ब्लॉग: भूटान-चीन की नजदीकी से रहना होगा भारत को सतर्क

By शोभना जैन | Published: October 31, 2023 09:50 AM2023-10-31T09:50:51+5:302023-10-31T09:58:16+5:30

खबर है कि दोनों देश दशकों से चल रहे सीमा विवाद को खत्म करने के करीब पहुंच गए हैं। ऐसे भी संकेत हैं कि दोनों देश जल्द ही राजनयिक संबंध स्थापित कर सकते हैं।

India will have to be cautious about the proximity of Bhutan and China | ब्लॉग: भूटान-चीन की नजदीकी से रहना होगा भारत को सतर्क

फोटो क्रेडिट- एक्स

Highlightsभूटान चीन दशकों से चल रहे सीमा विवाद को खत्म करने के करीब पहुंच गएदोनों देश जल्द ही राजनयिक संबंध स्थापित कर सकते हैंनिश्चय ही इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती पहुंच भारत की चिंता बढ़ाती रही है

भारत के परंपरागत प्रगाढ़ पड़ोसी देश भूटान के विदेश मंत्री तांडी दोरजी की ताजा चीन यात्रा इस समूचे क्षेत्र के लिए बेहद अहम खबर है। चीन के साथ दूसरे छोर पर खड़े भूटान के लिए, जिसके साथ उसके राजनयिक संबंध भी नहीं हैं, ये पड़ाव न केवल भूटान के लिए और इस समूचे क्षेत्र के लिए बल्कि विशेष तौर पर भारत भूटान संबंधों के लिए दूरगामी परिणाम वाले माने जा रहे हैं। 

खबर है कि दोनों देश दशकों से चल रहे सीमा विवाद को खत्म करने के करीब पहुंच गए हैं। ऐसे भी संकेत हैं कि दोनों देश जल्द ही राजनयिक संबंध स्थापित कर सकते हैं। निश्चय ही इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती पहुंच भारत की चिंता बढ़ाती रही है और अब यह नया घटनाक्रम भारत के लिए चिंता और बढ़ाने वाला है।

अगर चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर कोई समझौता होता है तो उसका सीधे तौर पर असर डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर पड़ सकता है, जिसे लेकर 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच यहां 73 दिनों तक गतिरोध रहा था। गतिरोध तब शुरू हुआ था जब चीन ने उस इलाके में एक ऐसी जगह सड़क बनाने की कोशिश की थी, जिस पर भूटान का दावा था।

चीन और भूटान के बीच सीमा वार्ता का 25वां दौर 23 और 24 अक्तूबर को बीजिंग में आयोजित किया गया। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच 1984 से शुरू हुई सीमा वार्ता सात वर्ष बाद हुई, जिसके दोनों ही देशों ने सकारात्मक परिणाम निकलने की बात कही है। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस वार्ता के दौरान दोनों प्रतिनिधिमंडलों के नेताओं ने चीन और भूटान की सरकारों के बीच सहयोग समझौते पर दस्तखत किए। यह सहयोग समझौता चीन-भूटान सीमा के निर्धारण और सीमांकन पर संयुक्त तकनीकी टीम (जेटीटी) की जिम्मेदारियों और कार्यों के बारे में है।

चीन के साथ भूटान 400 किमी से अधिक लंबी सीमा साझा करता है और दोनों देश विवाद को सुलझाने के लिए साल 1984 से अब तक 25 दौर की सीमा वार्ता कर चुके हैं। दो इलाकों को लेकर चीन और भूटान के बीच ज्यादा विवाद है, उनमें से एक भारत-चीन-भूटान ट्राई-जंक्शन के पास 269 वर्ग किमी का इलाका और दूसरा भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किमी का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों का इलाका है। चीन भूटान को 495 वर्ग किमी वाला इलाका देकर उसके बदले में 269 वर्ग किमी का इलाका लेना चाहता है। 

भूटान की उत्तरी सीमा पर जिन दो इलाकों पर चीन का दावा है, इनमें से एक चुम्बी घाटी का है, जिसके नजदीक डोकलाम में भारत और चीन के बीच गतिरोध हुआ था। चीन इस इलाके के बदले में भूटान को दूसरा विवादित इलाका देने को तैयार है, जो चुम्बी घाटी के इलाके से कहीं बड़ा है।

भारत के लिए चिंता की बात ये है कि चीन जो इलाका भूटान से मांग रहा है, वो भारत के उस सिलीगुड़ी कॉरिडोर या 'चिकन्स नेक' के करीब है जो भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वह पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए भारत का मुख्य रास्ता है। अगर चीन सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब आता है, तो यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय होगा, क्योंकि यह पूर्वोत्तर राज्यों से कनेक्टिविटी के लिए खतरा बन सकता है और एक बड़ी सामरिक चुनौती होगी।

25 दौर की बातचीत के बाद चीन और भूटान कह रहे हैं कि वे सीमा निर्धारण के करीब हैं। वे जिस बात पर सहमत हुए हैं, वह यह है कि दोनों पक्ष सीमांकन पर काम करेंगे। तो ये काम अभी चल रहा है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपने सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझा लिया है।

विदेश नीति के एक विशेषज्ञ मानते हैं कि भूटान कह चुका है कि ट्राई-जंक्शन मुद्दे को त्रिपक्षीय तरीके से हल करना होगा और भूटान ऐसा कोई समझौता नहीं करेगा, जो भारत के हित में न हो। गौरतलब है कि भूटान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी सदस्य देश के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं। अगर भूटान सिर्फ चीन को चुनता है तो भारत-भूटान संबंधों में कुछ दिक्कत आने वाली है, क्योंकि ये यह भारत के लिए अस्वीकार्य होगा और इससे कूटनीतिक समस्याएं पैदा होंगी।

बहरहाल, भूटान एक संप्रभु और लोकतांत्रिक देश है। अगर उसे द्विपक्षीय संबंध बनाने की महत्वाकांक्षा है तो वह किसी भी देश के साथ द्विपक्षीय संबंध बना सकता है। द्विपक्षीय संबंध न रखने के लिए उस पर कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन मुद्दा यह है कि जिस समझौते को औपचारिक रूप दिया जा रहा है क्या उसका असर उन इलाकों पर पड़ेगा, जहां भारत भी एक पक्ष है? 

हालांकि, चीन और भूटान मिल कर सीमा विवाद का क्या हल निकाल रहे हैं, उसे लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है, अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि ऐसा है लेकिन भविष्य में ऐसा हो सकता है। तो यह भारत की चिंता का एक पहलू होगा। चीन भारत के पड़ोस में नेपाल, श्रीलंका, मालदीव में भारी निवेश और परियोजनाओं के जरिये इस क्षेत्र में अपनी पैठ लगातार बढ़ा रहा है। निश्चय ही भूटान के साथ विशेष संबंध होने के नाते भारत के लिए दोनों देशों के बीच इस तरह की खबर चिंतित करने वाली है। भारत के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है, जिसे समझदारी के साथ सुलझाना होगा।

Web Title: India will have to be cautious about the proximity of Bhutan and China

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