राजेश बादल का ब्लॉग: अपने ही बिछाए जाल में उलझ गए डोनाल्ड ट्रम्प

By राजेश बादल | Published: January 9, 2020 07:30 AM2020-01-09T07:30:00+5:302020-01-09T07:30:00+5:30

दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के सबसे अराजक और झूठे नेताओं में अव्वल साबित हुए हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को यू टर्न राजनेता कहा जाता है लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प उनसे भी बड़े यू टर्न राजनेता साबित हुए हैं.

Iran VS America Donald Trump got entangled in his own web | राजेश बादल का ब्लॉग: अपने ही बिछाए जाल में उलझ गए डोनाल्ड ट्रम्प

राजेश बादल का ब्लॉग: अपने ही बिछाए जाल में उलझ गए डोनाल्ड ट्रम्प

बुरे फंसे डोनाल्ड ट्रम्प. उनके करीबी राजनयिकों और सलाहकारों तक को यह गुमान नहीं था कि वे किसी भी मूड में आकर यह फैसला ले सकते हैं. व्हाइट हाउस की दीवारें फुसफुसा कर यही कह रही हैं कि इस बार फिर गलती हो गई. ईरान के साथ परमाणु संधि से बाहर आकर उस पर प्रतिबंध लगाने के ट्रम्प के निर्णय की आलोचना तो अमेरिका के मित्र देश पहले से ही कर रहे थे. ईरान के सैन्य कमांडर कासिम सुलेमानी को मारने के बाद से तो कनाडा समेत यूरोप के अनेक मुल्क स्तब्ध हैं. कूटनीतिक गलियारों की चर्चाएं संकेत दे रही हैं कि ट्रम्प ने यह कदम अपनी दूसरी पारी के लिए चुनाव जीतने की खातिर उठाया है. वे कासिम सुलेमानी की तुलना ओसामा बिन लादेन से कर रहे हैं, जिसे मारकर उनके पूर्ववर्ती बराक ओबामा भी देश के नायक बन गए थे.

लेकिन ओसामा से सुलेमानी की कोई तुलना नहीं है. एक देश के सेनाध्यक्ष को मारना और बरसों तक पाकिस्तानी कंदराओं में छिपे रहे कुख्यात आतंकवादी को मारने के बीच अंतर तो करना ही होगा. सुलेमानी की अंत्येष्टि में दस लाख से अधिक लोग शामिल हुए. एक आतंकवादी के लिए इस तरह लोग नहीं रोते. ओसामा बिन लादेन को जब मारकर समंदर में फेंका गया था तो उसका कुनबा भी नहीं रोया था.

दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के सबसे अराजक और झूठे नेताओं में अव्वल साबित हुए हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को यू टर्न राजनेता कहा जाता है लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प उनसे भी बड़े यू टर्न राजनेता साबित हुए हैं. उत्तर कोरिया, जापान, चीन, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और तालिबान के साथ अनेक मामलों में बढ़े हुए कदम खींचकर अपना रवैया अचानक बदलने का जो हुनर डोनाल्ड ट्रम्प ने दिखाया है, उससे उनकी कई बार किरकिरी हो चुकी है. अमेरिकी मीडिया ही उन्हें दस्तावेजी सुबूतों के साथ झूठों का सरताज सिद्ध कर चुका है. इस बार अमेरिकी नागरिकों की मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भड़का कर वे राष्ट्रपति पद का दूसरा कार्यकाल पाना चाहते हैं. 

इसके अलावा ट्रम्प महाभियोग का सामना भी कर रहे हैं. सीनेट में अभी इस पर उन्हें बहस और मतदान का सामना करना है. विश्लेषक मानते हैं कि मनोवैज्ञानिक लाभ लेने के लिए उन्होंने ईरान कार्ड खेला है. लेकिन ईरान के साथ जंग में उलझकर उनकी मंशा शायद ही पूरी हो. वे पहले ही अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को वापस बुलाने के जन आक्र ोश का सामना कर रहे हैं. अमेरिकी नागरिक अपने फौजियों के अन्य देशों में बेवजह मारे जाने से खफा हैं. वे कहते हैं कि उनके बेटे अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नहीं हैं, न ही देश बचाने के लिए उनकी इस तरह कुर्बानियों की जरूरत है. वे अमेरिका को इस जबरन युद्ध में थोपने के लिए ट्रम्प को कोस रहे हैं. इसका अर्थ यह है कि ट्रम्प अब अपने जाल में ही उलझ कर रह गए हैं. उन्होंने ईरान को अफगानिस्तान और इराक समझने की भूल की है. भले ही ईरान इस जंग में न जीते मगर अमेरिका के लिए यह हमेशा के लिए एक सबक हो सकता है. ट्रम्प ने अपने देश को उस बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से उनकी वापसी कठिन है.

सवाल यह है कि भारत इस जंग में कहां है ? उसके अपने हित और नीति क्या चाहते हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डोनाल्ड ट्रम्प के साथ खड़े होने की बात तो करते हैं पर देश के हित फिलहाल इसकी इजाजत नहीं देते. हिंदुस्तान और ईरान के संबंध दशकों से अत्यंत भरोसे भरे रहे हैं. ईरान ने इसीलिए भारत से अप्रत्यक्ष रूप से शान्ति मध्यस्थता का अनुरोध किया है. ईरान के इस अनुरोध का आधार भी है. भारत में किसी भी दल की सरकार रही हो, दोनों मुल्कों के रिश्तों पर असर नहीं पड़ा है. अमेरिकी दबाव में हमने इन संबंधों की डोर चटका दी है. उसके इशारों पर नाचने के बावजूद हम अमेरिका को पाकिस्तान से अलग नहीं कर पाए हैं. 

इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने हिंदुस्तान के लिए केवल गाल बजाए हैं. उसका ताजा फैसला पाकिस्तानी सेना को प्रशिक्षण देना है. इसके बाद क्या छिपा हुआ है ?  कारोबारी झटका वह पहले ही दे चुका है. भारतीय कंपनियों ने ईरान में एक लाख करोड़ रु पए का निवेश किया है. यह निवेश डूबता सा लग रहा है. चाबहार बंदरगाह का रणनीतिक और कारोबारी इस्तेमाल फिलहाल नहीं कर पाएंगे. तेल आयात में झंझटें बढ़ जाएंगी. ईरान से तेल आयात बंद करने के बाद हम अमेरिकी तेल पर निर्भर हो गए थे. अब ट्रम्प ने अपने देश को युद्ध की आग में झोंक दिया तो वह  हमें तेल देने की चिंता में क्योंकर दुबला होगा ?  हम और क्या खोकर अमेरिका को प्रसन्न करना चाहते हैं? और क्यों? लब्बोलुआब यह कि अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की चुप्पी भी इस मामले में ठीक नहीं है. कनाडा, चीन, रूस और ब्रिटेन जैसे देश दम साधे वैश्विक मंच पर सजते युद्ध के मैदान को देख रहे हैं. मामला अपनी सीमा पार करे, इससे पहले ही कोई रास्ता निकालना होगा अन्यथा ईरान तो बारूद के ढेर पर बैठा ही है.

Web Title: Iran VS America Donald Trump got entangled in his own web

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे