबकि इमरान यही चाहते थे। यदि दोस्ताना रिश्ता कायम हो जाता तो सेना अपनी महत्ता कैसे कायम रख पाती? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तानी सेना का पूरा रवैया एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान की तरह है। उसके पास उद्योग हैं। वह ट्रेडिंग करती है। 

सेना ने खुद को इतना समृद्ध बना लिया है कि पाकिस्तानी सरकार की कोई हैसियत ही नहीं है उसके सामने। अभी जो लोग सत्ता प्रतिष्ठान में हैं, वे सेना के आगे नतमस्तक हैं। उनमें इमरान जैसी ताकत नहीं। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि पुलवामा के खून से रंगे हाथों वाला मुनीर पाक की मौजूदा सरकार और सेना का बहुत भरोसेमंद है। 

जाहिर सी बात है कि मुनीर वहां का सेना प्रमुख बन गया है तो वह पाकिस्तान की भारत विरोधी नीतियों को हवा देने का ही काम करेगा। उसके बारे में कहा जाता है कि कश्मीर के चप्पे-चप्पे के बारे में वह जानकारी रखता है। आतंकियों से उसके संबंध प्रगाढ़ हैं। अब तो वह पाकिस्तान का वास्तविक शासक बन गया है इसलिए हमें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। हमारा खुफिया तंत्र ऐसा हो कि मुनीर की कोई हरकत कामयाब न होने पाए...यदि मुनीर कोई जुर्रत करे तो हम करारा जवाब भी तत्काल दें..!

टॅग्स :Pakistan Armyइमरान खानImran Khan
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